कविता

नदी

कल-कल करती जल की धारा
मन में प्रबल वेग जगाती है
प्रवाह इसका पत्थर को चीरे
दुर्बल तन को सबल बनाती है

बैठ किनारे लिख रहा हूँ
इस नदी का विस्तार
कलम,कागज खुशी से झूमें
देख कर प्रकृति,जीवनदायिनी का प्यार

लक्ष्य उसका समंदर ही होता
पहाड़,घाटी,जंगल सबको यही बताती है
जीवन देने का दम-खम सदैव रहे
वो कभी ना खुद पर इतराती है

चली है हिम से निकल कर
रास्ते खुदबखुद बन जाते हैं
पशु-पंछी ,मछली सब मिलकर
गीत नदी के ही गाते हैं

लहरें इसकी वार करे
बूँद-बूँद जीवन उद्धार करे
दिख जाता है विकराल रूप भी
मगर सदैव मानुष से प्यार करे

पूजे मानुष ,सींचें धरा को
बंजर में अन्न उपजाती है
जयकारों की गूँज शाम को
गान प्रभु का संग-संग ही गाती है

परवीन माटी

प्रवीण माटी

नाम -प्रवीण माटी गाँव- नौरंगाबाद डाकघर-बामला,भिवानी 127021 हरियाणा मकान नं-100 9873845733