गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

जब से प्यार के सिलसिलो का इंतकाल हो गया
तब से नफरतो का सिलसिला कमाल हो गया।

रखते थे ख्याल अनजान का भी,जां लुटाके खुद की
अब तो भाई का भी भाई ,दुश्मन कमाल हो गया।

बच्चे होने पर थाली लोटे बजवा लेते थे,खुश होकर
अब तो मैरिजएनिवर्सरी में आर्केस्ट्रा का धमाल होगया।

पहले अलाव हर घर और चौपाल होता था
अब तो हर घर का अलाव, दिल्ली भोपाल हो गया।

पहले इंसान की इंसानियत और ईमान थी थाती
जबसे फैला भ्रष्टाचार ,भारत कंगाल हो गया।

लड़को के दहेज में मांगूगा अब तो दाल और टमाटर
अब तो घर में बने दाल को भी,कई साल हो गया।

—  कवि दीपक गांधी

दीपक गाँधी

नाम - दीपक गांधी पिता का नाम - टी आर गांधी पद - विकास खण्ड अकादमिक समन्वयक (उच्च श्रेणी शिक्षक) निवास - ग्वालियर म. प्र. रूचि - साहित्य , लेखन ( कविता, गजल) साहित्यिक सफर - 120 कविता, 80 गजल लिख चुका हूँ