कहानी

कहानी : शो

सिम्मी और प्रकाश लन्दन की जानलेवा सर्दी से बचने और छुट्टियाँ बिताने ,मेक्सिको के पूर्वी तट पर बसे  शहर कैनकुन चले गए।  यह शहर नया बसाया गया है।  समझो पिछले तीस चालीस वर्षों से ,समुद्र तट के  मांझियों के गाँव और आदिवासी माया जाति   के लोगों को पश्चिमी सभ्यता में दीक्षित करके धूप बेचने का कारोबार है।  कैरेबियन उष्ण कटिबंध की समशीतोष्ण जलवायु ,उपजाऊ भूमि ,रंग बिरंगे पंछी आदि ठन्डे  देशों में रहनेवालों के लिए वरदान हैं।  दिसंबर , जनवरी और फरवरी में बर्फ़बारी से तंग, सुदूर उत्तरी  प्रांतों के लोग केवल धूप का सेवन करने यहां आते हैं।
          यहां आकर प्रकाश चाहता है कि दिन भर डेक चेयर में बैठा रहे और सामने नीले  हरे समुद्र को निहारता रहे।  सिम्मी चाहती है कि छतरी की छाँव में चुपचाप कोई चटपटा उपन्यास पढ़ती रहे।  दोनों को अनजान लोगों से बातचीत करना अच्छा लगता है।  प्रकाश को कोई न  कोई स्त्री मिल जाती है बतियाने के लिए।  सिम्मी इसे अनदेखा कर देती है। उसकी बला से।  उसे अपनी किताब से मतलब।  वह सब उसे एक भोली भाली,  आज्ञाकारिणी  भारतीय पत्नी ही समझती हैं।  उससे बात करते समय उनका ” बड़ी बुआ ” वाला दृष्टिकोण छुपा नहीं रहता।  बहुत सी फांफां  टाइप एकल प्रौढा स्त्रियां भी वहाँ थीं जिन्हें वास्तव में किसी पुरुष से सरोकार नहीं होता।
         दस दिन के कार्यक्रम में पहले चार तो शहर  घूमने , माया संस्कृति की अमूल्य धरोहरों का भ्रमण करने में निकल गए ।  होटलवाले अपनी ओर से  पर्यटकों के मनोरंजन का पूर्ण इंतजाम रख रहे थे।  अनवरत ठन्डे पेय और मदिरा ,चलते फिरते जोकर और बाजीगर , बीच पर करतब दिखाते नट और मेक्सिकन नृत्य आदि लुभावने प्रदर्शन रोज के किस्से थे।  तरह तरह के खेल कूद की सुविधा उपलब्ध थी।  विविध देशों के लोग इनमे भाग लेते।  बिना पहचान के प्रतियोगी ,प्रतिद्वंदी !  कभी कभी एक दूसरे की भाषाएं भी नहीं जानते पर खेल की भाषा में अटूट मित्रता का पोषण।  सब कुछ कितना  स्वस्थ !
          सुबह एक काली चिड़िया टहूकती तो ऐसा लगता किसी की कार का पीछे जाने वाला अलार्म बज रहा है।  सिम्मी ने एक बेयरा से पूछा तो उसने बताया कि इसी चिड़िया की आवाज़ की नक़ल की गयी थी जब अलार्म बनाया गया था।  उसी ने बताया कि देखो यह अपनी पूंछ मटकाती रहती है गाते  समय।  रोज सुबह वह सिम्मी की बालकनी में ही क्यों आती ? कारण समझते उसे देर नहीं लगी।  प्रकाश को बालकनी में बैठकर चाय पीना अच्छा लगता है सुबह शाम।  अतः वहां बिस्कुट और केक आदि का चूरा गिरता ही था।  चिड़िया उसी से परच गयी थी।
          सूरज उगने से पहले ही अनेक स्वास्थ -संधान करनेवाले  बीच पर टहलने आ जाते थे।  पौ फटने के साथ जो ठंडी बयार उठती है उसकी ताज़गी  आत्मसात करते।  सिम्मी की आँख खुली तो पौने चार बजा था।  वह भी उस दिन बीच पर टहलने उतर   गयी।  अकेली ही।  अभी रात की बत्तियाँ नहीं बुझी थीं।  आकाश के अन्धकार में लाली घुलने लगी थी मगर पौ नहीं फटी थी।  सिम्मी रेत पर नंगे पाँव चलती हुई गुनगुनाने लगी।  होटल के परिसर से काफी दूर आ गयी थी कि एक जगह उसे बालू का टीला सा दिखा।  सिम्मी उस पर  कुर्सी की तरह टिककर बैठ गयी।  समुद्र की शांत छपछप में उसे अपने   प्रिय राग मालकौंस के स्वर सुनाई देने लगे।  अनायास ही वह गाने लगी ,’ बसों मेरे नैनन में नंदलाल ‘ ! चारों ओर अबाध शान्ति ! सिम्मी का वर्षों का सुरसंधान अपने पूरे सात्विक सौन्दर्य में प्रसारित होने लगा।  मालकौंस का आलाप उसके रोम रोम को झंकृत कर रहा था।  अपनी रौ में बेसुध उसने आँखें बंद कर लीं. और आकंठ कृष्ण भक्ति में सराबोर , किसी भूली बिसरी  मीरा से एकात्म होती रही।
           आँखों में शनैः शनैः प्रकाश भरने लगा।  बंद पलकें लाल होने लगीं तो उसके स्वर भी तिरोहित होने लगे।  मन ही मन प्रणाम करके उसने मानो तानपुरा रख दिया।  दोनों हाथ जोड़कर माथे से लगाए और उगते लाल अरुण का अभिवादन किया।
          परंतु यह क्या ? वह एक पूरी भीड़ से घिरी थी।  चारों ओर दृष्टि घुमाई तो तालियों की गड़गड़ाहट ने उसे शर्मिन्दा कर दिया।  दो सुन्दर सी स्त्रियों ने उसके हाथ अपने हाथों में लेकर चूम लिए और कहा , ‘ इस सुन्दर संगीत को सुनने का अवसर हमें देने का शुक्रिया।  क्या यह भक्ति गीत था ?  ”
            सिम्मी ने हामी भरी।  बेहद झेंपते हुए सबको धन्यवाद कहा और अपने कमरे की ओर जाने लगी।  मगर वह दोनों स्त्रियां उसके संग ही चलने लगीं।  सिम्मी को अच्छा लगा।  वह दोनों कनाडा के ओंटोरिओ से आईं थीं।  सिम्मी ने चहक कर कहा कि वह नियाग्रा फॉल देख आई है।  वह उनके शहर  में भी घूम चुकी है।
            इसके बाद वह दोनों कहीं न कहीं रोज़ मिल जातीं।  प्रकाश भी उन्हें पहचानने लगा था।  जब भी मौका मिलता वह सिम्मी से भारत और किताबों की बातें करतीं।  अपने घूमे हुए शहरों का मिलान करतीं।  वह दोनों किसी अस्पताल की नर्सें थीं। मानव मनोविज्ञान की उनकी पकड़ बेहद  अच्छी थी।  केवल मुंह देखे की दोस्ती। न उनहोंने कभी नाम पता पूछा न सिम्मी ने।  पर हर मुलाक़ात मुस्कुराहटों भरी।
            वापिस आने के दो दिन पहले ,शाम के समय होटल के थिएटर में एक शो का आयोजन था।   शायद  किसी प्रेमकथा पर आधारित कोई नाटक होनेवाला था।  डिनर  के समय सब सज बन कर अपने कमरों से निकलकर नीचे डाइनिंग हॉल में एकत्र हुए।  सिम्मी भी तैयार हुई।  जब नीचे जाने  के लिए लिफ्ट बुलाई तो उसमे से वही दोनों ऊपर आईं।  सिम्मी ने हेलो कहा तो वह छू छूकर उसकी लखनवी कढ़ाईवाली कुर्ती की तारीफ़ करने लगीं । इतनी नफीस कढ़ाई पहले नहीं देखी  थी।
           बातून  सिम्मी ने उन्हें बताया की कैसे सोलहवीं-सत्रहवीं  शताब्दी में एक रानी ,मलिका नूरजहां ने राजा की क़ैद में बैठे बैठे अपनी परिचारिकाओं को सिलाई और तरह तरह के परिधान बनाने सिखाए ,दस्तकारी और कढ़ाई की तालीम दी और मीना बाजार की स्थापना की जो आज की फैशन इंडस्ट्री  का आधार है।
          सहज जिज्ञासा से उनहोंने पूछा , ” एक मलिका को क़ैद क्यों रखा राजा ने ? ”
          ” क्योंकि वह शेर अफगन की बीबी थी जो मुग़ल सम्राट का सेना नायक था।  उसने बग़ावत कर दी थी पर   युद्ध में मारा  गया।  राजा ने उसकी  बीबी और बेटी को क़ैद में डाल दिया। मुग़ल सम्राट जहांगीर उससे प्रेम करता था मगर वह अपने पति से प्रेम करती थी।  इसलिए उसने कई बार जहांगीर  के पैग़ाम को ठुकरा दिया मगर तीन साल के बाद वह राजी हो गयी। अपनी होशियारी के कारण वही शासन करती रही जबकि राजा अफीम का गुलाम  बना रहा।  ”
          वह दोनों एक साथ  बोलीं , ” गुड फॉर  हर ! ”
          सिम्मी ने पूछा , ” तुम लोग नहीं चल रहीं शो देखने ? ”
          उनमे से एक हंसकर व्यंग से बोली , ” शो ? शो कैसा ? मेरी प्यारी बहन शो से तो हम भागकर यहां आईं हैं।  वन मैन शो ! ”
          दूसरी ठंडी साँस भर कर बोली , ” हमारा  ‘ वह ‘ हम दोनों से अलग अलग प्यार करता रहा।  यानी हम दोनों को धोखा देता रहा।  हमारी कहानी  नूरजहां से क़तई  विपरीत है। जब हमें उसकी बेईमानी का पता चला हम दोनों ने आपस में दोस्ती कर ली और  ‘ वह ‘ गया भाड़ में ! अब हम यहां उसके ग़म भुलाने आये हैं।  खाओ , ‘ पीना कोलाडा ‘ पियो और दुनिया देखो। ”
          सिम्मी ने कहा , ” गुड फॉर यू !! ”
          तीनो ठठा कर हँस दीं।
—   कादम्बरी मेहरा

*कादम्बरी मेहरा

नाम :-- कादम्बरी मेहरा जन्मस्थान :-- दिल्ली शिक्षा :-- एम् . ए . अंग्रेजी साहित्य १९६५ , पी जी सी ई लन्दन , स्नातक गणित लन्दन भाषाज्ञान :-- हिंदी , अंग्रेजी एवं पंजाबी बोली कार्यक्षेत्र ;-- अध्यापन मुख्य धारा , सेकेंडरी एवं प्रारम्भिक , ३० वर्ष , लन्दन कृतियाँ :-- कुछ जग की ( कहानी संग्रह ) २००२ स्टार प्रकाशन .हिंद पॉकेट बुक्स , दरियागंज , नई दिल्ली पथ के फूल ( कहानी संग्रह ) २००९ सामायिक प्रकाशन , जठ्वाडा , दरियागंज , नई दिल्ली ( सम्प्रति म ० सायाजी विश्वविद्यालय द्वारा हिंदी एम् . ए . के पाठ्यक्रम में निर्धारित ) रंगों के उस पार ( कहानी संग्रह ) २०१० मनसा प्रकाशन , गोमती नगर , लखनऊ सम्मान :-- एक्सेल्नेट , कानपूर द्वारा सम्मानित २००५ भारतेंदु हरिश्चंद्र सम्मान हिंदी संस्थान लखनऊ २००९ पद्मानंद साहित्य सम्मान ,२०१० , कथा यूं के , लन्दन अखिल भारत वैचारिक क्रान्ति मंच सम्मान २०११ लखनऊ संपर्क :-- ३५ द. एवेन्यू , चीम , सरे , यूं . के . एस एम् २ ७ क्यू ए मैं बचपन से ही लेखन में अच्छी थी। एक कहानी '' आज ''नामक अखबार बनारस से छपी थी। परन्तु उसे कोई सराहना घरवालों से नहीं मिली। पढ़ाई पर जोर देने के लिए कहा गया। अध्यापिकाओं के कहने पर स्कूल की वार्षिक पत्रिकाओं से आगे नहीं बढ़ पाई। आगे का जीवन शुद्ध भारतीय गृहणी का चरित्र निभाते बीता। लंदन आने पर अध्यापन की नौकरी की। अवकाश ग्रहण करने के बाद कलम से दोस्ती कर ली। जीवन की सभी बटोर समेट ,खट्टे मीठे अनुभव ,अध्ययन ,रुचियाँ आदि कलम के कन्धों पर डालकर मैंने अपनी दिशा पकड़ ली। संसार में रहते हुए भी मैं एक यायावर से अधिक कुछ नहीं। लेखन मेरा समय बिताने का आधार है। कोई भी प्रबुद्ध श्रोता मिल जाए तो मुझे लेखन के माध्यम से अपनी बात सुनाना अच्छा लगता है। मेरी चार किताबें छपने का इन्तजार कर रही हैं। ई मेल kadamehra@gmail.com