लघुकथा

लहरों का चैम्पियन

सर्दियों की गुनगुनी धूप की सुहानी वेला थी. रोज़ की तरह रमा आज भी अपने स्वीमिंग पूल के किनारे रखी बैंच पर बैठी चाय पी रही थी. सामने टेबिल पर बिस्कुट और नमकीन रखे थे. स्वीमिंग पूल को देखते-देखते आज न जाने क्यों रमा को अपनी पक्की सहेली मिसेज़ तनेजा की याद आ गई. एक दिन उन्हें पिकनिक के लिए सपरिवार बीच पर जाना था. वहां क्या हुआ था?

”तनेजा साहब का बड़ा बेटा अजय बीच में स्विमिंग के लिए ना-नुकुर कर रहा था, लेकिन छोटे अतुल ने उसको साथ देने के लिए मना ही लिया. लहरों की अठखेलियां भी चालू थीं और दोनों भाइयों की भी. तभी लहरों में अचानक न जाने कैसी तब्दीली आई, कि सब डूबने-उतराने लगे. अतुल लहरों का चैम्पियन था, उसने बड़े भाई को धकेलकर उसका रुख वापिस किनारे की ओर मोड़ दिया. ऐसे ही कई तैराकों का रुख भी मोड़ देने वाला लहरों का चैम्पियन अतुल खुद अपना रुख मोड़कर वापिस नहीं आ पाया.”

समाचार सुनकर रमा तुरंत मिसेज़ तनेजा के पास पहुंची थी. रो-रोकर सूखी हुई आंसुओं की सूखी धार चेहरे की ही नहीं, मन की विकलता को भी बयान कर रही थी. मिसेज़ तनेजा केवल इतना ही कह पाईं- ”हमारा लहरों का चैम्पियन बेटा लहरों की भेंट चढ़ गया.”

तभी वहां तनेजा साहब आए और मिसेज़ तनेजा से मुख़ातिब हो कहने लगे- ”भाग्यवान, यह कहो न! कि हमारे लहरों के चैम्पियन ने हमारी बहू के और 9 अन्य लोगों के सुहाग बचाने का पुण्य कार्य किया. वह अमर है और अमर रहेगा”

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244