अन्य बाल साहित्य

छोटी-छोटी बातों से महानता तक

प्रिय बच्चो,
सदा खुश रहो,
आज 2 अक्तूबर यानी गांधी जयंती भी है और लाल बहादुर शास्त्री जयंती भी. आप इन दोनों महान हस्तियों के बारे में बड़ी-बड़ी बातें तो जानते ही होंगे, जैसे गांधीजी सत्य-अहिंसा पर ज़ोर देते थे, उन्होंने भारत को अंग्रेज़ों से आज़ादी दिलाने में अहम भूमिका निभाई, शास्त्री जी भारत के प्रधान मंत्री थे आदि-आदि. क्या आपने कभी सोचा है, कि गांधीजी और शास्त्री जी को महान किसने बनाया? छोटी-छोटी बातों ने. गांधीजी के पास जो पत्र आते थे, वे उनका जवाब तुरंत देते थे. उन पत्रों में से ऑलपिन निकालकर दुबारा प्रयोग करने के लिए एक डिब्बी में रखते जाते थे. पत्र में कागज़ का जो खाली हिस्सा रह जाता था, उसको भी वे संभालकर रखते थे, ताकि किसी को चिट देनी हो, तो उसे उपयोग में लाया जा सके. उनका कहना था- ‘इस तरह हम अपने और अपने देश के साधनों में इजाफा कर सकते हैं. देश में अनेक लोगों को कुर्ता तक नसीब हो पाने के कारण गांधीजी कुर्ता नहीं पहनते थे, महज एक धोती पहनकर ही काम चलाते थे. समय का सदुपयोग करने के लिए वे बहुत तेज़ी से चलते थे और दीन-दुखियों की मदद में अपना समय, साधन व शक्ति लगाते थे. आपको पता ही है, कि वे लाठी लेकर चलते थे. लाठी हमें सहारा भी देती है, ज़रूरत पड़ने पर वह हमारा हथियार भी बन सकती है. उनका यह भी मानना था-
1.बुरा न देखो. बुरा न बोलो, बुरा न सुनो.
2.अन्याय सहनेवाला भी उतना ही अपराधी है जितना अन्याय करनेवाला.
3.अपना सब काम खुद करना चाहिए.
4.स्वच्छता पर विशेष ध्यान देना चाहिए और इसके लिए किसी और का मुख नहीं तकना चाहिए.
ऐसी ही अनेक छोटी-छोटी बातों से वे महान बने और महात्मा, बापू व राष्ट्रपिता कहलाए.

 

 

लाल बहादुर शास्त्री जी एक गरीब परिवार से थे. उनके पास स्कूल जाने के लिए नाव से नदी पार करने तक के पैसे नहीं होते थे, वे तैरकर नदी पार कर स्कूल आते-जाते थे. उनका कद भी बहुत छोटा था, लेकिन उनके काम बहुत बड़े थे, वे देश के प्रधानमंत्री बनकर भी विनम्र और निर्भय रहे. वे देश की सेना के जवानों और किसानों को समान महत्त्व देते थे, इसलिए उन्होंने नारा दिया- ”जय जवान, जय किसान.” वे अन्न की बरबादी न होने देने को बहुत महत्त्व देते थे, इसलिए उन्होंने सोमवार का व्रत शुरु करवाया था. उनके आह्वान पर अन्य अनेक लोगों की तरह हमारे घर भी सोमवार का व्रत शुरु किया गया. वे भी भारत की संस्कृति के अनुसार अहिंसा को परम धर्म मानते थे. अहिंसा का मतलब कायरता नहीं है, बल्कि समर्थ होते हुए भी हिंसा का जवाब हिंसा से न देना अहिंसा है, समय पड़ने पर दुश्मन से लोहा लेने में भी नहीं घबराना चाहिए.

 
महात्मा गांधी और लाल बहादुर शास्त्री जी जैसी महान विभूतियों को कोटिशः नमन करते हुए,

 

आपकी नानी-दादी-ममी जैसी
-लीला तिवानी

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244