यात्रा वृत्तान्त

चलो कहीं सैर हो जाये –13

सीढियां उतरते हुए बाएं किनारे पड़ने वाले मंदिरों में शीश नवाते हाथ जोड़ते हम लोग आगे बढ़ रहे थे ।
अब सीढियाँ ख़त्म होनेवाली थीं और आगे मंदिर जैसा कुछ लग नहीं रहा था । इसके विपरीत दायीं तरफ पानी का एक कुंड सा बना दिख रहा था और सामने सुखी हुयी सी नदी थी जिसमें कहीं कहीं जलधारा बहती दिख रही थी ।
थोडा और आगे बढ़ने पर सीढियाँ समाप्त हो गयीं थी और यात्रियों को बायीं तरफ जाने का निर्देश देनेवाला सूचनापट लगा हुआ था ।
सीढियाँ उतरकर पानी में से होते हुए हम लोग लगभग पचास फीट ही आगे बढे होंगे कि एक छोटा सा टिला दिखाई पड़ा और उसीमें निचे की तरफ एक संकरी सी गुफा दिखाई पड़ रही थी । वहीँ एक सूचनापट भी लगा हुआ था जिससे ज्ञात हुआ कि यही गुफा ही नौ देवियों का स्थान था ।

माँ दुर्गा का स्मरण कर हम लोग एक एक कर गुफा में प्रवेश कर गए । गुफा बहुत ही संकरी और छोटी सी थी । रोशनी की भी कोई व्यवस्था नहीं थी । अँधेरे का सामना करने के लिए एक टिमटिमाता दिया बड़ी मुस्तैदी से अपना काम कर रहा था ।

गुफा में थोड़ी ही दूर के बाद एक गोल छोटी सी जगह में किनारे किनारे दुर्गाजी के नौ रूपों की मूर्तियाँ स्थापित की गयी हैं । दुर्गाजी के इन सभी रूपों का पूजन कर हम गुफा से बाहर निकले ।

गुफा से बाहर निकलते हुए प्रत्येक दर्शनार्थी को प्रसाद दिया जा रहा था । गुफा से बाहर निकल कर हमें अहसास हुआ कि हम लोग नदी की सतह से काफी उंचाई पर आ गए थे । वहाँ से कुछ सीढियाँ चढ़कर हम और ऊपर पहुंचे ।

वहां हनुमानजी का छोटा सा मंदिर बना हुआ था । मंदिर के सामने ही दो छोटे छोटे स्विमिंग पूल जैसे पानी के दो कुंड बने हुए थे जिनसे होकर पानी निर्बाध गति से बाहर की तरफ बह रहा था । देर न हो जाये यही सोचकर हम लोग नहाने का विचार त्याग कर हनुमानजी के मंदिर में मत्था टेक गाडी के पास आ गए ।

ड्राईवर अजीज शायद चाय प़ी चुका था गाड़ी में ही बैठा मिला ।

आगे फिर कहीं रुकना न पड़े यही सोच कर हम सभी ने सोचा क्यों हम भी चाय प़ी लें ? क्योंकि होटल से निकलते हुए हम लोग सीधे गाड़ी में बैठ कर सफ़र पर ही निकल पड़े थे ।

अजीज के मना करने पर हम लोग वापस गाडी में आकर बैठ गए । सामने ही कश्मीर हैंडलूम हाउस की दुकान थी । कश्मीरी शाल ब्लैंकेट गलीचे वगैरह दिख रहे थे और दुकानदार बार बार देखने का आग्रह भी कर रहा था लेकिन हमें अभी बहुत सफ़र तय करना था सो समय की कमी थी । विनम्रता से दुकानदार को मना कर हम लोग आगे बढे ।

कुछ समय आसपास समतल मैदानों के बीच चलते हुए दस मिनट बाद ही हम लोग किसी मुख्य सड़क पर चल रहे थे । यह मुख्य सड़क भी किसी अजगर की भांति टेढ़े मेढ़े लेटी हुयी प्रतीत हो रही थी । पहाड़ियों से धीरे धीरे ऊपर चढ़ना और फिर घुमावदार रास्तों से निचे उतरना यही क्रम कई बार पुरे सफ़र के दौरान जारी रहा ।

इन पहाड़ियों पर घुमावदार रास्तों से चढ़ना और उतरना बेहद रोमांचक था । खिड़की से बाहर कुदरत का अनुपम सौंदर्यपान कर हम लोग खुद को धन्य मान रहे थे । ऐसे सुन्दर नज़रों की तो हम लोगों ने कल्पना भी नहीं की थी और ऊपर से सफ़र का वो रोमांच ताउम्र याद रखा जा सकनेवाला अनुभव बन गया था ।

सुबह के लगभग साढ़े दस बजने वाले थे और हम लोगों को अब चाय नाश्ते की जरुरत महसूस हो रही थी । आगे नाश्ते की कोई अच्छी जगह देखकर गाड़ी खड़ी करने को कहकर हम लोग कुदरत के अनुपम सौन्दर्य को निहारने में व्यस्त हो गए ।

आगे एक छोटा बाजार शायद ‘ धनसार ‘ नाम था उसका देखकर अजीज ने गाड़ी एक छोटी सी नाश्ते की दुकान पर रोक दी थी । यह एक छोटा सा देहाती बाजार लग रहा था । बाजार के नाम पर दो चार दुकानें ही नजर आ रही थी । लेकिन टूरिस्टों की बहुत सी गाड़ियाँ वहाँ खड़ी थीं । सभी हमारी ही तरह चाय नाश्ता के लिए रुके थे और शायद सभी चाय वगैरह पी चुके थे क्योंकि दुकानों में कोई भीड़ भाड़ नहीं थी ।

हम लोग वहां से चाय नाश्ता करके आगे बढे । अब रास्ता फिर से काफी संकरा और उबड़ खाबड़ हो गया था । शायद बिलकुल कच्ची सड़क थी क्योंकि काफी धुल उड़ रही थी । दायीं तरफ पहाड़ी और बायीं तरफ गहरी खाई । बड़ा ही खतरनाक लग रहा था । आमने सामने की गाड़ियों का निकलन असम्भव था और ऊपर से गहरे मोड़ । गाड़ी चलाने के लिए अतिरिक्त योग्यता और धीरज की जरूरत थी और हमें अजीज इस मामले में काफी बेहतर ड्राईवर लगा । आप उसकी ड्राइविंग का इसीसे अंदाजा लगा लीजिये कि हमें कटरा से चले हुए लगभग साढ़े चार घंटे हो चुके थे और मंजिल अभी भी दस किलोमीटर दूर थी ।

कुछ ही देर में हम लोग एक पहाड़ी से नीचे उतर रहे थे और सामने ही दूर कई गाड़ियाँ पार्किंग की हुयी दिखायी पड़ी । अजीज ने बताया हमें वहीँ जाना है लेकिन वहां पहुँचने में हमें अभी और दस मिनट लगेंगे । वाकई हमें नजदीक ही दिखाई पड़ने वाली जगह तक पहुँचने में दस मिनट लग गए ।

यह एक बड़े गाँव जैसा ही था । दोनों तरफ पहाड़ियों के बीच बसे उस गाँव के मध्य से ही एक कच्ची छोटी सड़क बनी हुयी थी जिस पर हम लोग आगे बढ़ रहे । बड़ी गाड़ियाँ बस वगैरह पहले ही रुके हुए थे । हमें भी थोडा ही आगे जाकर एक जगह रुकना पड़ा ।

अजीज ने बताया इससे आगे गाड़ियाँ ले जाने पर पाबन्दी है । एक पेड़ की छांव में गाड़ी खड़ी कर अजीज बोला ” अब यहाँ से आपको आगे पैदल ही जाना है । गुफा यहाँ से लगभग चार किलोमीटर दूर है । थोड़ी दूर जाने के बाद आप लोग चाहें तो घोड़े भी ले सकते हैं । भोजन करके जाना चाहें तो यहीं भोजन भी मील जायेगा या फिर वापस आकर भोजन करें । जैसा आप चाहें । ”

हम लोगों ने समय देखा । बारह बजने वाले थे । अभी थोड़ी ही देर पहले नाश्ता कर चुके थे सो फ़िलहाल भूख नहीं लगी थी । भले थोड़ी देर हो जाये अब भोजन गुफा के दर्शन करके आने के बाद ही करेंगे । अपना फैसला अजीज को बता हम लोग गुफा की तरफ जाने वाले रस्ते पर आगे बढे ।

सड़क के दोनों तरफ सिर्फ होटलों की कतारें ही दिखाई दे रही थीं । वही कच्चा रास्ता आगे की तरफ जा रहा था जिस रास्ते से हम लोग आये थे ।

लगभग आधा किलोमीटर जाने के बाद यह रास्ता भी एक लोहे के बने पुल को पार करने के बाद ख़त्म हो गया था । उस पूल पर से लोग नीचे झाँक रहे थे । नीचे एक छोटी सी नदी थी जिसमें बहुत ही कम पानी था । और यह आश्चर्यजनक ही था की उसी थोड़े से पानी में बहुत बड़ी बड़ी मछलियों का झुण्ड अठखेलियाँ करता सा दिख रहा था ।

कहीं कहीं तो पानी से भी ज्यादा सिर्फ मछलियाँ ही दिख रही थीं । बाहर से आये सैलानी इन मछलियों के अठखेलियों का मजा लेते और वहीँ स्थानीय बच्चे आटे की गोलियां थैलियों में रख कर बेच रहे थे जिन्हें लोग खरीद कर नीचे पानी में फेंक कर मछलियों को खिलाकर पुण्य प्राप्ति का अनुभव कर रहे थे ।

थोड़ी देर हम लोग भी लोगों के झुण्ड का हिस्सा बने रहे और फिर आगे बढे । इस नदी के किनारे से ही होकर एक संकरा रास्ता शिवखोड़ी गुफाओं की तरफ जाता है । पूल के किनारे ही घोडेवाले घोड़े के साथ खड़े थे । बहुत से यात्री मोलभाव करते दिखे । कुछ घोड़े से जाते हुए भी दिखे । हम लोग भी नदी किनारे बने उस संकरे रस्ते से ही आगे बढे ।

क्रमशः

*राजकुमार कांदु

मुंबई के नजदीक मेरी रिहाइश । लेखन मेरे अंतर्मन की फरमाइश ।