कविता

कविता : बचपन इतना सूना क्यों ?

बचपन इतना सूना क्यों ?
बचपन इतना सूना क्यों ?

हँसी-ठिठोली करते बच्चों की
गुम हो गई टोली क्यों ?

गुड्डे गुड़िया चुप हो गए
कोई इनसे न खेले क्यों ?

आज दीवारो के बंद कमरे में
खुद से आँख मिचौली क्यों ?

गाने सुनकर सोते बच्चे
बन्द हो गई लोरी क्यों ?

हिन्दी मातृभाषा है फिर
पाश्चात्य की बोली क्यों ?

खेल खिलौने वाले हाथो की
सुनी हुई हथेली क्यों ?

आधुनिक युग की नवीनता में
खो गई मासूम बोली क्यों ?

दीपिका गुप्ता ”कोयल”

दीपिका गुप्ता 'कोयल'

खिरकिया, जिला-हरदा (म.प्र.) email: koyalgupta.dg@gmail.com