सामाजिक

रेल तंत्र का षड्यंत्र

लखनऊ मेल के AC II टायर में 12 दिसंबर ’16 के लिये 43 बर्थ दिल्ली के लिये उपलब्ध हैं। आप सीनियर सिटीज़न श्रेणी में दो बर्थ बुक करने का उपक्रम करते हैं और चाहते हैं कि कम से कम एक लोवर बर्थ मिले। सिस्टम आपसे पूछता है कि यदि अलग अलग कोच हो जाय तो मान्य होगा जिसको आप नकार देते हैं। इसके बावजूद आपको अलग अलग कोच में बर्थ दी जाती हैं। बहुत होंगे तो इस गाड़ी में 6 डिब्बे होंगे ॥ टायर के जिसके हिसाब से प्रति कोच 7 बर्थ की उपलब्धता है और इनमें लोवर बर्थ भी हैं क्योंकि मुझे दोनों बर्थ लोवर दी गयीं मगर अलग अलग कोच में।

आप खिन्न हो कर टिकट कैंसिल करते हैं और यह जान कर आपके होश उड़ जाते हैं कि दो महीने बाद की जाने वाली यात्रा के टिकट कैंसिलेशन पर तकरीबन 40% पैसा काट लिया गया (1391/- पर मात्र 925/-वापस)। इसका सीधा सा और एक ही मतलब है कि ऐसा जानबूझ कर किया जा रहा है ताकि आप टिकट कैंसिल करने के लिये बाध्य हो जाएँ। लोग कहेंगे कि यह तो सिस्टम की कमी हो सकती है पर मुझे लगता है कि यह अव्यवस्था सिस्टम में जानबूझ कर छोड़ी गयी है। किसी एक दिन में की गई कुल बुकिंग में यदि 10% प्रतिशत बुकिंग भी गड़बड़ कर दी जाय तो आप स्वयं अंदाज़ लगाइये कि कितनी “ऊपर” की एक्सट्रा कमाई हो जाती होगी। इससे आप को सर्जिंग किराए में होने वाली धांधली का भी अंदाज़ हो जाएगा जिसमें आप उच्चतम किराए का ही भुगतान करेंगे क्योंकि आप कभी नहीं जान सकते कि आप किस प्रतिशत वाले स्लाॅट में बुक किये गए।

जब सब लूट रहे हैं तो रेलवे क्यों पीछे रहे। अगर काँग्रेस ने तथाकथित देश के धन की लूट की थी (हालाँकि अभी तक न तो कोई प्रमाण दिया गया न ही कोई पकड़ा गया) तो भाजपा की सरकार कई तरीकों से लोगों को लूट रही है। हमें मालूम है हमारे मोदी भक्त क्या कहेंगे । यही न कि जब आप एफोर्ड नहीं कर सकते तो रेल पर चलिये क्यों ? और इस तरह की बातें वही कर सकते हैं जिनके पास दो नंबर की कमाई है। मुझ पर पाँच सौ रुपये की यह चोट बहुत नागवार गुज़री है। बात पाँच सौ रुपये की नहीं एक नाजायज़ लूट की है, और वह भी सरकार द्वारा !!

मनोज पाण्डेय 'होश'

फैजाबाद में जन्मे । पढ़ाई आदि के लिये कानपुर तक दौड़ लगायी। एक 'ऐं वैं' की डिग्री अर्थ शास्त्र में और एक बचकानी डिग्री विधि में बमुश्किल हासिल की। पहले रक्षा मंत्रालय और फिर पंजाब नैशनल बैंक में अपने उच्चाधिकारियों को दुःखी करने के बाद 'साठा तो पाठा' की कहावत चरितार्थ करते हुए जब जरा चाकरी का सलीका आया तो निकाल बाहर कर दिये गये, अर्थात सेवा से बइज़्ज़त बरी कर दिये गये। अभिव्यक्ति के नित नये प्रयोग करना अपना शौक है जिसके चलते 'अंट-शंट' लेखन में महारत प्राप्त कर सका हूँ।