संस्मरण

मेरी कहानी 175

सुबह उठे और ब्रेकफास्ट करके हाल में आ गए। दुसरे लोगों से बातें करते करते हम ऊपर सन डैक पर आ गए और धुप का मज़ा लेने लगे। एक दो गोरिआं बैठी किताबें पढ़ रही थीं। आज सारा दिन बोट यहाँ ही खड़ी रहनी थी, इस लिए हम प्लैन बनाने लगे कि कहाँ जाना था। गोरे लोग पुरानी सभियता को जान्ने के बहुत शौक़ीन हैं और बातें कर रहे थे कि आज नूबियन विलेज देखा जाए। हम ने नूबियन लोगों के बारे में सुना तो था लेकिन यह कौन लोग होंगे, यह उत्सुकता हम को भी हो गई और हम ने भी वहां जाने के लिए हाँ कह दी। जब बाहर आये तो तकरीबन बीस लोग वहां जाने को तैयार हो गए। हम सब को इकठे चलते देख कर, कश्तियों वाले हमारे पीछे पढ़ गए। रोज रोज उन का काम यही होता है, इस लिए उन को पता होता है कि यात्री कहाँ जाते हैं। कहाँ जाना है ! नूबियन विलेज ? क्रॉकोडाइल आइलैंड ? बॉटनिक गार्डन ?, आई हैव ए बिग फ्लूका, वैरी चीप ! इस तरह कहते हमारे पीछे आने लगे। मोल भाव करने में मैं इतना अच्छा नहीं हूँ लेकिन जसवंत बहुत अच्छा है। गोरे भी काफी एक्सपर्ट हैं क्योंकि वोह तो घुमते ही रहते हैं। एक बात और भी थी, हर जगह लोग ब्रिटिश पाउंड की मांग करते थे लेकिन हम ने कहीं भी ब्रिटिश पाउंड नहीं दिया क्योंकि हम को पता था कि एक ब्रिटिश पाउंड के दस इजिप्शियन पाउंड हो जाते हैं। एक गोरे ने हर एक के बीस इजिप्शियन पाउंड में उन से बात कर ली। हम ने नूबियन विलेज जाना था। धीरे धीरे सब लोग एक फ्लूका में बैठ गए और वोह इज्पिशियन चपू से बोट को पानी में ले जाने लगा। दरियाए नील काफी चौड़ा है लेकिन पानी शांत था। सेफ्टी जैकेट किसी के लिए भी नहीं थी। कुछ गोरे खुसर फुसर कर रहे थे लेकिन वोह इज्पिशियन बोलने लगा कि उस को यह कश्ती चलाते बीस वर्ष हो गए थे और वोह तो कई कई दिन, रात को इस में ही सो जाता है। यह इजिप्शियन होगा कोई चालीस पैंतालीस का और बहुत अछि इंग्लिश बोलता था। इस शख्स के कपडे बहुत ही साधाहरण थे जैसे हमारे देश में गरीब लोगों के होते हैं। मुझे तो वोह इंडियन ही लग रहा था। कुछ गोरे उस की ज़िन्दगी के बारे में सवाल कर रहे थे कि वोह रोज़ाना कितने घंटे काम करता था। एक गोरी पे मुझे कुछ हंसी भी आई, जब उस ने पुछा कि वोह कभी हॉलिडे के लिए भी जाता है ?, वोह इजिप्शियन बोला कि बोट की लाइसेंस फी ही बहुत थी और किसी दिन इतने यात्री मिलते नहीं क्योंकि कश्तियों वाले और भी बहुत थे। कई कई दिन वोह घर जाता ही नहीं था और फिर उस ने बोट की एक तरफ से एक लकड़ी का टुकड़ा एक ओर किया और हम सब ने देखा, एक साधाहरण सा बिस्तर लगा हुआ था। यह जगह कोई इतनी नहीं थी, जिस को सोने की जगह कही जा सके। सारे गोरे चुप हो गए लेकिन मैं तो समझता था कि यह बातें हमारे देश में तो साधाहरण हैं। मैं तो खुद अपने खेतों में बहुत दफा सो चुक्का हूँ। मैं तो अपने छकड़े पर भी सो चुक्का हूँ लेकिन गोरे यह बातें समझ ही नहीं सकते। हॉलिडे के लिए इन लोगों का सोचना ही मूर्खता होगी क्योंकि यहां तो बात रोज़ी रोटी की थी।
एक बात थी, यह फ्लूका भी हमारी क्रूज़ बोट की तरह ही धीरे धीरे चल रही थी। दरिया के किनारे बैठे बच्चों को देख कर भारत के बच्चे ही परतीत हो रहे थे। कभी वोह हम की ओर हाथ हिलाते तो हम भी जवाब देते। कभी कोई क्रूज़ बोट रास्ते में मिलती तो उस के सन्न डैक पर बैठे लोग हम को वेव करते और हम भी हंस कर जवाब देते। कोई आधा घंटा फ्लूका चलती रही और फिर एक जगह आ कर उस ने खड़ी कर दी। अब हम ने बाहर निकलना था, तो यह काम थोह्ड़ा मुश्किल लग रहा था। उस ने बोट से किनारे तक एक लकड़ी रख दी, जिस पर हम ने चलना था। था तो यह तकरीबन दस बारह फुट का रास्ता लेकिन लकड़ी की चौड़ाई मुश्किल से दस बारह इंच होगी। जब सारे उत्तर गए तो फ्लूका वाला शख्स बोला कि आगे नूबियन लोग रहते हैं, यह इज्पिट के पुराने लोग हैं और इन की अपनी ही सभ्यता है, अपने ही रीती रिवाज़ हैं और सभी एक जगह ही रहते हैं। अब सभी किनारे से ऊपर चढ़ने लगे क्योंकि नूबियन लोगों के घर काफी ऊंचाई पर थे । जैसे ही हम बस्ती में जाने लगे, पंदरां बीस बच्चे हमारे इर्द गिर्द आ खड़े हुए। एक गोरी ने अपने हैण्ड बैग से स्वीट्स का लफाफा निकाला और बच्चों को एक एक स्वीट देने लगी लेकिन कुछ ही देर में एक लड़का पीछे से आया और गोरी के हाथ से वोह लफाफा ही छीन कर ले गया। गोरी का सारा मोह पियार गुस्से में बदल गया और बोली, ” bloody devil !”, मुझे मन ही मन में इंडिया याद आ गया क्योंकि ऐसा ही हमारे समय गाँव में होता था। दोनों तरफ ऐसा दिखाई दे रहा था जैसे मैं इंडिया के किसी गाँव में आ गया हूँ। एक ओर आम के बृक्ष थे और कुछ अन्य किसम के थे लेकिन लगता था, किसी खेत में बृक्ष खड़े हों। एक गली में दाखल हुए तो देखा गली के बीच में से घरों का गन्दा पानी बह रहा था लेकिन दोनों तरफ सफाई थी। चलते चलते जब दाईं ओर मुड़े तो गली के दोनों तरफ जो मकान थे, बिलकुल ही इंडिया जैसे थे, पक्के और खिड़कीआं तो बिलकुल वोह ही थीं जो इंडिया में लोहे की सीखों से बनी होती हैं । वोह फ्लूका वाला शख्स हमारे आगे था और कुछ बता भी रहा था लेकिन पीछे होने की वजह से हम सुन नहीं सके थे। गली के बच्चे हमारे इर्द गिर्द थे। कभी कभी वोह इजिप्शियन उन बच्चों को अपनी भाषा में झिड़कता, वोह चले जाते लेकिन कुछ देर बाद फिर आ जाते, शायद यह तमाशा उन के लिए रोज का था।
कुछ ही देर में उस ने हमें एक घर के भीतर आने को बोला। एक एक करके सभी आ गए। फिर उस ने हमें एक कमरे में दाखल होने को बोला और हम अंदर जाने लगे। कमरा इतना बड़ा तो नहीं था लेकिन सभी अंदर आ गए और बैठ गए। अंदर टीवी चल रहा था और कोई इजिप्शियन फिल्म चल रही थी। दो औरतें बैठी थीं, जिन्होंने पर्दा बिलकुल नहीं किया हुआ था। वोह स्लाईओं से कोई चीज़ बुन रही थीं, लगता था कोई हैण्ड बैग होगा या मेज़ के ऊपर का कोई कुछ सजावट के लिए कुछ हो, जो भी वोह बुन्न रही थीं बहुत सुन्दर डिज़ाइन था जिस के सुन्दर रंग अभी तक मुझे याद हैं । वोह औरतें उठ कर अंदर चली गईं। कमरे का भीतर भी बिलकुल इंडिया जैसा दिखाई देता था और दीवार पर कुछ फोटो लगी हुई थीं, जिन में नासर की तस्वीर भी थी। याद नहीं उस इजिप्शियन ने नूबियन लोगों के बारे में किया किया बातें बताईं लेकिन एक बात थी कि यह नूबियन लोग कुछ ज़्यादा काले रंग के थे, जैसे सूडानी या समाली लोग होते हैं। इस से एक बात तो साफ़ हो जाती थी कि इन लोगों के बज़ुर्ग जो कभी इजिप्ट पर राज करते थे और फैरो कहलाते थे, उन का रंग भी ऐसा ही होगा। कुछ देर बाद वोह औरतें फिर अंदर आ गईं। उन दोनों के हाथ में चाय के कपों से भरी दो ट्रे थीं। इस चाय का रंग गुलाबी रंग था और कप शीशे के थे, जिस की वजह से चाय बहुत सुन्दर लग रही थी। इस चाय में दूध बिलकुल नहीं था, बस गुलाबी रंग का गाड़ा शरबत ही दिखाई दे रहा था। हर एक को एक एक कप दिया गया। सच बताऊँ, ऐसी चाय ज़िन्दगी में पहली दफा पी और इतना मज़ा आया कि अभी तक भूलता नहीं। यूं तो इंगलैंड में हैल्थ शॉप से कई तरह की चाय मिलती है लेकिन ऐसी चाय फिर कभी नहीं पी। हर कोई लवली लवली बोल रहा था। जब सब ने चाय पी ली तो फिर औरतें अपना बनाया हुआ हैंडी क्राफ्ट दिखाने लगीं, जिस में बहुत कुछ था। काफी लोगों ने कुछ ना कुछ खरीद लिया, मैं और जसवंत ने भी छोटे छोटे हैंड बैग खरीदे।
अब वोह इजिप्शियन सब को घर के ऊपर छत पर ले आया। इंडिया जैसी ईंटों की सीडीआं थी। ऊपर एक कोने में एक ए सी पड़ा था जिस को जंगाल लगा हुआ था, शायद खराब हो गया हो। यह ए सी बिलकुल इंडिया का बना लगता था जो उस वक्त इंडिया में होते थे, शायद इंडिया से इम्पोर्ट हुआ हो। छत के इर्द गिर्द सेफ्टी के लिए जंगला बना हुआ था। गोरे लोग तो सारी दुनिआं घुमते रहते है, इसी लिए बोल रहे थे कि इन नूबियन लोगों का स्टैंडर ऑफ लिविंग बहुत अच्छा था। हमें भी ऐसा ही लगा था क्योंकि ना तो बहुत गरीबी दिखाई देती थी और ना ही अमीरी। छत पर से दूर दूर तक देख कर ऐसा लगता था, जैसे भारत के किसी गाँव में कुछ लोगों के घर अच्छे होते हैं और कई लोगों के कुछ छोटे। कुछ देर छत पर गाँव का नज़ारा देख कर नीचे आ गए और वोह इजिप्शियन हमें गाँव के भीतर ले आया। वहां बहुत सी दुकाने थीं और एक तरफ उन की एक मस्ज़िद भी थी। यह एक बाजार जैसा था और कुछ युवा लड़के मोटर बाइक पे इधर उधर जा रहे थे। गोरे लोगों ने कुछ ना कुछ यहां से भी खरीद लिया लेकिन हमें कुछ ख़ास दिलचस्प नहीं लगा। अब हम वापस फ्लूका की ओर आने लगे। एक एक करके सभी फ्लूका में बैठ गए और वापस क्रूज़ बोट की तरफ चल दिए। जब वापस आये तो लंच का वक्त हो गया था।
खाना खा कर बातें करने लगे कि अब कहाँ जाना था। फैसला हुआ कि क्रॉकोडायल आइलैंड जाया जाए। क्रूज़ बोट से निकल कर फिर हम ने एक फ्लूका ले ली और क्रॉकोडायल आइलैंड की तरफ चल दिए। यहां पहुँचने में एक घंटा लग गया। जब हम पहुंचे तो वहां बहुत ही कश्तियाँ खड़ी थीं और इज्प्शिन लोग बच्चों के साथ आये हुए थे। ऊपर जाने का रास्ता इतना अच्छा नहीं था। एक एक करके टिकट ले कर आगे जा रहे थे। जब हमारा ग्रुप आ गया तो इकठे चलने लगे। आगे बहुत ही सुन्दर पार्क थी जिस में तरह तरह के बृक्ष थे जो हम ने पहले कभी नहीं देखे थे। सुन्दर सड़कें और दोनों तरफ सुन्दर फूल और पेड़, कुछ छोटे, कुछ बड़े और कई बहुत ऊंचे थे जो खजूर के थे। इस को क्रॉकोडायल आइलैंड क्यों कहते होंगे, मुझे समझ नहीं आया क्योंकि जब आगे गए तो छोटा सा चिड़िया घर जैसा एरिया था, यहां तरह तरह के जानवर थे लेकिन क्रॉकोडायल सिर्फ एक ही था। सेफ्टी के लिए इर्द गिर्द बड़ी फैन्स बनाई हुई थी। यह जानवर देख कर इतना मज़ा नहीं आया लेकिन यह सारा पार्क ही बहुत बढ़िया था, आगे एक रैस्टोरैंट था, खाने के लिए बाहर ही मेज़ कुर्सीआं रखे हुए थे। खाना तो हम खा के आये थे लेकिन हम ने आइस क्रीम का ऑर्डर दे दिया। यह आइस क्रीम भी एक याद बन कर ही रह गई है क्योंकि यह बहुत ही स्वादिष्ट थी। घंटे डेढ़ घंटे तक यहां हम रहे और फिर वापसी शुरू हो गई। यह भी एक शॉर्ट विज़िट ही थी।
क्रॉकोडायल आइलैंड से वापस आ कर सभी सन डैक पर आ गए। वेटर घूम रहा था और हम ने उसे कॉफी और केक लाने को बोल दिया। कुछ गोरे स्विमिंग पूल में नहाने लगे। जसवंत बोला,” मामा ! चल बाहर चलते हैं “, उठ कर हम सड़क पर आ गए। आगे गए तो इंडिया की तरह ही रेहड़ियों पर दुकानदार खाने की चीज़ें बेच रहे थे लेकिन सब चीज़ें इंडिया से भिन्न थीं। एक जगह बहुत से टाँगे खड़े थे और वोह हमारे पीछे पड़ने लगे लेकिन हम ने उन्हें बता दिया की हम शॉपिंग करने के लिए आये हैं। आगे छोटी छोटी दुकानों से बना छोटा सा शॉपिंग माल था और सभी दुकानें इंडिया जैसी ही थी। एक दूकान सोने चांदी के गहनों की थी। दुकानदार उठ कर आ गया और हमें भीतर ले आया। उस ने बहुत कुछ हम को दिखाया लेकिन हम ने गहने तो खरीदने नहीं थे। एक चीज़ जो उस ने बताईं, उस की ओर हम आकर्षित हो गए। वोह थी, गहनों के ऊपर पुरानी इजिप्शियन भाषा में नाम लिखना। उस ने कुछ गहनों के ऊपर इजिप्शियन भाषा में लिखा हुआ दिखाया, जो हमें पसंद आ गया। जसवंत ने एक चांदी की चेन और उस में बड़ा सा पेंडिट पसंद किया और उस के ऊपर दुकानदार को अपने बेटे का नाम लिखने को बोल दिया। इस पैंडेट की कीमत सिर्फ सौ इजिप्शियन पाउंड थी और यह मुझे भी पसंद आ गया और मैंने अपने पोते ऐरन के लिये खरीद लिया और उस के ऊपर ऐरन का नाम एंग्रेव करने को कह दिया। उस के पास पुरातन इजिप्शियन भाषा का अल्फाबेट था। जो पेंडिट पे लिखा जाना था, उस ने हमें दिखा दिया। एक घंटे बाद दुकानदार ने हमें आने को बोल दिया। पैसे दे कर हम बाहर आ गए और बाजार की तरफ चल पड़े। आगे कुछ बच्चे पुरानी इजिप्शियन भाषा की लीफलेट बेच रहे थे, जिन पर साथ साथ इंग्लिश के लफ्ज़ लिखे हुए थे। हमें यह दिलचस्प लगा और एक एक हम ने खरीद ली। यह भाषा भी अजीब ही थी। इस के अक्षर ऐसे थे जैसे तोते, चिड़िआं, सांप हों। बहुत अजीब अक्षर थे। इस को समझना तो आसान नहीं था लेकिन हमारे लिए यही बहुत था कि अगर हम ने कोई नाम लिखना हो तो कौन कौन से इजिप्शियन अक्षर लिखने थे।
लुक्सर के बाजार में हम आ गए थे। जैसे जैसे हम आगे चलते गए, लग रहा था, हम इंडिया के बाजार में ही घूम रहे हैं, दालें मसाले उसी तरह बोरियों में रखे हुए थे और बोरियों के मुंह खोल कर सब तरफ मुड़े हुए थे। रंग बरंगे मसाले जो इंडिया जैसे तो नहीं थे लेकिन उन में से अरबी मसालों की खुशबू आ रही थी। कुछ आगे गए तो एक छोटा सा पोस्ट ऑफिस दिखाई दिया। जसवंत बोला, ” मामा कुछ पोस्ट कार्ड और स्टैम्प ले लेतें हैं ताकि हम इंग्लैंड को भेज सकें। वहीँ हम ने लिखे और वहीँ पोस्ट कर दिए लेकिन वोह इंग्लैंड कभी पहुंचे ही नहीं। एक घंटा बीत चुक्का था और हम वापस उस सुनार की दूकान में आ गए। पेंडिट उस ने तैयार कर दिए थे और ले कर हम बोट की तरफ चल दिए। आज रात का खाना खा कर हम ने यहां से रुखसत हो जाना था। अनीता और उस की माँ पहले ही किसी और होटल में चले गई थीं। कुछ लोगों की आज यह आख़री रात ही थी और उन्होंने वापस इंग्लैंड आ जाना था, दो निऊज़ीलैंडर थे, उन्होंने भी सुबह चले जाना था। मैं और जसवंत बार में बैठ कर बीअर पीने लगे और कुछ देर बाद हम काउंटर पर आ कर अपना हिसाब किताब चुकता करने लिए, मैनेजर के साथ बातें करने लगे। एक हफ्ते के 1600 इजिप्शियन पाउंड बने थे। पैसे दे कर रिसीट ली और फिर अपने पासपोर्ट और टिकटें भी ले लीं और कमरे में आ कर अपना सामान बाँध लिया । अब हम डाइनिंग हाल की ओर चले गए। दस बजे कोच ने आना था। डाइनिंग हाल में आ कर मज़्ज़े से खाना खाया और इस के बाद सभी उठ कर अपने अपने कमरों में से सामान लाने चले गए। सामान ले कर सभी हाल में आ कर कोच का इंतज़ार करने लगे। ठीक दस बजे कोच आ गई। सभी बैठ कर चल पड़े। कुछ रास्ते में उत्तर कर किसी और होटल में चले गए। कोई दस गोरे और हम दोनों जब एक होटल के पास आ कर खड़े हुए तो ऊपर देखा, लिखा हुआ था होटल विंटर पैलेस। होटल से डार्क ब्राऊन रंग की यूनिफार्म पहने हुए कुछ आदमी हमारा सामान भीतर ले जाने लगे। चलता. . . . . .