गद्दारों की टोली में
देखो हाहाकार मचा है गद्दारों की टोली में है प्रयास में फिर भी सत्ता आ न सकेगी झोली में कुर्सी
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Read Moreनई मुद्रा के अभाव में गांव के किसान रामचरित्र मानस की चौपाई का सहारा ले कर असंतोष जता रहे है
Read Moreदिल है पहलु में मगर इक कमी सी रहती है उसकी आवाज़ में बड़ी ख़ामोशी सी रहती है जिनकी पलकों
Read Moreभड़की ज्वाला खूँ की प्यासी, सरहद भरती है हुंकार| उबल पड़ा फिर लहू हिन्द का ,सुनकर साँपों की फुफकार||
Read Moreपर्दा जो उठ गया तो हुआ काला धन तमाम चोरों की ख्वाहिशों के जले तन बदन तमाम बरसों से जो
Read Moreसंदीप स्वयं को आधुनिक मानता था. उसका कहना था कि जैसा ज़माना हो उसके अनुसार ही चलना चाहिए. ज़माने के
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