लघुकथा

लकड़ी

लकड़ियों के ढेर को देखकर रवि ने आते ही खींज निकाली! सुमन तुम सफाई पर कोई ध्यान नहीं देती क्या? दो तीन दिन से यह लकड़ियों का ढेर देख रहा हूँ आखिर क्या करना है इनका!
सुमन रवि के पास आकर अपने आँसुओं को रोक नहीं पाई और रवि से वादा लिया कि वो उसे मना नहीं करेगा, ना कुछ कहेगा इस बारे में। सुमन ने कहा कि उसके मायके के पास एक घर है वहां एक लड़की काम करती है बहुत ही मेहनती और इमानदार है कभी कभी रास्ते में मिलती है, जिनके वहां काम करती है उनसे पिछली बार बात हुई थी तो वो बता रही थी कि यही इकलौता सहारा है अपने बूढ़े मां बाबा का इसीके खर्चे से घर में चुल्हा जलता है और दो वक्त की रोटी खाते हैं। पर अब मुशकिल से समय निकल रहा है। बीमारी घर पर हो तो कितना पैसा लगता है। एक भाई है पर वो अलग रहता है उसे कोई सरोकार नहीं है मां बाबा से, अब तो इसके बाबा भी बहुत बीमार हो गए हैं बचने की कोई उम्मीद नहीं। अब हम ही कितनी मदद कर सकते हैं, किसी का मन करे तो थोड़ी मदद कर देता है। रवि मैने इसिलिए भौला भैया से कहकर कुछ लकड़ियां मंगावाई हैं। अब बीमार को तो खाना चाहिए ना !अभी रोटी के अलावा भी उस लड़की पर दवाई बगैरह का खर्च बड़ा है जिससे वह बहुत परेशान है खुद किसी से तो नहीं कहा। चुपचाप मेहनत करती है,अगर चार दिन इन लकड़ियों से किसी के घर का चुल्हा जलता है तो क्या फर्क पड़ता है। रवि ने मुस्काते हुए अपनी जेब से कुछ रूपए निकाले और सुमन को देते हुए कहा कि कल ही मायके जाना और उस बहादुर और मेहनती लड़की को यह पैसे भी देना और कहना कि वो हिम्मत रखे।
कामनी गुप्ता***
जम्मू !

कामनी गुप्ता

माता जी का नाम - स्व.रानी गुप्ता पिता जी का नाम - श्री सुभाष चन्द्र गुप्ता जन्म स्थान - जम्मू पढ़ाई - M.sc. in mathematics अभी तक भाषा सहोदरी सोपान -2 का साँझा संग्रह से लेखन की शुरूआत की है |अभी और अच्छा कर पाऊँ इसके लिए प्रयासरत रहूंगी |