तीन नदी मिल संगम
मित्रो की हर लिस्ट देख ,
यारा चकराया ।
एक चौवालिस यार ,
बखूबी निभा न पाया ।
कभी पृष्ठ मै खोल सका ना ,
उसका शिकवा गिला मुझे ।
मित्र – मित्र की लिस्ट को देखा
कितना स्तर गिरा मेरा ।
फिर भी है संतोष ये यारों,
मित्र -मित्र सा मिला मुझे ।
नही हजारी की चाहत है
सौ में खुश हूँ यारा ।
तीन अंक में तीन लोक है
चार से चौपट सारा ।
तीन विधा साहित्य क्षेत्र में
तीन देव सुर पुर में ।
भारत में है तीन व्यवस्था [कार्य ,व्यवस्था ,न्याय]
तीन नदी मिल संगम ।
— राजकिशोर मिश्र ‘राज’ प्रतापगढ़ी