दिन पलता ढलता रहता है
दिन पलता ढलता रहता है, काल चक्र चलता रहता है।
कभी अँधेरे कभी उजाले, खेल यही चलता रहता है॥
चट्टानों के चीर के सीने राह बनाता चल…
दीप जलाता चल आशा का दीप जलाता चल..
कदम कदम पर शूल बिछे हो, राहों में चट्टान खडी हो।
रोके राह भले ही तूफां, मुश्किल सीना तान खडी हो॥
संघर्षो का एक नया इतिहास बनाता चल…
दीप जलाता चल आशा का दीप….
चलने जा है नाम ज़िन्दगी, रुकना मौत निशानी है।
कहीं हौसले का दुनियाँ में, नही कही कोई सानी है॥
लिये हौसले तू हर मुश्किल से टकराता चल…
दीप जलाता चल आशा का दीप…
जीवन मौत उसी के हाथों, जगत नियंता एक वही।
प्राण प्राण मे वही समाहित, पालक हंता एक वही॥
सार्वभौम सत्ता उसकी, सबको बतलाता चल…
दीप जलाता चल आशा का दीप….
चाहे जो हो लेकिन, सच्चाई की हार नही होती।
नाव झूठ की कभी भँवर से देखो पार नही होती॥
तर जायेगा सच को तू, पतवार बनाता चल…
दीप जलाता चल आशा का दीप….
सतीश बंसल