कहानी

कहानी : पगली

मैं जिस विद्यालय में उपप्रचार्या के पद पर कार्यरत थी,  उसी विद्यालय में एक सुमिता. नाम की  स्त्री मेरे कार्यालय की साफ सफाई का काम करती थी । प्रतिदिन आठ बजे प्रातः आकर वह अपना काम बहुत ही लगन से करती थी । स्कूल के छोटे छोटे बच्चों का बहुत ध्यान रखती थी । मैं जब स्कूल में पहुंचती तो वह बड़े आदर से गुड मोर्निंग करती थी । मेरे प्रति उसका अपनत्व कुछ अधिक था ।
एक दिन बातों ही बातों में जब मैंने उससे उसके परिवार के विषय में पूछा तो उसने बताया कि उसने विवाह नहीं किया है । वह अपने भाई भाभी के साथ रहती है । कक्षा बारहवीं तक पढ़ी है । एक दिन भाभी के कहने पर भाई ने उसे घर से निकाल दिया था । काम की तलाश में निकली थी तो पपिया मेम ने ( होस्टल इंचार्ज ) इस स्कूल में गर्ल्स हॉस्टल में रख लिया । सुबह स्कूल में तथा स्कूल समाप्त होने के बाद गर्ल्स हॉस्टल की साफ सफाई व छोटे छोटे बच्चों का ध्यान रखना उसका कार्य था । वह पूरी ईमानदारी से अपने काम को करती थी । स्कूल के सभी लोग उसके काम से खुश थे ।
अब मैं सुमिता के व्यक्तित्व के विषय में आपको बता दूँ । सुमिता यही कोई चालीस बयालीस (40-42) साल की होगी । उसकी कद काठी कुछ इस तरह थी – उसका रंग सांवला लगभग पाँच फुट लम्बी व साधारण नैन नक्श वाली पैतालीस (45) किलो वजन की थी । वह जाति से बंगाली थी । हमेशा साड़ी पहनती थी । पान की बहुत अधिक शौकीन थी । पान का एक छोटा सा बैग हमेशा उसके पास रहता था । कभी कभी मुझसे कहती मेम एक पान खिला दीजिए तो मैं उसे पान के लिये कुछ रूपये दे देती तो वह बहुत खुश हो जाती और झटपट चाय बना कर ले आती थी । वह मेरा बहुत कहना मानती थी । कंधे पर एक बैग लटका कर चलती थी । एक दिन मैंने उससे पूछ लिया। सुमिता इस बैग में क्या क्या है ?  तो उसने दिखाया एक डायरी पैन और कुछ पुस्तकें,  जो वह हमेशा अपने पास रखती थी ।
वह प्रतिदिन डायरी लिखती थी और डायरी भी अंग्रेजी में लिखती थी । उसकी अंग्रेजी अच्छी थी। सभी अध्यापक अध्यापिकाओ तथा बच्चों के साथ वह अंग्रेजी में ही बात करती थी । मेरे साथ भी उसकी वार्तालाप अंग्रेजी में ही होती थी । डायरी में वह अपने पूरे दिन की दिनचर्या लिखती थी । मोबाइल फोन भी उसके पास था । उसने मेरा फोन नंबर भी अपने पास ले रखा था । इसलिए अक्सर मुझे मिस कॉल देती थी । फिर मैं फोन लगाकर उसके हालचाल पूछ लेती थी । उसको मेरे साथ बात करना अच्छा लगता था ।
इधर कुछ दिनों से उसके व्यवहार में परिवर्तन आने लगा था । वह कार्यालय तथा स्कूल का काम भी नहीं करती थी । बल्कि सभी लोगों को अंग्रेजी में अपशब्द ( गालियां ) देने लगी थीं । विद्यालय के सभी लोग उसके इस व्यवहार से आश्चर्यचकित थे तथा परेशान भी हो रहे थे । होस्टल के बच्चों के साथ भी उसका व्यवहार अच्छा नहीं था ।
कभी कभी वह अकेले खड़े होकर बुदबुदाती रहती थी । हाथ उठा कर बात करने लगी थी । उसकी मानसिक अवस्था ठीक नहीं लग रही थी । उससे तंग आकर स्कूल के मालिक ने उसे स्कूल से निकाल दिया था । वह रोयी चिल्लाई पर सब बेकार । उसकी बात नहीं सुनी गई वह बोली सर मेरा कोई नहीं है मैं कहाँ जाऊँगी ? कहाँ रहूँगी.?  पर उसकी बात नहीं सुनी गई क्योंकि उसकी वजह से स्कूल का वातावरण दूषित हो रहा था
मैंने उसे दूसरी जगह काम पर रखने की बहुत कोशिश की परंतु सब व्यर्थ क्योंकि वह काम करना ही नहीं चाहती थी ।
मैंने उसे गुरूद्वारे में काम दिलवा दिया था । ज्ञानी जी ने कहा – गुरूद्वारे में उसको कमरा दे देंगे वह आराम से यहाँ रह सकती है । किन्तु सुमिता वहां पर नहीं रही वह ज्ञानी जी को टाटा बाय बाय करके भाग गई । अब उसकी मानसिक अवस्था दिन प्रतिदिन बिगड़ती जा रही थी ।
गुरूद्वारे से भागने के बाद सुमिता कहाँ गई किसी को कुछ पता न था । चार – पाँच महीने हो गए थे और हम सभी उसको भूल सा गए थे । मैं मन ही मन उसके विषय में सोचती रहती थी कि सुमिता कहाँ होगी कैसी होगी ?
एक दिन अचानक विद्यालय जाते समय मैंने उसको शनि मंदिर के पास एक सब्ज़ी वाले से ऊँची आवाज में अपशब्द बोलते व झगड़ते देखा । उसके हाथ में एक थैला था । वह जोर जोर से सब्जी वाले को गालियाँ दे रही थी । मेरी इच्छा हुई कि मैं गाड़ी से उतरकर उसके साथ बात करूं पर कुछ जगहों पर हमारी पोशाक आड़े आती है । मैं अपने पति के साथ थी इसलिए भी मैं नहीं उतर सकी क्योंकि पुरूष प्रधान समाज में सिर्फ पुरूष की ही आज्ञा शिरोधार्य होती है । मैं मन मसोस कर रह गई । मेरे पति को इस तरह सड़क पर किसी से बात करना पसंद न था ।
यह बात भी आई गई हो गई । उसके बाद भी सुमिता का एक दो बार मेरे पास फोन आया था । फोन में मुझे उसकी बात समझ में नहीं आती थी । क्योंकि वह मुँह में पान खाकर बात करती थी । आमने सामने तो हाव – भाव से भी अर्थ निकाल लिया जाता है ।
उसने फोन में मुझे बताया कि वह अपने भाई के घर मोरान में है । यह सुनकर मुझे बहुत तसल्ली हुई कि वह राजी खुशी अपने भाई – भाभी के साथ रह रही थी ।
इस बात के लगभग एक महीने बाद मैंने फोन लगाया तो पता चला यह नम्बर कटा हुआ है । सोचा फोन में बैलेंस नहीं होगा । फिर इस तरह दो ढाई महीने और बीत गए उसकी कोई खबर न थी । मैंने तो सोचा था  कि वह अपने भाई – भाभी के साथ मोरान में रह रही है इसलिए मैं निश्चिंत होकर सुमिता को लगभग भूल ही गई ।
इधर कुछ दिनों से मेरा स्वास्थ्य ठीक नहीं चल रहा था । पेट दर्द की समस्या से घिरी थी । इसलिए डॉक्टर के कहने पर मैं अपने पति के साथ खून की जाँच करवा कर अल्ट्रा लैब से वापस आ रही थी कि रास्ते में मैंने एक स्त्री को देखा जिसके वस्त्र अस्त- व्यस्त थे । वेश भूषा मैली – कुचैली थी । बालों में अनेक रंगों के धागे व रिबन बाँधे हुए थे । पैर में चप्पल नहीं थी । मुँह से बच्चों का खिलौना बिगुल बजा रही थी । दूर से मेरी निगाह उस स्त्री पर पड़ी तो मैं पहचान न सकी और मुझे लगा कोई पगली स्त्री है । पर पास में जाने पर पता चला कि यह पगली कोई और नहीं मेरे विद्यालय की आया सुमिता ही थी । मन को बहुत ठेस लगी । एक कसक सी में उठी नियति बड़ी प्रबल होती है । जिस स्त्री को मैंने बिल्कुल ठीक अवस्था में अंग्रेजी में बात करते देखा था । उस स्त्री को इस अवस्था में देखना मेरे लिए आसान नही था ।
यह समाज के बड़े – बड़े ठेकेदार किसी निर्बल का खून चूसने में कोई कसर नहीं  छोड़ते । किसी व्यक्ति की मानसिक अवस्था को विक्षिप्त अवस्था तक पहुँचने में इनकी बड़ी भूमिका होती है । हम सब का स्वभाव ही कुछ ऐसा होता है कि जीवित को वस्त्र नहीं देते पर मरे हुए को कफ़न दे देते हैं । अच्छे भले इंसान को काम नहीं देते. भोजन नहीं देते पर भिखारी को पागल को पैसे देते हैं । भोजन देते हैं । अगर हम सब समाज के लोग अच्छे भले इंसान का ध्यान रखें उसे समय रहते काम दे । उसके जीवन की समस्याओं का समाधान करने की कोशिश करें तो इस तरह यह पागलों की सेना तैयार नहीं होगी । अन्यथा आज मुझे सुमिता पगली के रूप में दिखाई दी कल अनिता सुनिता दिखाई देंगी । सिर्फ दुख प्रकट करने से कुछ नहीं होगा । हमें उनकी सहायता करनी होगी।
सुमिता के पागल होने के चार पांच महीने ही हुए होंगे कि एक दिन शनि मंदिर जाते हुए मैंने देखा कि एक पगली स्त्री सड़क के किनारे मरी पड़ी है वह पगली स्त्री सुमिता ही थी ।
अनायास ही मेरे हाथ भगवान का धन्यवाद देने के लिए उठ गए क्योंकि समाज ने उसकी पीड़ा नहीं समझी पर भगवान ने उसे मुक्ति दे दी । न जाने क्यों आज भी मुझे ऐसा लगता है कि अगर सुमिता को विद्यालय के काम से न निकाला गया होता तो उसकी यह अवस्था न होती ।
सरकारी गाड़ी में कुछ लोग आए और सुमिता की लाश को उठा कर ले गए मैं हाथ जोड़े आवाक सी देखती रह गई ।
यही नियति थी उस पगली की !!!
————      समाप्त ————
लेखिका – निशा गुप्ता
तिनसुकिया,  असम
राष्ट्रीय सचिव
नारायणी साहित्य अकादमी

*डॉ. निशा नंदिनी भारतीय

13 सितंबर 1962 को रामपुर उत्तर प्रदेश जन्मी,डॉ.निशा गुप्ता (साहित्यिक नाम डॉ.निशा नंदिनी भारतीय)वरिष्ठ साहित्यकार हैं। माता-पिता स्वर्गीय बैजनाथ गुप्ता व राधा देवी गुप्ता। पति श्री लक्ष्मी प्रसाद गुप्ता। बेटा रोचक गुप्ता और जुड़वा बेटियां रुमिता गुप्ता, रुहिता गुप्ता हैं। आपने हिन्दी,सामाजशास्त्र,दर्शन शास्त्र तीन विषयों में स्नाकोत्तर तथा बी.एड के उपरांत संत कबीर पर शोधकार्य किया। आप 38 वर्षों से तिनसुकिया असम में समाज सेवा में कार्यरत हैं। असमिया भाषा के उत्तरोत्तर विकास के साथ-साथ आपने हिन्दी को भी प्रतिष्ठित किया। असमिया संस्कृति और असमिया भाषा से आपका गहरा लगाव है, वैसे तो आप लगभग पांच दर्जन पुस्तकों की प्रणेता हैं...लेकिन असम की संस्कृति पर लिखी दो पुस्तकें उन्हें बहुत प्रिय है। "भारत का गौरव असम" और "असम की गौरवमयी संस्कृति" 15 वर्ष की आयु से लेखन कार्य में लगी हैं। काव्य संग्रह,निबंध संग्रह,कहानी संग्रह, जीवनी संग्रह,बाल साहित्य,यात्रा वृत्तांत,उपन्यास आदि सभी विधाओं में पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। मुक्त-हृदय (बाल काव्य संग्रह) नया आकाश (लघुकथा संग्रह) दो पुस्तकों का संपादन भी किया है। लेखन के साथ-साथ नाटक मंचन, आलेखन कला, चित्रकला तथा हस्तशिल्प आदि में भी आपकी रुचि है। 30 वर्षों तक विभिन्न विद्यालयों व कॉलेज में अध्यापन कार्य किया है। वर्तमान में सलाहकार व काउंसलर है। देश-विदेश की लगभग छह दर्जन से अधिक प्रसिद्ध पत्र- पत्रिकाओं में लेख,कहानियाँ, कविताएं व निबंध आदि प्रकाशित हो चुके हैं। रामपुर उत्तर प्रदेश, डिब्रूगढ़ असम व दिल्ली आकाशवाणी से परिचर्चा कविता पाठ व वार्तालाप नाटक आदि का प्रसारण हो चुका है। दिल्ली दूरदर्शन से साहित्यिक साक्षात्कार।आप 13 देशों की साहित्यिक यात्रा कर चुकी हैं। संत गाडगे बाबा अमरावती विश्व विद्यालय के(प्रथम वर्ष) में अनिवार्य हिन्दी के लिए स्वीकृत पाठ्य पुस्तक "गुंजन" में "प्रयत्न" नामक कविता संकलित की गई है। "शिशु गीत" पुस्तक का तिनसुकिया, असम के विभिन्न विद्यालयों में पठन-पाठन हो रहा है। बाल उपन्यास-"जादूगरनी हलकारा" का असमिया में अनुवाद हो चुका है। "स्वामी रामानंद तीर्थ मराठवाड़ा विश्व विद्यालय नांदेड़" में (बी.कॉम, बी.ए,बी.एस.सी (द्वितीय वर्ष) स्वीकृत पुस्तक "गद्य तरंग" में "वीरांगना कनकलता बरुआ" का जीवनी कृत लेख संकलित किया गया है। अपने 2020 में सबसे अधिक 860 सामाजिक कविताएं लिखने का इंडिया बुक रिकॉर्ड बनाया। जिसके लिए प्रकृति फाउंडेशन द्वारा सम्मानित किया गया। 2021 में पॉलीथिन से गमले बनाकर पौधे लगाने का इंडिया बुक रिकॉर्ड बनाया। 2022 सबसे लम्बी कविता "देखो सूरज खड़ा हुआ" इंडिया बुक रिकॉर्ड बनाया। वर्तमान में आप "इंद्रप्रस्थ लिटरेचर फेस्टिवल न्यास" की मार्ग दर्शक, "शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास" की कार्यकर्ता, विवेकानंद केंद्र कन्या कुमारी की कार्यकर्ता, अहिंसा यात्रा की सूत्रधार, हार्ट केयर सोसायटी की सदस्य, नमो मंत्र फाउंडेशन की असम प्रदेश की कनवेनर, रामायण रिसर्च काउंसिल की राष्ट्रीय संयोजक हैं। आपको "मानव संसाधन मंत्रालय" की ओर से "माननीय शिक्षा मंत्री स्मृति इरानी जी" द्वारा शिक्षण के क्षेत्र में प्रोत्साहन प्रमाण पत्र देकर सम्मानित किया जा चुका है। विक्रमशिला विश्व विद्यालय द्वारा "विद्या वाचस्पति" की उपाधि से सम्मानित किया गया। वैश्विक साहित्यिक व सांस्कृतिक महोत्सव इंडोनेशिया व मलेशिया में छत्तीसगढ़ द्वारा- साहित्य वैभव सम्मान, थाईलैंड के क्राबी महोत्सव में साहित्य वैभव सम्मान, हिन्दी साहित्य सम्मेलन असम द्वारा रजत जयंती के अवसर पर साहित्यकार सम्मान,भारत सरकार आकाशवाणी सर्वभाषा कवि सम्मेलन में मध्य प्रदेश द्वारा साहित्यकार सम्मान प्राप्त हुआ तथा वल्ड बुक रिकार्ड में दर्ज किया गया। बाल्यकाल से ही आपकी साहित्य में विशेष रुचि रही है...उसी के परिणाम स्वरूप आज देश विदेश के सभी प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में उन्हें पढ़ा जा सकता है...इसके साथ ही देश विदेश के लगभग पांच दर्जन सम्मानों से सम्मानित हैं। आपके जीवन का उद्देश्य सकारात्मक सोच द्वारा सच्चे हृदय से अपने देश की सेवा करना और कफन के रूप में तिरंगा प्राप्त करना है। वर्तमान पता/ स्थाई पता-------- निशा नंदिनी भारतीय आर.के.विला बाँसबाड़ी, हिजीगुड़ी, गली- ज्ञानपीठ स्कूल तिनसुकिया, असम 786192 nishaguptavkv@gmail.com