लघुकथा

परहेज़

वे स्टेट बैंक ऑफ इंडिया की एक सब ब्रांच में चोरी करने आए थे. यों तो चोरी के लिए चोरों की पहली पसंद बड़े नोट और ज़ेवरात होते हैं. उन्हें ले जाना भी आसान, खपाना भी आसान. आज हालात अलग थे. नोटबंदी के कारण 500-1000 के बड़े नोट बेकार हो चुके थे, लिहाज़ा चोरों ने 500 और 1000 रुपये के पुराने नोटों की गड्डियों को चोरों ने भी छोड़ दिया. इन्हें ले जाकर अपने लिए लाइन में लगने की मुसीबत कौन मोल ले! उन्होंने बैंक में लगे सीसीटीवी को डैमेज करने के बाद सेफ को खोला, लेकिन सेफ में रखे 500 और 1000 के पुराने नोटों की गड्डियों को हाथ तक नहीं लगाया. चोर करीब एक लाख रुपये के सिक्कों की थैलियों को अपने साथ लेकर चले गए. चोरों को सिक्के के थैलों को ढोने के लिए एक बड़ी गाड़ी की जरूरत पड़ी होगी. आज सिक्कों को भी मौका मिला अपनी कीमत दिखाने का! आज चोरों को भी 500 और 1000 रुपये के पुराने नोटों से हो गई परहेज़.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244