लघुकथा

अधिकार

रोज़ की तरह आज भी अलीशा ने सुबह की चाय बनाई । रोज़ ही तरह उसने खाना बनाया और राकेश ऑफिस चला गया ।
आज उसका मन नहीं लग रहा था ऑफिस में । घर में भी अलीशा से ज्यादा बात नहीं हुई थी ।
आज उनकी शादी की सालगिरह थी । हमेंशा अलीशा ठीक रात के बारह बजे बधाई देती थी । आज ऐसा कुछ नहीं हुआ , न ही उसने रात को बधाई दी न ही सुबह । राकेश कुछ न बोला चुप रहा । ऑफिस से आया , अलीशा को एक कार्यक्रम में छोड़ा और खुद अपने दूसरे कामों में लग गया।
रात को फिर उनकी मुलाक़ात हुई पर दोनों ही खामोश थे । सोते वक़्त राकेश ने अलीशा से कहा , क्या बात है अलीशा ? हमेशा तुम विश करती थीं आज तुमने कुछ नहीं कहा । ”
अलीशा ने राकेश की तऱफ देखकर कहा , ” हाँ मन नहीं हुआ , न ही उत्साह रहा इस दिन को मनाने का । हर बार मैं ही सब तैयारी करती थी तुमनेँ कभी रूचि नहीं दिखाई । इस बार मेरी रूची भी खत्म हो गयी । ”
राकेश और अलीशा पति पत्नी थे । उनका अधिकार था एक दूसरे पर । पर आज सिर्फ अधिकार बच गया था । आत्मीयता कोसों दूर हो गयी थी ।

कल्पना भट्ट

कल्पना भट्ट श्री द्वारकाधीश मन्दिर चौक बाज़ार भोपाल 462001 मो न. 9424473377