लघुकथा

बहू हो तो ऐसी हो

दीपक जब नौकरी के लिए ऑस्ट्रेलिया के लिए जा रहा था, तब दादी मां ने पोपले मुंह से कहा था- ”दीपक, वहां से गोरी मैडम ले आइयो.”
”दादी, जो काम आप लोगों को करना है, वो मुझ पर क्यों खिसका रही हैं?” दीपक हंसकर बोला था.
”दीपक, मैसेज करते रहना. सदा खुश रहो, बाइ बेटा.”
इस तरह हाइ-बाइ करता ऑस्ट्रेलिया पहुंच गया था. मां का आज्ञाकारी बेटा मैसेज करता रहा- ”मॉम, मैं बिलकुल ठीक हूं. काम भी मनपसंद है और साथी भी. मैं बहुत खुश हूं.”
मां का आशीर्वाद फल रहा था, दादी की फरमाइश भी आकार ले रही थी. अन्ना उसकी टीम में ही थी, गोरी भी थी और समझदार भी. दोनों का प्यार परवान चढ़ रहा था. दीपक को बस एक ही चिंता थी, मैं घर का अकेला चिराग हूं, विदेशी अन्ना ने घर से नाता तुड़वा दिया, तो मॉम-डैड, दादू-दादी का क्या होगा? अन्ना ने विश्वास दिलाया- ”मेरे भी मॉम-डैड हैं, ग्रैंड मॉम-ग्रैंड डैड हैं, मैं उनसे प्यार करती हूं, उनका आदर करती हूं, तुम मेरे हो जाओगे, तो वो भी तो मेरे अपने ही हो जाएंगे न!”
दीपक ने मॉम-डैड से बात की. शादी की इजाज़त मिल गई. अन्ना ने कहा- ”तुम्हारे रिश्तेदार बहुत हैं, वे तो सब आ नहीं पाएंगे, मेरे मॉम-डैड भारत चल सकते हैं, हम शादी भारत में ही करेंगे. हिंदी अच्छी तरह सीखने के लिए सिर्फ़ दो महीने की मोहलत दे दो, ताकि मैं दादी-दादू से जी भरकर बात कर सकूं. ऐसा ही हुआ और अन्ना को सबका आशीर्वाद मिला. दीपक तो ऑस्ट्रेलिया जाने से पहले अपने ज़रूरी काम निपटाता रहा, अन्ना ने अपने काम पूरे किए.
एक दिन अन्ना के पास ऑफिस में दादी मां का मिस्ड कॉल आया. अन्ना ने फोन लगाया. दादी मां रो रही थीं, ”तेरे दादू को हॉर्ट अटैक—” इतना ही कह पाईं वो. अन्ना ने चिंता न करने के लिए कहकर फोन रख दिया. उसने ई. पेमेंट करके दिल्ली के एम्स को तुरंत एम्बुलैंस भेजने के लिए फोन किया, फिर लैपटॉप पर स्कैन किए हुए कागज़ों में से दादू के हॉर्ट स्पेशलिस्ट का नम्बर निकाला और उनको कहा- ”डॉक्टर साहब, मेरे दादू को बचा लीजिएगा, खर्चे की चिंता मत करिएगा, मैं आ रही हूं, आपको सूद सहित सब दे दूंगी.”
वह ऑफिस में अर्ज़ी देकर वहीं से दिल्ली के लिए रवाना हो गई, दीपक को मैसेज किया- ”तुम अपना प्रोजैक्ट अच्छी तरह करना, मैं दादू को संभाल लूंगी.”
उसने दादू को संभाल भी लिया. दादी मां ने जी भरकर आशीर्वाद दिए, सासू मां भी निहाल हो गईं. शादी के समय पड़ोस के जो लोग कह रहे थे, ”विदेशी बहू”! आज कह रहे थे- ”बहू हो तो ऐसी हो”.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244