कवितागीतिका/ग़ज़लपद्य साहित्य

दिल है पहलु में

दिल है पहलु में मगर इक कमी सी रहती है
उसकी आवाज़ में बड़ी ख़ामोशी सी रहती है

जिनकी पलकों पे कभी शाम नहीं होती थी
हमारी शब अक्सर वहीँ तमाम होती थी
जिनकी ज़ुल्फ़ों में बोहोत पेंच-ओ-ख़म समाये थे
सावन की बारिशों के कई मौसम वहां बिताये थे
उन यादों की हवा अब भी दिल में बहती है

दिल है पहलु में मगर इक कमी सी रहती है
उसकी आवाज़ में बड़ी ख़ामोशी सी रहती है

वो जिन पेड़ों के तले हमने दिल बिताये थे
शाख पे अपने कुछ घरोंदे भी बनाये थे
खुशबु फूलों की हर तरफ महकती थी
दिल के चमन में सरगोशी सी बहती थी
सुना है वहां  एक बुलबुल अभी भी रहती है

दिल है पहलु में मगर इक कमी सी रहती है
उसकी आवाज़ में बड़ी ख़ामोशी सी रहती है

अंकित शर्मा 'अज़ीज़'

ankitansh.sharma84@gmail.com