संस्मरण

कविताओं का सफ़र (अतीत के पन्नों से )

माँ बताती हैं मैंने अपनी पहली कविता एक प्लेन क्रेश पर लिखी थी । वो अंग्रेजी में थी ,सन् 1972 शायद था जब एक प्लैन क्रैश हुआ था , सारे यात्री मारे गए थे सिर्फ एक छोटा बच्चा जीवित रहा था ।
उसके बाद कॉपियों में ऐसे ही कुछ पंक्तियाँ लिखा करती थी । माँ को पसन्द तो था मेरा लिखना पर कभी कभी डाँट भी देती थी सो चुपके चुपके लिखा करती थी । कभी कोई कागज़ उनके हाथ पड़ जाता तो डाँट पड़ती। धीरे धीरे कम कर दिया था ।
फिर कॉलेज के दौरान फिर शुरू किया था । एक डायरी बनायीं थी । उसमें अपनी भावनाओं को शब्द देने की कोशिश किया करती थी । कुछ पारिवारिक कलह ने मुझे विचलित कर दिया था , सो कुछ पंक्तियाँ उसपर लिखी थी । माँ हार्ट पेशेंट है , एक दिन वो डायरी उनके हाथ में पड़ गयी । कॉलेज से आने में देर हो गयी थी मुझे , एक्स्ट्रा क्लास थी उस दिन , और घर के माहौल ने उनकी तबियत पर अपना असर छोड़ा था । हम उस दौरान नाशिक रहते थे । वहां माँ का पुश्तैनी घर था । नाशिक में एक जगह है भदभदा , मैं वहां अक्सर जाया करती थी , झरना बहता है वहां , वहां घंटो बैठा करते थी । माँ को भी वो जगह पसंद थी ।
माँ को चिंता हुई , वो मेरे कॉलेज पहुंची पर तब तक मैं घर पहुँच गयी थी । वहां माँ को न पाकर मैं भी परेशान हो गयी थी । और कॉलेज में मुझे न पा कर वो उसी जगह मुझे तलाशने गयी । उनको लगा की मैं आत्महत्या करने चली गयी ।
असल में किशोर कुमार जी का एक गीत ” कोई हमदम न रहा … मुझे बेहद पसन्द था , आज भी पसंद है उस गीत को मैंने लिखकर रखा था । उनका बी पी बढ़ा हुआ था , तो गलत सलत सोच लिया ।
जब घर लौटी तो माँ खूब रोई , जब मैंने उनको याद दिलाया कि यह तो एक गीत है और कुछ नहीं , तब जाकर उनको सुकून मिला । पर रात फिर उनकी तबियत बिगड़ी और अस्पताल में भर्ती करवाना पड़ा । और मैंने अपनी डायरी जला दी।
अब मैंने लिखना बिलकुल छोड़ दिया था । 1989 में शादी हुई मेरी , जब बिटिया हुई फिर कुछ पंक्तियाँ लिखी । पति देवजी को पता चला तो उन्होंने भी कहा यह फ़ालतू आदत न डालो ।
सो फिर वही छुप छुप कर लिखती रही , बच्चों की ख़ाली को कॉपीयों में । और मेरे अपने रजिस्टर में ।
जब 2010 में फेसबुक ज्वाइन किया , एक वाकया हुआ , मेरी नन्द के जेठजी ने एक कविता लिखी थी , उस कविता ने मुझे बहुत प्रभावित किया तो मैंने उनके इनबॉक्स में कुछ पंक्तियाँ लिख भेजी । वे बोले , “कल्पना तुम लिखती हो ? ” मैंने कहा ,”हाँ कभी कभी अपने भावनाओं को शब्द देने का प्रयास करती हूँ । ”
उन्होंने मुझसे कहा कि अब लिखना न छोड़ना । मैंने उनसे कहा , ” छन्द लिखना नहीं आता न लय में लिखना । सब हसेंगे मज़ाक बनाएंगे । ”
इसपर उन्होंने कहा ,” जो भी हो , अब नहीं छोड़ोगी ।”
तब से यह सफर फिर शुरू किया । हाँ आज भी छंद और लय नहीं पकड़ पायी हूँ ।
ज़िन्दगी के उतार चढ़ाव के बीच बहुत कुछ पाया बहुत कुछ खोया । पर अब ये मेरी सांस बन गया है ।
सादर ।

कल्पना भट्ट

कल्पना भट्ट श्री द्वारकाधीश मन्दिर चौक बाज़ार भोपाल 462001 मो न. 9424473377