गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

 

जमाने भर की अब सुनता नही मैं
मुझे मालूम है, अच्छा नही मैं ।

बदल जाना नही फितरत हमारी
तुम्हे मालूम है, तुझ सा नही मैं ।

मुझे क्यूँ चाहते हो हद से ज्यादा
तेरी तकदीर में, लिक्खा नही मैं।

समझता हूँ सियासत आजकल की
भले दिखता हूँ, पर बच्चा नही मैं ।

मिरी फितरत भले ही आइना हो
कभी पर टूटकर, बिखरा नही मैं ।

मुझे हर शाम तुम बदला करोगे
तुम्हारी जुल्फ का, गजरा नही मैं ।

कभी गुजरा अगर रंगीनियों से
खुदा का शुक्र है,भटका नही मैं ।

— धर्म पाण्डेय