क्षणिका

रिश्तों का कैनवास

रिश्तों के कैनवास पर
दरक गई हैं
कुछ किरचें
इस कदर
कि
लगता ही नहीं
इन्हीं रिश्तों के
सुदृढ़ कगार पर बैठकर
हमने कभी
हंसने-रोने के अहसासों को
एक साथ जीवंत जिया था
एक साथ
हम आज भी हंसते-रोते हैं
पर उनमें नज़र नहीं आती
संवेदनशीलता की वह गहराई
लगता है
रिश्ते सतही हो गए हैं.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244