गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल -१

कल्पना से मेरी तस्वीर बनाने वाले
तूने देखा है कब मुझको सजाने वाले ।

रंग कितने मोहब्बत के भर दिए तूने
मेंरे होठो पर यूँ मुस्कान चढाने वाले ।

मिट्टी को तराशा किस हिफाजत से
अश्क और इश्क़ आँखो में बसाने वाले।

एक बुत में जैसे रूह बसादी है तुमनें
मैं भी ज़िंदा हूं ये महसूस कराने वाले

देखलीं जन्नतेँ मैंने तो तेरी पनाहों में
यूँ आँखो में चाँद सूरज दिखाने वाले।

बारिशों से मिट्टी हूँ पिघल जाऊँगी
होगी तकलीफ़ मुझे अपना बनाने वाले।

वक्त ए तुफां से रखसकोगे महफूज मुझे
एक खंडहर को इमारत बनाने वाले ।

हाँ आज जानिब बहार ए गुलशन है
सुन मेंरी राहों में यूं फूल खिलाने वाले।

— पावनी दीक्षित “जानिब”

*पावनी दीक्षित 'जानिब'

नाम = पिंकी दीक्षित (पावनी जानिब ) कार्य = लेखन जिला =सीतापुर