गीतिका/ग़ज़ल

गीतिका

एक टुकड़ा धूप का डूबा अगर
एक टुकड़ा रात काली हो गयी
बादलों ने तान दी चादर घनेरी
चाँद की रंगत रूहानी हो गयी

शाम के साये बढ़े दो चार पग
झींगुरों के शोर में डूबा शहर
बेरियों के झुरमुटों के बीच फिर
जुगनुओं की हुक्मरानी हो गयी

मरमरी एहसास देती चाँदनी
मखमली दूब की चादर नयी
रातरानी की महक में डूबकर
झूमती पुरवा सुहानी हो गयी

शिप्रा खरे

नाम:- शिप्रा खरे शुक्ला पिता :- स्वर्गीय कपिल देव खरे माता :- श्रीमती लक्ष्मी खरे शिक्षा :- एम.एस.सी,एम.ए, बी.एड, एम.बी.ए लेखन विधाएं:- कहानी /कविता/ गजल/ आलेख/ बाल साहित्य साहित्यिक उपलब्धियाँ :- साहित्यिक समीर दस्तक सहित अन्य पत्रिकाओं में रचनायें प्रकाशित, 10 साझा काव्य संग्रह(hindi aur english dono mein ) #छोटा सा भावुक मेरा मन कुछ ना कुछ उकेरा ही करता है पन्नों पर आप मुझे मेरे ब्लाग पर भी पढ़ सकते हैं shipradkhare.blogspot.com ई-मेल - shipradkhare@gmail.com