स्वास्थ्य

रबर नेति

मनुष्य रूपी इस यंत्र को क्रियाशील बनाए रखने के लिए इसकी सफाई व शोधन की आवश्यकता है। शरीर रूपी यंत्र का बाहरी शोधन स्नान के द्वारा हो जाता है परतु अंत: शोधन के लिए हमें अनेक प्रकार की यौगिक क्रियाएं करनी पड़ती हैं। नासिका हमारे शरीर का मुख्य प्राण मार्ग है इसलिए हमें शुद्ध प्राणवायु लेने के लिए इस नासिका रुपी मार्ग का शोधन करना बहुत ही जरुरी है। इसी मार्ग के कमजोर होने से असहिष्णुता (एलर्जी) पूरे शरीर में पैदा हो जाती है। इस मार्ग के शोधन के लिए नेति क्रिया बहुत ही आवश्यक है।

इस क्रिया के करने से नजला-जुकाम, कफ, सायनोसाइटिस, अनिद्रा, चेहरे के पक्षाघात, मस्तिष्क में जाने वाले रक्त की शुद्धि आदि लाभ प्राप्त होते है। इस शोधन क्रिया के बाद नासिका मार्ग पुरी तरह से शुद्ध हो जाता है तथा प्राणवायु पूरी मात्रा में शरीर में पहुँचने लगती है।

नेति क्रिया कई प्रकार की होती है जैसे रबर नेति या सूत्र नेति, जल नेति, दुग्ध नेति, घृत नेति, तेल नेति आदि। लेकिन नेति क्रिया मुख्यत दो प्रकार की होती है रबर नेति और जल नेति। शुरुआत में रबड़ की नली एक बहुत ही सुलभ व आसानी से प्राप्त होने वाली नेति है। एक रबर की पतली सी नली होती है। यह सर्जीकल स्टोरों पर कैथेटर के नाम से मिल जाती है। इसका एक सिरा गोल बराबर में छिद्र होकर आगे से बंद होता है तथा दूसरा सिरा खुला होता है। यह कई नम्बर की आती है। शुरू में पतली यानी 3 नम्बर की करनी चाहिए. फिर आवश्यकता के अनुसार क्रमशः 4 और 5 नम्बर की मोटी नेति की जा सकती है।

नेति करने की विधि

नेति करने के लिए पंजों के बल (कागासन में) बैठ जाएँ। एक लोटे में थोडा गुनगुना पानी रखें। अब रबर नेति को गर्म पानी में धोकर आवश्यक होने पर जरा सा सरसों का तेल लगाकर बंद सिरे की ओर से धीरे-धीरे नासिका के एक द्वार से अंदर प्रविष्ठ करें और जब वह गले में पहुँच जाये तो तर्जनी व मध्यमा उँगलियों के द्वारा मुख के अंदर से बाहर निकाल लें। फिर दोनों सिरे पकड़कर आगे-पीछे चलाते हुए दूध बिलोने जैसी क्रिया करें। इसी को नेति करना कहते हैं। इसमें जो कफ निकल रहा हो उसे निकल जाने दें।

दो तीन मिनट तक चलने के बाद नेति को मुख की ओर से खींचकर बहार निकाल लें और पानी से धो लें। उसी प्रकार दूसरे नासिका द्वार से भी करें। आवश्यक होने पर इसे शाम को भी किया जा सकता है।

नेति क्रिया के दौरान सावधानियां

इस क्रिया को धीरे-धीरे करें क्योंकि नासिका के अंदर गुलाब की पंखुड़ी जैसा कोमल मार्ग है। कभी कभी रबर नेति करने से नाक से खून निकल आता है। यह कोई घबराने की बात नहीं है। रात को सोते समय दोनों नासिका छिद्रों में बादाम रोगन, सरसों का तेल या गाय का घी डालने से खून आना बंद हो जाता है और नेति का पूरा लाभ मिलता है।

नेति क्रिया के लाभ

नेति कपाल की शोधक, कमल जैसे आंखों की ज्योति को बढ़ाने वाली एवं कंठ के ऊपर के समस्त रोगों को दूर करने वाली है। साधारण रूप से यह क्रिया जुकाम, खांसी, नजला एवं अन्य कफविकारों को दूर करती है। नेति क्रिया का उद्देश्य केवल नासिका मार्ग की शुद्धि ही नहीं बल्कि इसमें स्थित श्लेषमा झिल्ली को बाह्य वातावरण में होने वाले बदलाव धूल, धुआं, गर्मी, ठंड तथा कीटाणु आदि को सहन करने में पूरी तरह सक्षम बनाना है। यह क्रिया नाक व कंठ के अन्दर की गंदगी को बाहर निकाल कर नाक की नली को साफ करती है। इस क्रिया के नियमित करने से कंधे से ऊपर के सभी रोग समाप्त हो जाते है।

विजय कुमार सिंघल
पौष कृ. ७, सं २०७३ वि. (२० दिसम्बर, २०१६)

डॉ. विजय कुमार सिंघल

नाम - डाॅ विजय कुमार सिंघल ‘अंजान’ जन्म तिथि - 27 अक्तूबर, 1959 जन्म स्थान - गाँव - दघेंटा, विकास खंड - बल्देव, जिला - मथुरा (उ.प्र.) पिता - स्व. श्री छेदा लाल अग्रवाल माता - स्व. श्रीमती शीला देवी पितामह - स्व. श्री चिन्तामणि जी सिंघल ज्येष्ठ पितामह - स्व. स्वामी शंकरानन्द सरस्वती जी महाराज शिक्षा - एम.स्टेट., एम.फिल. (कम्प्यूटर विज्ञान), सीएआईआईबी पुरस्कार - जापान के एक सरकारी संस्थान द्वारा कम्प्यूटरीकरण विषय पर आयोजित विश्व-स्तरीय निबंध प्रतियोगिता में विजयी होने पर पुरस्कार ग्रहण करने हेतु जापान यात्रा, जहाँ गोल्ड कप द्वारा सम्मानित। इसके अतिरिक्त अनेक निबंध प्रतियोगिताओं में पुरस्कृत। आजीविका - इलाहाबाद बैंक, डीआरएस, मंडलीय कार्यालय, लखनऊ में मुख्य प्रबंधक (सूचना प्रौद्योगिकी) के पद से अवकाशप्राप्त। लेखन - कम्प्यूटर से सम्बंधित विषयों पर 80 पुस्तकें लिखित, जिनमें से 75 प्रकाशित। अन्य प्रकाशित पुस्तकें- वैदिक गीता, सरस भजन संग्रह, स्वास्थ्य रहस्य। अनेक लेख, कविताएँ, कहानियाँ, व्यंग्य, कार्टून आदि यत्र-तत्र प्रकाशित। महाभारत पर आधारित लघु उपन्यास ‘शान्तिदूत’ वेबसाइट पर प्रकाशित। आत्मकथा - प्रथम भाग (मुर्गे की तीसरी टाँग), द्वितीय भाग (दो नम्बर का आदमी) एवं तृतीय भाग (एक नजर पीछे की ओर) प्रकाशित। आत्मकथा का चतुर्थ भाग (महाशून्य की ओर) प्रकाशनाधीन। प्रकाशन- वेब पत्रिका ‘जय विजय’ मासिक का नियमित सम्पादन एवं प्रकाशन, वेबसाइट- www.jayvijay.co, ई-मेल: jayvijaymail@gmail.com, प्राकृतिक चिकित्सक एवं योगाचार्य सम्पर्क सूत्र - 15, सरयू विहार फेज 2, निकट बसन्त विहार, कमला नगर, आगरा-282005 (उप्र), मो. 9919997596, ई-मेल- vijayks@rediffmail.com, vijaysinghal27@gmail.com