राजनीति

विकास के नाम पर मुस्लिम तुष्टीकरण की सनक

उप्र सहित पांच अन्य प्रांतों के विधानसभा चुनाव नजदीक आते जा रहे हैं सभी धर्मनिरपेक्ष दलों में मुस्लिम मतों को हथियाने की होड़ तेज हो गयी है। सभी तथाकथित धर्मनिरपेक्ष दलों और सरकारों ने मुस्लिम मत पाने का खेल शुरू कर दिया है। इसमें इस बार उत्तराखंड के मुख्यमंत्री हरीश रावत के सहारे कांग्रेस पार्टी सबसे आगे निकलना चाह रही है। खबर है कि उत्तराखंड के मुख्यमंत्री हरीश रावत ने प्रदेश में मात्र 10 प्रतिशत अल्पसंख्यकों को पूरी तरह से अपने नियंत्रण में करने के लिए शुक्रवार के दिन नमाज अदा करने के लिए 90 मिनट का अवकाश देने का ऐलान किया है। हरीश सरकार का यह निर्णय पूरी तरह से सम्प्रदाय के आधार पर वोट मांगने का कृत्य है। इस फैसले की सोशल मीडिया व टी वी पर चर्चाओं के दौरान जमकर आलोचना हो रही है। इस प्रकरण पर ट्विटर वार भी छिड़ा हुआ है।

कांग्रेस सरकार ने उक्त निर्णय करके उप्र के मुसलमानों को भी परोक्ष रूप से एक संदेश भेजने का काम किया है। कांग्रेस सरकार के इस फैसले से उसका यह दावा गलत हो गया है कि वह देश की एकमात्र धर्मनिरपेक्ष पार्टी है और धर्म के आधार पर कोई फैसला नहीं करती है। उक्त निर्णय पर भाजपा का कहना है कि जब चुनाव आ जाते हैं तब सभी दलों को जुमा-नमाज सभी कुछ याद आ जाता है और चुनाव के बाद सब भूल जाते हैं। सोशल मीडिया में कहा जा रहा है कि कांग्रेस की आज देश में जो हालत हो रही है, वह इन्हीं सब कृत्यों के कारण हो रही है। ऐसा लगता है कि कांग्रेस पार्टी ने मुसलमानों का कांग्रेस के पक्ष में ध्रुवीकरण कराने का ठेका हरीश रावत को दे दिया है। कांग्रेस ने तो देश की सेना के प्रमुख की नियुक्ति को भी धर्म के आधार पर विवादित करने की साजिश रच दी। कांगे्रस ने किसी मुस्लिम को सेना प्रमुख न बनाये जाने पर मोदी सरकार को कठघरे में खड़ा करने का असफल प्रयास किया जो धराशायी हो चुका है। आज की कांग्रेस बहुत ही घटिया किस्म विकृत राजनीति पर उतर आयी है। नोटबंदी के बाद कांग्रेसी नेता कपिल सिब्बल ने अपने बयान में नोटबंदी को मुस्लिम-विरोधी करार दिया। यह कांग्रेस अब पूरी तरह से पटरी से उतर चुकी है तथा वास्तव में कांग्रेस का बुरा हाल इन्हीं सब कारणों से हो रहा है।

ऐसा प्रतीत होता है कि उत्तराखंड के मुख्यमंत्री इस पर्वतीय प्रदेश को भी हिंदू विरोधी राज्य में बदल देना चाहते हैं। हरीश सरकार का यह निर्णय पूरी तरह से धर्म के आधार पर किया गया है तथा कांग्रेसी मानसिकता की पोल खोलने वाला है। असोम में भी कांग्रेस की पूर्ववर्ती सरकार ने भी ऐसा ही कदम उठाया था। वहां जो हुआ वही अब उत्तराखंड में भी हो सकता है। वहां कांग्रेस में वैसे भी गजब की गुटबाजी चल रही है। अब कांग्रेस इस फैसले को उप्र के चुनाव प्रचार अभियान में भी भुनाने की कोशिश करेगी।

उत्तराखंड सरकार के फैसले की आलोचना बहुत ही कठोरता के साथ की जा रही है। साथ ही यह भी दावा किया जा रहा है कि जिस मुख्यमंत्री ने अपना सारा कार्यकाल केवल अपनी सरकार को बचाने में ही लगा दिया हो तथा जिस सरकार ने पाच वर्ष तक मुसलमानों के लिए कुछ भी न किया हो, उसके पास अब कोई और चारा शेष नहीं रह गया है। स्थानीय लोगों का कहना है कि मुख्यमंत्री बनने के बाद हरीश रावत ने उर्दू को बढ़ावा देने के लिए उर्दू अकादमी की स्थापना की थी, लेकिन न तो उसका अभी तक कार्यालय बना और न ही कोई कर्मचारी है। नमाज पर अवकाश के नाम पर एक बार फिर बड़ा धोखा मुसलमानों के साथ किया जा रहा है।

उप्र तो मुस्लिम मतों का सबसे बड़ा अखाड़ा बनने जा रहा है। यहां पर सबसे अधिक विकृत राजनीति देखने को मिल सकती है। उत्तर प्रदेश की समाजवादी सरकार विकासवाद के नाम पर मुस्लिम तुष्टीकरण की राजनीति खेल रही है। मुसलमानों के लिए हर हफ्ते एक नयी स्कीम लांच हो रही है तथा सपा मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने अपना पूरा दिल लुटाना शुरू कर दिया है। अभी चुनाव तारीख घोषित होने के पूर्व ही 4 हजार उर्दू शिक्षकों की भर्ती का ऐलान किया गया है। मुस्लिम समाज के लिए अल्पसंख्यक अधिकार दिवस के दिन खूब जमकर मुस्लिमपरस्त राजनीति की गयी। ऐसा प्रतीत होता है कि प्रदेश में और कोई समाज रहता ही नहीं है। मुसलमानों को सभी दलों ने अपने वोटों का गुलाम बनाकर रख दिया है। समाजवादी नेता अपनी जनसभाओं में सर सैयद जैसे लोगों को भारत रत्न देने की मांग कर रहे हैं। समाजवादी दल मुस्लिम मतों के लिए इतना तरस रहा है कि यह बात उसकी उम्मीदवारों की सूची में भी देखी जा सकती है। अतीक अहमद जैसे खूंखार बाहुबली सहित तमाम मुस्लिम बाहुबलियों को टिकट देने में उसे कोई ऐतराज नहीं है।

समाजवादी सरकार में चुनाव से पहले जितने भी विकास कार्य हो रहे हैं, वे सब मुस्लिम बाहुल्य इलाकों में ही सम्पन्न हो रहे हैं। अल्पसंख्यक अधिकार दिवस के दिन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने मुसलमानों को सुनहरे कल का सपना दिखाना शुरू कर दिया है। सपा मुख्यमंत्री ने दावा किया कि अल्पसंख्यकों को उनका पूरा हक अभी भी नहीं मिल पाया है, लेकिन फिर भी राज्य सरकार ने अपने संसाधनों वाली योजनाओं में 20 फीसदी हिस्सेदारी देकर मुस्लिमों के लिए तरक्की की राह खोली है। मुख्यमंत्री का कहना है कि समाजवादी संविधान के दायरे में अल्पसंख्यकों के हितों के लिए संघर्ष कर रहे हैं।

राजधानी लखनऊ की ईदगाह में आयोजित एक कार्यक्रम में सीएम अखिलेश यादव को मोहसिन अकलियत अवार्ड देकर सम्मनित भी किया गया। उक्त कार्यक्रम में पुराने लखनऊ का व्यापक पैमाने पर सौंदर्यीकरण करने की सिफारिश भी की गयी। सबसे मजेदार बात यह सामने आ रही है कि ईदगाह में आयोजित उक्त कार्यक्रम में जब आयोजकों ने बढ़ते अतिक्रमण की समस्या पर ध्यान आकर्षित किया तो मुख्यमंत्री ने कहा कि भाई यह लोग भी चुनाव के समय काम आते हैं, अभी कम से कम तीन माह तक कोई अतिक्रमण नहीं हटाया जायेगा। कारण साफ है कि समाजवादी हर प्रकार से उप्र की सत्ता को हथियाना चाहते हैं। इसके लिए वह हर गैरकानूनी काम करने की छूट देंगे।

प्रदेश की समाजवादी सरकार ने विकासवाद के नाम पर खूब जमकर अल्पसंख्यक तुष्टीकरण किया हैं जिसमें पर्यटन, साहित्य, संस्कृति सब कुछ शामिल किया गया है। प्रदेश में सहायता के नाम पर दी जाने वाली मुआवजा राशि भी तुष्टीकरण की भेट चढ़ गयी है। अभी हाल ही में समाजवादी सरकार ने नोटबंदी के बाद परेशान लोगों को आकर्षित करने के लिए मुआवजा राशि वितरित करने का ऐलान किया जिसमें सरकार को सबसे पहले मुस्लिम महिला अलीगढ़ के अकबर हुसैन की पत्नी रजिया मिलीं। उन्हें मुख्यमंत्री ने 5 लाख का मुआवजा देने का ऐलान किया है। जिसकी सोशल मीडिया व विरोधी दलों ने खूब जमकर आलोचना भी की है।

मुस्लिम वोटों की चाहत में बसपा भी पूरी ताकत के साथ मैदान में उतर पड़ी है। मिशन – 2017 फतह करने के लिए दलित-मुस्लिम गठजोड़ बनाने में लगी बसपा ने ”मुस्लिम समाज का सच्चा हितैषी कौन? फैसला आप करें“ नाम से एक बुकलेट जारी की है । इसमें बताया गया है कि किस तरह सपा की प्रदेश में सरकारें आई हैं तब-तब भाजपा पहले से और मजबूत हुयी है। जबकि बसपा के शासनकाल में भाजपा कमजोर हुई है। इस पुस्तिका में चुनाव के बाद भाजपा से किसी प्रकार के गठबंधन से साफ इंकार किया गया है। इसमें कहा गया है कि सपा ने मुस्लिमोें के साथ वादाखिलाफी की है। सपा ने न तो आरक्षण का वादा पूरा किया और न ही जेलों में बंद बेकसूर मुसलमानों को रिहा करने का। सभी वादे खोखले निकले। सपा सरकार में कुल मिलाकर 400 दंगे हुए। साथ ही मुजफ्फरनगर दंगों के लिए कभी सपा को माफ नहीं किया जायेगा।

बसपा यह भी कह रही है कि यदि भाजपा कमजोर नहीं हुई तो वह अब मथुरा-काशी शुरू कर देगी। आगामी विधानसभा चुनावों में बसपा कम से कम सौ उम्मीदवार तो मुस्लिम उतारेगी ही। कुछ ऐसा ही कारनामा कांग्रेस भी करने की सोच रही है। मुस्लिम मतों के धु्रवीकरण का खेल ये दल खेल रहे हैं और बदनाम भाजपा और संघ को करते हैं। इन सभी दलों ने मुस्लिम समाज को अपना मानसिक गुलाम बना लिया है। यही कारण है कि जनता के बीच समाजवादी सरकार की घटती लोकप्रियता और बहुकोणीय मुकाबले का लाभ कहीं भाजपा को न मिल जाये इसलिए भाजपा को हर हाल में रोको अभियान भी अंदर ही अंदर चल रहा है। यही कारण है कि अब सपा और कांग्रेस मुस्लिम मतों का बिखराव रोकने के लिए गठबंधन का रास्ता खोजने लग गये हैं। समाजवादी मुख्यमंत्री यह दावा कर रहे हैं कि यदि कांग्रेस के साथ गठबंधन हो जाये तो तीन सौ सीटें मिलेंगी, लेकिन फिलहाल इसमें लगातार देर होती जा रही है।

प्रदेश में इस बार मुसिलम मतों का बिखराव अवश्य होगा। औवेसी का दल सहित कई छोटे दल भी आपस में गठबंधन करके मुस्लिम मतों को अपनी ओर आकर्षित करने का उपक्रम करने जा रहे हैं। मुस्लिमों के बीच नोटबंदी और तीन तलाक का मुद्दा काफी जोर शोर से हावी होने जा रहा है। भाजपा का अनुमान है कि तीन तलाक से पीड़ित मुस्लिम महिलाओं का एक बहुत बड़ा वर्ग व कुछ पढ़ी-लिखी मुस्लिम महिलायें महिला सुरक्षा और समान अधिकार के प्रश्न पर भाजपा को भी वोट कर सकती हैं।

मृत्युंजय दीक्षित