उपन्यास अंश

आजादी भाग –१७

बड़ी देर तक राहुल के कानों में मोहन के कहे शब्द गुंजते रहे ‘ ………..ये क्या करना चाह रहे हैं कुछ पता नहीं चल रहा । ‘ राहुल के छोटे से दिमाग में मोहन के कहे शब्द बड़ी देर तक सरगोशी करते रहे । अचानक उसके दिमाग में एक विचार बिजली  सी तेजी से कौंध गया ।
जहां तक उसने इन अपराधियों के बारे में सुन रखा था इसकी वजह से वह भली भांति जानता था कि ये अपराधी किस्म के लोग कोई भी काम बेवजह नहीं करते । अब इन लोगों ने इन बच्चों को अगर पिछले पांच दिनों से यहाँ रोक रखा है तो अवश्य कोई बड़ी वजह होगी । नहीं तो ये लोग तो बच्चा जैसे ही इनके चंगुल में फंसता है उसे तुरंत ही प्रशिक्षित करके उनसे कमाने की उम्मीद करना शुरू कर देते हैं । मोहन का कथन जायज ही है कि पता नहीं ये लोग क्या करना चाहते हैं । राहुल इस दिशा में बड़ी देर तक सोचता रहा लेकिन किसी नतीजे पर नहीं पहुँच सका ।
बड़ी देर तक सभी बच्चे ख़ामोशी से बैठे रहे । अचानक दरवाजे के बाहर कुछ कदमों की आहट से राहुल के कान खड़े हो गए । उसने इशारे से सबको खामोश रहने को कहा और दरवाजे के करीब खिसक गया । कदमों की आहट दरवाजे के समीप आकर रुक गयी थी मतलब साफ़ था कि कुछ लोग दरवाजे के समीप आकर रुक गए थे । तभी राहुल को बहुत धीमे स्वर में किसी की सरगोशी सुनाई पड़ी ” ये असलम भाई भी पता नहीं क्या क्या समाज सेवा करते रहते हैं । इतने ही और भी लड़के हों तो अपने इलाके में काम पर रखा जा सकता है फिर भी भाई ने दस बच्चे कालू गैंग को देने के लिए हामी भर ली है । अब इस समय प्रशासन इतना सख्त हो गया है कि बड़ी मुश्किल से इन नौ लड़कों का इंतजाम हो पाया है । जब तक एक लड़का और नहीं मिल जाता हम इनकी भी डिलीवरी नहीं कर सकते । तब तक इन्हें मुफ्त ही बैठाकर खीलाना पड़ेगा । देखते हैं भाई कब तक ऐसा करते हैं । ” थोड़ी देर बाद दरवाजा खुलने की आवाज आई । दो आदमी कमरे में घुसे और लड़कों की गिनती करने लगे । सबको एक कतार में खड़े होने का हुक्म दिया गया जिसका सबने पालन किया । गिनती करने के बाद उनके चेहरे पर तसल्ली के भाव थे । उनमें से एक फुसफुसाया ” सही तो है । मैं भी यही तो कह रहा था कि अब कुल नौ लडके हो गए हैं । आठ तो पहले से ही थे और आज यह जो नया आया है विजय के साथ वाला । चलो चलकर भाई को बता दें ! ”
दोनों जैसे आये थे वैसे ही वापस चले गए । उनके जाते ही दरवाजा बंद हो गया । लड़कों ने ठंडी सांस ली और राहत महसूस करने लगे । राहुल समझ गया कि असलम भाई ने किसी ‘ कालू गैंग ‘ को दस लडके देने का वादा किया है । उसने सुन रखा था कि ये अपराधी लोग अपनी जुबान और अपने उसूल के बड़े पक्के होते हैं मतलब एक और लडके का कहीं न  कहीं से अपहरण अवश्य किया जायेगा । जैसे ही कोई नया लड़का हमारे साथ जुड़ेगा  हमें उस कालू गैंग को सौंप दिया जायेगा । वही मौका होगा हमारे लिए कुछ करने का । लेकिन तब तक खामोश रहना ही ठीक है । ‘ इसी तरह सोच विचार करते राहुल के दिमाग में कई योजनायें बन बिगड़ रही थी ।
इधर अपने बाबूजी  के साथ विनोद पुलीस स्टेशन पहुंचा। वहां उनकी शिकायत लिखनेवाला हवलदार विनोद को देखते ही पहचान गया । विनोद के कुछ बोलने से पहले ही उसने उसे कुछ देर उन्हें सामने बेंच पर बैठने के लिए कहा । बड़ी देर तक विनोद ख़ामोशी से उस बेंच पर बैठा रहा और हवलदार अपना काम करता रहा । बाबूजी अवश्य बार बार अपना पहलू बदल कर अपनी बेचैनी दर्शा रहे थे । आखिर उनके सब्र का बाँध टूट गया । चिल्ला पड़े विनोद के ऊपर ” अरे क्या तू यहाँ  बैठने आया है ? तुझे बैठा कर ये अपना काम किये जा रहा है और तू गधों की तरह से यहाँ खामोश बैठा है । ”
शोर सुनकर हवलदार थोडा जोर से बोल पड़ा ” क्या है ? क्यों शोर मचा रहे हो तुम लोग ? ”
इससे पहले कि विनोद कुछ कहता उसके बाबूजी ने  भी उसी तेजी से हवलदार को जवाब दिया ” शोर न मचाएं तो क्या हम लोग यहाँ भजन गाने आये हैं ? तुम तो पता नहीं क्या कर रहे हो ? ” और फिर खुद ही बडबडाने लगे ‘ अजीब जनता के सेवक हैं । जनता की सुनने का वक्त नहीं है और दम भरते हैं जनसेवक होने का । सरकार कहती भी है सरकारी कर्मचारी जनता के नौकर होते हैं । ऐसे होते हैं नौकर ? ‘
विनोद के बाबूजी का जवाब और उनका लहजा अप्रत्याशित ही था । हवलदार सकपका गया था और अपना पुलिसिया रूप दिखाने की सोच ही रहा था कि शोरगुल सुनकर बगल के कमरे में बैठा थानाध्यक्ष बाहर आ गया । हवलदार अपनी जगह पर ही उठ खड़ा हुआ । थानाध्यक्ष ने उससे शोरगुल की वजह  पूूूछी ।  हवलदार ने विनोद के बाबूजी की तरफ इशारा किया और बताया कि यही शोरशराबा कर रहे हैं लेकिन बाबूजी कहाँ माननेवाले थे ?  बोल ही पड़े ” साहब ! पिछले एक घंटे से हम लोग यहाँ बैठे हैं और साहब को हमसे बात करने की फुरसत नहीं है । अगर कुछ कर रहे होते तो भी हम समझते कि चलो कुछ काम कर रहे हैं । बेवकूफ की तरह से हमको यहाँ बैठा दिया है । एक तो हम लोग परेशान हैं और ये भाई हमारी परेशानी और बढ़ा रहे हैं । अब आप ही बताइए हम क्या करें ? कब तक खामोश रह पाएंगे ? ”
सीधा आरोप और बेबाक बयानबाजी ने दरोगा को भी प्रभावित कर दिया और उसने तुरंत ही हवलदार को डांट पीलाते हुए पहले उनकी शिकायत पर ध्यान देने का निर्देश दिया ।
निर्देश देकर दरोगा बाहर की तरफ निकल गया । हवलदार ने विनोद के बाबूजी को बुलाया ” चाचाजी ! आइये यहाँ बैठिये  । आपने तो हमारा आज सत्यानाश ही करा दिया । बड़े साहब के सामने ही हमारा कचरा कर दिया । खैर कोई बात नहीं आप हमारे पिता समान हैं । हम आपको कुछ नहीं कहेंगे । आइये ! बताइए हम आपके लिए क्या कर सकते हैं ? ”
विनोद और उसके बाबूजी उस हवलदार के सामने रखी कुर्सियों पर बैठे । उसके बाबूजी ने बताया ” हमारे पोते के गुमशुदगी की रपट आपके यहाँ लिखी हुयी है । उसपर आपने क्या पता किया यही पूछने हम लोग आये थे । अगर कुछ पता चल गया हो तो हमें भी बताइए । ”
हवलदार ने रजिस्टर के पन्ने पलटते हुए पूछा ” क्या नाम बताया आपने अपने पोते का ? ”
” जी ! राहुल ! ”
” अच्छा ! राहुल ! ”
बड़ी देर तक पन्ने पलटने के बाद स्वतः ही बुदबुदाते हुए हवलदार बोला ” यह जरुर अपहरण का मामला लगता है । डॉक्टर    राजीव  के लडके बंटी की भी गुमशुदगी रपट लिखी हुयी है । इसका भी अपहरण ही हुआ है । ”
फिर बाबूजी से मुखातिब होते हुए बोला ” चाचाजी ! आप फ़िक्र मत कीजिये ! इसी शहर से कई लडके गुम हुए हैं और हम सबकी तलाश कर रहे हैं । आसपास के सभी थानों में इन लड़कों की तस्वीरें भेज दी गयी हैं । इन सभी लड़कों का अपहरण ही हुआ है । अब तक किसी फिरौती के लिए कोई फोन नहीं आया है । इसका मतलब ये हुआ कि ये अपराधी इन बच्चों को अभी छिपाकर रखे होंगे । लेकिन ये लोग जैसे ही इन बच्चों को बाहर कुछ करने के लिए निकालेंगे हमारे आदमीयों की नजर में आ जायेंगे और पकडे जायेंगे । आप निश्चिन्त रहिये हमने अपने जासूसों का पूरा जाल बिछा रखा है । सभी बच्चे वापस मिल जायेंगे । बड़े साहब खुद भी इस केस में दिलचस्पी ले रहे हैं । ठीक है । अब आप लोग घर जाइये । ”
बाबूजी उसकी बात से संतुष्ट नहीं दिख रहे थे लेकिन विनोद उनका हाथ पकड़कर उन्हें पुलीस स्टेशन से बाहर ले आया ।
थोड़ी देर बाद दोनों ऑटो में बैठे अपने घर की तरफ जा रहे थे । घर जाते हुए विनोद सोच रहा था ‘ अगर बाबूजी नहीं आते तो क्या वो हवलदार से इतनी बात कर पाता ? ‘

क्रमशः

*राजकुमार कांदु

मुंबई के नजदीक मेरी रिहाइश । लेखन मेरे अंतर्मन की फरमाइश ।