लघुकथा

सकारात्मक सोच

भजनलाल कुछ दिनों के लिए अपने बड़े बेटे राहुल के यहाँ अमेरिका जानेवाले थे । उनके पास एक कार थी जो उन्हें बहुत ही प्रिय थी और इसलिए उसे बेचना नहीं चाहते थे । सोसायटी के प्रांगण में उन्हें अपनी कार सुरक्षित नहीं लग रही थी । ऐसे में उन्हें अपना मित्र रामलाल याद आ गया । पहुँच गए रामलाल के घर और उन्हें अपनी समस्या बताई । रामलाल ने भजनलाल के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा ” तुम फ़िक्र मत करो । यह घर भी तुम्हारा ही है । तुम्हारी गाड़ी यहाँ बिलकुल सही सलामत रहेगी । ”
” लेकिन तुम्हें कोई दिक्कत नहीं होगी ? ” भजनलाल ने आशंका व्यक्त की ।
” अरे कोई बात नहीं । कभी कभी कार की सवारी भी तो हम ही करेंगे । ” रामलाल ने शालीनता से जवाब दिया ।
निश्चिन्त भजनलाल अपनी कार रामलाल के यहाँ रखकर विदेश चले गए ।
लगभग छह महीने बाद भजनलाल अपनी गाड़ी लेने रामलाल के घर पहुंचे । कार की चाबी उनके हाथ से लेते हुए भजनलाल ने पुछा ” कार ले जाने का तुम्हें कोई दुःख तो नहीं ? ”
” भाईसाहब ! दुःख ! अरे मुझे तो आज बहुत ख़ुशी हो रही है । ”
” वो किस बात की भाईसाहब ? ”
”  आज मैं अपनी जिम्मेदारी से मुक्त हो रहा हूँ । ” रामलाल मुस्कराते हुए बोले “और फिर मेरे पेट्रोल के पैसे भी तो बचेंगे । ”
आत्मविश्वास से लबरेज रामलाल की सकारात्मक सोच के कायल हो चुके भजनलाल उन्हें धन्यवाद कह अपनी गाडी में बैठ गए ।

*राजकुमार कांदु

मुंबई के नजदीक मेरी रिहाइश । लेखन मेरे अंतर्मन की फरमाइश ।