यही सच है
नये साल की चहल-पहल
उत्साह समय का उन्मेश
चहूँ ओर के उल्लास चसके
मुझे रिझा नहीं पाता
अनायास मेरे अंतरंग में
निर्लिप्तता की रसाई
अपने आप आ जाती
विगत जीवन का ढ़ोर
मेरे अंतर्जग में
ढोली करती
मन को चस्मा लगाकर
ऊपरी दिखावट करते
हंसी -दुनिया के साथ
हाय-बाय करता
नूतन वर्ष का ..
झंडा मैं फहराता
असलियत को छिपाते
आगे बढ़ नहीं सकता
अंतर्मन धोखा नहीं खाता
अंबर का पट अब मैं खोलके देखता
नये वर्ष का आभास
मुझे दिखता कहीं नहीं
जन-जन की मनोवृत्ति का
यह सजीव दर्पण लगता है
अंबर के पट
खोलके दिखाने में
आनंद का अनुभव मुझे मिलता है ।