कविता

यही सच है

नये साल की चहल-पहल
उत्साह समय का उन्मेश
चहूँ ओर के उल्लास चसके
मुझे रिझा नहीं पाता
अनायास मेरे अंतरंग में
निर्लिप्तता की रसाई
अपने आप आ जाती
विगत जीवन का ढ़ोर
मेरे अंतर्जग में
ढोली करती
मन को चस्मा लगाकर
ऊपरी दिखावट करते
हंसी -दुनिया के साथ
हाय-बाय करता
नूतन वर्ष का ..
झंडा मैं फहराता

असलियत को छिपाते
आगे बढ़ नहीं सकता
अंतर्मन धोखा नहीं खाता
अंबर का पट अब मैं खोलके देखता
नये वर्ष का आभास
मुझे दिखता कहीं नहीं
जन-जन की मनोवृत्ति का
यह सजीव दर्पण लगता है
अंबर के पट
खोलके दिखाने में
आनंद का अनुभव मुझे मिलता है ।

पी. रवींद्रनाथ

ओहदा : पाठशाला सहायक (हिंदी), शैक्षिक योग्यताएँ : एम .ए .(हिंदी,अंग्रेजी)., एम.फिल (हिंदी), पी.एच.डी. शोधार्थी एस.वी.यूनिवर्सिटी तिरूपति। कार्यस्थान। : जिला परिषत् उन्नत पाठशाला, वेंकटराजु पल्ले, चिट्वेल मंडल कड़पा जिला ,आँ.प्र.516110 प्रकाशित कृतियाँ : वेदना के शूल कविता संग्रह। विभिन्न पत्रिकाओं में दस से अधिक आलेख । प्रवृत्ति : कविता ,कहानी लिखना, तेलुगु और हिंदी में । डॉ.सर्वेपल्लि राधाकृष्णन राष्ट्रीय उत्तम अध्यापक पुरस्कार प्राप्त एवं नेशनल एक्शलेन्सी अवार्ड। वेदना के शूल कविता संग्रह के लिए सूरजपाल साहित्य सम्मान।