ब्लॉग/परिचर्चा

दंगल

हमारा देश प्राचीन काल से ही कुश्ती कला का शौकिन रहा है ।  कुश्ती एक विशेष दांवपेंच का खेल है जिसे अखाड़े में खेला जाता है । इन खेलों के  आयोजन को दंगल कहा जाता है ।
आज एक बार फिर दंगल की धूम है ।
पहले बात कर लेते हैं   फिल्म दंगल की ।

हरियाणा के पहलवान महावीर फोगाट की जीवनी पर आधारित और आमिर खान अभिनीत फिल्म दंगल सफलता के नित नए कीर्तिमान स्थापित कर रही है । इस नोट बंदी के माहौल में जहां कुछ लोग नगदी का रोना रो रहे हों इस फिल्म की ऐसी सफलता आश्चर्य चकित कर देनेवाली है । यह अब तक की सबसे अधिक कमाई करनेवाली फिल्म बन चुकी है ।

ऐसे ही नोटबंदी के माहौल में चुनाव आयोग ने पांच राज्यों में चुनाव की घोषणा करके राजनितिक दलों के बीच दंगल का आयोजन करने की घोषणा कर दी है । अब सभी राजनितिक दल चुनावी समर में गतिमान होकर ताल ठोंक रही हैं । दलबदल और घरवापसी की प्रक्रिया शुरू हो गयी है । अभी कल ही क्रिकेट की पिच पर धुआंधार बैटिंग करने वाले खिलाडी से नेता बने अपने लच्छेदार मुहावरों और शायरियों से विरोधियों को पस्त करनेवाले नवजोत सिद्धू ने कांग्रेस की सदस्यता ले ली । पानी प़ी प़ी कर कांग्रेस को कोसने वाले सिद्धू ने बाद में इसे घरवापसी करार दिया और बताया कि उनके पिताजी भी कांग्रेसी थे और वह स्वयं पैदायशी कांग्रेसी तो अब सवाल बनता है कि ‘  गुरु ! इतने दिन तक तो कांग्रेस की याद नहीं आई । अपनी जड़ों से कटे रहे उसे कोसते रहे । अब अचानक इस घरवापसी की वजह क्या है ? कहीं पंजाब में कांग्रेस की मजबूत स्थिति का फायदा उठाना मकसद तो नहीं ? खैर हमें क्या ?

हम तो बात कर रहे हैं दंगल की ।

अब दंगल की बात चल रही हो और समाजवादियों में चल रहे दंगल का जिक्र न हो यह भला कैसे हो सकता है ?  पहलवान से नेता बने मुलायमजी ने चार दशक के अपने राजनीतिक कार्यकाल में अब तक राजनीती के अखाड़े में भी अपना दांव पेंच खूब दिखाया है । सूबे की राजनीति करते हुए भी राष्ट्रिय राजनीती को कैसे प्रभावित किया जा सकता है इसका उन्होंने समय समय पर बखूबी अहसास कराया है  । राजनितिक दांवपेंच के इस माहिर खिलाडी को अब चुनौती मिल रही है उनके ही सुपुत्र श्री अखिलेश सिंह से । उनके भाइयों में भी खेमाबंदी देखी गयी । रामगोपाल जी जहाँ अपने भतीजे अखिलेश के समर्थन में पुरजोर प्रयास करते नजर आये वहीँ मुलायम अपने पुत्र को छोड़ भाई शिवपाल के साथ खड़े नजर आये । अभी कल ही इस दंगल का निर्णायक फैसला भी चुनाव आयोग ने सुना दिया । नब्बे प्रतिशत से अधिक विधायकों व सांसदों के शपथपत्र ने अखिलेश के पक्ष में फैसला सुनाने में चुनाव आयोग की समस्या को लगभग समाप्त ही कर दिया था । पिता व पुत्र के इस दंगल में पुत्र ने पिता को चारों खाने चित्त कर दिया ।
जिस पार्टी को खड़ा करने में मुलायम को कड़ी मशक्कत करनी पड़ी थी उसी पार्टी से उन्हें एक तरह से बेदखल ही होना पड़ा है ।

हालांकि चुनाव आयोग के फैसले के बाद भी अखिलेश अपने पिता मुलायम जी से मिले और उन्हें मार्गदर्शक के भूमिका में बने रहने का निवेदन किया जिसे मुलायम ने अस्वीकार कर दिया ।
अब मुलायम जी के इस इनकार के चलते एक और दंगल की शुरुआत लगभग हो चुकी है । मुलायम जी ने पत्रकारों से बातचीत करते हुए अखिलेश को मुसलमानों का विरोधी बता डाला । पिता जी तरफ से दंगल का ऐलान हो चूका है और अब इस दंगल का फैसला जनता को करना है । घात प्रतिघात ‘ वार पलटवार ‘ वाद विवाद अब चुनावी समर का एक अभिन्न अंग बन गया है और हमें चुनाव आयोग द्वारा आयोजित इस दंगल में भाग लेनेवाले सभी पहलवानों के हर दाँव पेंच पर बारीकी नजर रखते हुए अपने विवेक का उपयोग करते हुए सही फैसला करना चाहिए ।

*राजकुमार कांदु

मुंबई के नजदीक मेरी रिहाइश । लेखन मेरे अंतर्मन की फरमाइश ।