उपन्यास अंश

आजादी भाग –२२

रोहित की बातें सुनकर राहुल को कोई आश्चर्य नहीं हुआ  । उसने जो बताया था इस बात का उसे बखूबी भान था । उसे इस बात का अहसास  था कि यह अच्छे लोग तो कतई नहीं थे । उसने धारावाहिकों में भी इस तरह की कहानियां देखी थी । रोहित को हिम्मत बंधाते हुए राहुल ने कहा ” बहुत अच्छा किया तुमने इनकी बात मानकर । अब कमसे कम तुम्हें खाना तो मिलेगा ही और कैद से भी निकल कर बाहर घूमने का मौका मिलेगा । और कुछ करते हुए यहाँ से निकलने के बारे में भी सोच सकते हो । ”

इसी तरह से इधर उधर की बहुत सारी बातें आपस में करने लगे थे । कई दिनों के बाद किसीसे बाद करके रोहित और उसके साथियों को बहुत अच्छा लग रहा था ।
राहुल और उसके साथियों को अब भूख सताने लगी थी । राहुल की नजरें बार बार बाहर की तरफ खुलने वाले दरवाजे की तरफ उठ जाती लेकिन उसे बंद पाकर उसे निराशा ही होती । ऐसे ही वक्त तेजी से गुजरता रहा । सूर्यास्त हो चुका था । अँधेरा गहरा रहा था । उसी आँगन के एक कोने मेंं लगे नल से बार बार पानी पीकर सभी बच्चे खुद की क्षुधा शांति का असफल प्रयास कर रहे थे । अचानक कमरे का वह एकमात्र दरवाजा खुला और उन्हीं दोनों गुंडों ने प्रवेश किया जिन्होंने रोहित और उसके साथियों को घसीट कर बाहर निकाला था   उन्हें देखते ही रोहित की घिग्घी बंध गयी थी । उसे लगा कहीं ये उन्हें फिर से उसी कमरे में ठूंसने तो नहीं आ गए लेकिन अगले ही पल पीछे  से दुसरे दो लोगों को और उनके हाथों में कुछ बड़े बर्तन देखकर रोहित की आँखों में चमक आ गयी । राहुल ने भी सूखे होठों पर अपनी जबान फेरी । भोजन मिलने की आशंका ने ही उसकी भूख को और बढ़ा दिया । उसकी आशंका सही ही थी । उन दोनों गुंडों से दिखनेवाले आदमियों ने सभी बच्चों को एक कतार में बैठ जाने के लिए कहा । उनके बैठते ही पीछे आये लोगों ने अल्युमिनियम की थालियाँ उनके सामने रख दी और चावल के साथ पतली पानी सी दाल रख चले गए । बेमर्जी से ही सही लेकिन सभी बच्चों ने जो भी मिला खाकर तृप्त हो गए । राहुल ने भी समझदारी का परिचय दिया और बिना किसी मीनमेख के भोजन कर लिया था । वह मोटा सा चावल उसके गले में फंसता हुआ सा लग रहा था लेकिन  हालात से समझौता करते हुए पानी पी पी कर एक एक निवाले गले से उतारता गया । यह भोजन भी उसे पूरे चौबीस घंटे के उपवास के बाद मिला था । बच्चों को खाना खाते छोड़ कर  सभी आदमी उन बड़े बर्तनों को लेकर वापस जा चुके थे । अभी सब बच्चे भोजन कर ही रहे थे कि दोनों गुंडे से दिखने वाले पुनः आ धमके  । उनमें से एक ने अपनी कर्कश आवाज में बच्चों को बताया ” सभी अपनी अपनी थाली धोकर रख देंगे और सो जायेंगे । ” तभी राहुल ने शंका प्रकट की ” लेकिन हमें सोना कहाँ है ? और हमें ओढ़ना क्या है ? कोई चद्दर वगैरह …….”
अभी राहुल अपना वाक्य पूरा भी नहीं कर पाया था कि उसकी बात बीच में ही काटते हुए उस गुंडे ने एक भद्दी सी गाली उसे दी और जोर से हंसते हुए उसकी खिल्ली उड़ाने वाले अंदाज में बोला ” अबे साले ! यहाँ क्या शादी में आया है ? हमारा रिश्तेदार लगता है ? ”
उसकी डपट सुनकर राहुल सहम सा गया   साथ ही सभी बच्चे भी सहम गए । सभी गुंडों के जाने के बाद दरवाजा बंद हो चुका था ।
समय अपना सफ़र अपनी गति से तय करता रहा और भोजन करने के बाद दरवाजा बंद होते देख बच्चे भी निश्चिन्त से हो गए । हालाँकि भोजन करके पानी पीने के बाद उन्हें अब ठण्ड का भी अहसास हो रहा था लेकिन यह ठण्ड का अहसास उन्हें मंजूर था लेकिन उन गुंडों की उपस्थिति से हमेशा भयभीत रहना उन्हें मंजूर नहीं था ।
निचे धरती मैया के रूप में उन्हें बिस्तर मिल गया था और गगन उनके सर पर चादर का अहसास करा रहा था । काफी देर तक बैठे एक दूसरे से गपशप करते बच्चे एक एक कर नींद की आगोश में खोते चले गए ।
भोर हो चुकी थी । कुछ लोगों के शोरगुल की आवाजें सुनकर राहुल की नींद उचट गयी  । उसने अपने आपको देखा । वह जमीन पर ही लेटा हुआ था । उसके अगल बगल में अभी भी उसके साथी बच्चे लेटे हुए ही थे । वह स्वयं भी अभी अभी ही गहरी नींद में सोया था कि तेज आवाज से उसकी नींद खुल गयी थी । रात में ठंडी की वजह से उसकी नींद खुल जाती । फिर थोड़ी देर कंपकंपाने के बाद फिर से निन्दियारानी मेहरबान हो जाती । रात भर इसी तरह ठण्ड और नींद के बीच कशमकश में उसकी नींद पूरी नहीं हुई थी । और अब ये भारी शोरगुल सुनकर नींद का उचटना स्वाभाविक ही था । उनींदी अवस्था में उसका मन खिन्न होता कि वहाँ का नजारा देखकर ही कुतूहल से उसकी नींद गायब हो गयी थी । सामने का दृश्य देखकर उसे ऐसा लगा जैसे वह किसी मंदिर के सामने बैठे भिखारियों के झुण्ड के बीच बैठ गया हो । तरह तरह के भिखारी नजर आ रहे थे । कुछ औरतें भी दिख रही थीं जिनकी गोद में एक साल या दो साल तक के बच्चे थे । इनकी झुण्ड के बीच ही कालू नामका वह गुंडा एक कुर्सी पर बैठा हुआ था । उसके पीछे उसके कुछ आदमी खड़े थे ।
एक भिखारी सी दिखनेवाली औरत ने अपने कंधे पर टंगी हुयी फटी पुरानी सी कपडे की झोली में हाथ डाल कर सिक्कों से भरी एक थैली कालू के हवाले करते हुए बगल में खड़ी हो गयी । कालू के पीछे खड़े गुंडों में से एक ने झपटकर उसके हाथ से वह थैली ले ली और पीछे बैठे कर गिनने लगा । उसके बाद दुसरी औरत फिर तीसरी और फिर कई अन्य लडके पैसा जमा कराने के लिए कतार में लग गए । कालू भाई के आदमी एक एक से पैसे लेते जाते और फिर गिनने के बाद वह उसके बारे में कालू भाई को  बताते भी जाते । इसी क्रम में पहली औरत के दिए हुए पैसे को गिनने के बाद कालू ने उसे इशारे से अपने पास बुलाया । उसके नजदीक आते ही कालू ने कहा ” भूरिया ! ये क्या ?  इतने कम पैसे क्यूँ ? रीगल सिग्नल पर ही खड़ी होती है न तू ? ”
भूरिया नाम की वह औरत घिघियाते हुए  बोली ” भाई ! अब क्या बताऊँ मैं आपको ? कई तो गाड़ीवाले अपनी खिड़की का कांच भी नहीं खोलते और कुछ खोलते भी हैं जो पहले हमेशा कुछ न कुछ देते भी थे अब कह देते हैं ‘ छुट्टा नहीं है ‘ । अब आप ही बताओ हम क्या करें ? इस कमबख्त नोट बंदी ने तो हमारी सारी मेहनत पर पानी फेर दिया है ।  भगवान की कसम खाकर कह रही हूँ भाई ! हम लोग पहले से दुगुना मेहनत करते हैं लेकिन जब लोगों के पास ही छुट्टा पैसा नहीं है तो वो लोग भी क्या करेंगे ? हम लोग तो पूरी कोशिश करते हैं अब जबरदस्ती तो कर नहीं सकते न भाई ? ”
उसके चुप होते ही कालू गुर्रा उठा ” तुम जबरदस्ती नहीं कर सकती लेकिन हम क्या कर सकते हैं मालुम है न ? अब ज्यादा जबान मत चला भूरिया और काम पर ध्यान दे । तू कह तो एक चूजा तेरे हवाले और कर दूँ ? लेकिन किसी भी हालत में मुझे रकम बढ़ी हुई मिलनी चाहिए । ”
” ठीक है भाई ! अगर एक चार साल का चूजा मुझे मिल जाता तो ….” अभी भूरिया का वाक्य पूरा भी नहीं हुआ था कि कालू बोल पड़ा ” अरे साजिद ! ये भूरिया को जो अपने पहले से पड़े चूजे हैं न उनमें से एक चार साल का  चूजा दे दे और इसको सब अच्छी तरह समझा देना कि उसका बहुत ध्यान रखेगी  । इन नए चूजों का अभी भरोसा नहीं । बाद में लफडा बेकार है । ठीक है ? “कह कर कालू अगले लडके का हिसाब लेने लगा ।

 

क्रमशः

*राजकुमार कांदु

मुंबई के नजदीक मेरी रिहाइश । लेखन मेरे अंतर्मन की फरमाइश ।