कविता

आवारा रहने दो

ना बांधो मुझे बंदिशों में
मुझे आवारा रहने दो
परे रखो साजिशों को
मुझे आवारा रहने दो
मुझे आवारा रहने दो
नहीं चाहिए शोहरत आसमान की
नहीं आरजू चमकती-दमकती रात की
मुझे टूटा हुआ तारा रहने दो
मुझे आवारा रहने दो
बड़े मकानों में रहते छोटे लोग
नहीं चाहिए अमीरी
मुझे बस बेचारा रहने दो
मुझे आवारा रहने दो
मत बांटो मुझे साजों में ,तरानों में
मुझे एक अलग इकतारा रहने दो
मुझे आवारा रहने दो
नहीं बनना मुझे महान ,बहुत बड़ा ,विशाल समंदर
जो प्यास बुझाए जल की वो धारा रहने दो
मुझे आवारा रहने दो
नहीं लिखनी बहुत बड़ी गाथा
वो भाषण नहीं जो खेले भावनाओं से
मुझे तो किसी बुलंद इंसान
का छोटा सा नारा रहने दो
मुझे आवारा रहने दो
नहीं बनना मुझे बांध, बंदरगाह और टापू कोई
मुझे बस कोई छोटा सा किनारा रहने दो
मुझे आवारा रहने दो
नहीं बनना चाहता मैं सर्वश्रेष्ठ, सर्वोत्तम
मुझे बस किसी का सहारा रहने दो
मुझे आवारा रहने दो
मुझे आवारा रहने दो

प्रवीण माटी

नाम -प्रवीण माटी गाँव- नौरंगाबाद डाकघर-बामला,भिवानी 127021 हरियाणा मकान नं-100 9873845733