लघुकथा

मोलभाव

सरिता ने रास्ते पर सब्जी की दुकान लगाये वृद्धा से पुछा ” माँ जी ! गोभी कैसे किलो है ? ”
वृद्धा ने जवाब दिया ” ले लो बेटी ! चालीस रुपये किलो का भाव लगा दुंगी ! ”
सरिता ने मुंह बनाते हुए कहा ” माँ जी ! तुम तो बहुत ज्यादा भाव बता रही हो । तीस रुपये लगाना है तो एक किलो तौल दो । ”
इसी तरह मोलभाव करके सरिता ने और भी सब्जियां खरीदी । जबकि उसके साथ ही खड़े अमर को यह सब नागवार गुजर रहा था । वह चाहता था कि सरिता उस वृद्धा की मज़बूरी का गलत फायदा न उठाये ।
वापसी में सरिता अपने घर के समीप ही बने एक शौपिंग मॉल में गयी और साबुन ‘ तेल ‘ शैम्पू ‘ पाउडर ‘ टूथपेस्ट जैसे चीजों की खरीददारी कर काउंटर पर पैसे देने गयी । कुल चीजों की रसीद ग्यारह सौ पचपन रुपये की थी । अभी सरिता काउंटर पर पैसे दे ही रही थी कि अमर ने पुछा ” अरे सरिता ! यहाँ मोलभाव नहीं करोगी ? पुछो शायद हजार रुपये में मान जाये ? ”
सरिता ने हंसते हुए कहा ” आज आप कैसी बातें कर रहे हैं ? यहाँ भी कोई मोलभाव करता है भला ? ”
” तो मोलभाव उन गरीबों से ही क्यूँ ? क्या उन्हें पैसे कमाने का हक़ नहीं ? ” सरिता अमर की बात का जवाब न दे सकी और आगे बढ़ गयी ।

*राजकुमार कांदु

मुंबई के नजदीक मेरी रिहाइश । लेखन मेरे अंतर्मन की फरमाइश ।