लघुकथा

पिंजरा

फूल तो डाली पर ही अच्छा लगता है न कि ड्राइंग रूम के गुलदस्ते में । वास्तव में यदि कोई फूल अच्छा लगता है तो उसे डाल से न तोड़ो। चिड़ियों की चहचहाहट, तोते की सुदरता, जंगल, पेड़ों, बाग़- बगीचे से जुडी है । शेर जंगल कि शोभा है   चिड़ियाघर की नहीं । बन्दर डालियों पर कूदते हुए सुन्दर लगता है न कि ज़ू में । मोर की सुंदरता देखने चिड़ियाघर मत जाओ मोर की सुंदरता देखो जब वह बादलों  कि छाई घटा देखकर नाचता है  ।

 

पक्षी सुन्दर लगता है जब वह डालियों पर फुदकता है न कि तब जब वह पिंजरे में कैद है । जब भी उस बाजार से गुजरता बंद पिंजरों में कैद पक्षियों   को जरूर देखता । सोचता बेचारे लाचार पंछी उड़ने की इनकी आजादी मनुष्य ने छीन ली ।

जब उन पक्षियों को  पिंजरे में देखता और वह मेरी तरफ अपनी गर्दन टेढ़ी करके देखते तो ऐसा लगता मानो कह रहे हों हमें भी तो खुले में उड़ने दो हमें भी भगवान् ने जीने का अधिकार दिया है ,हमारा क्या कसूर है हमने किसी का क्या बिगाड़ा है ।

एक दिन सोचा क्यों ना कभी कभी कुछ चिड़िया खरीद लिया करूँ । इन्हें पिंजरों से मुक्ति दिला दूं । घर लाकर इन्हें पिंजरे से आजाद कर दिया करूंगा । दिल को कुछ तो राहत मिलेगी ।

यह विचार करने के बाद उस दिन नींद नहीं आयी । सोचा कब सबेरा हो कब बाजार जाऊँ और कुछ चिड़िया खरीद लूँ । मन ही मन बहुत खुश था आज कुछ पक्षियों को खुले आकाश में उड़ने का मौका दूंगा । कितने खुश होंगे ।

बाजार गया सोच में पड़ गया किसे खरीदूं । कुछ चिड़िया खरीद ली, बाकी कि चिड़िया ऐसे देख रही थी कि मानो कह रही हों  हमें कब आजाद करोगे ?

घर पहुंचा, पिंजरा रख दिया । सोचा खाना खा लूँ कुछ देर इन्हें देख लूँ  फिर इन्हें आजाद कर दूंगा । आज इनकी चहचहाहट बहुत अच्छी लग रही थी ।

पिंजरा लेकर घर के बाहर आ गया और पिंजरा खोल दिया।यह क्या, शायद पिंजरे में पड़े पड़े उनके पंख कमजोर हो गए थे ।  बड़ी मुश्किल से वह पिंजरे से बाहर निकली ।  घर के अंदर से श्रीमतीजी  ने आवाज दी जरा सुनते हो  ।  मैं घर के अंदर  पहुंचा थोड़ी देर बाद बाहर चिड़ियों कि बड़ी दर्दीली आवाज सुनायी पड़ी । बाहर भागा, देखा एक बिल्ली चिड़ियों को मुँह में दबाये हुई थी । मुझे देखते ही चिड़ियों को छोड़कर भाग गयी । चिड़ियों को मैंने पानी पिलाने कि कोशिश की पर वह तो मर चुकी थी ।

बहुत दुखी हुआ । सोच रहा था, दो पिंजरे पड़े हैं एक लोहे का दूसरा मांस का । पिंजरा पड़ा रह गया पंछी को पिंजरे से मुक्ति मिल गई   ।

रविन्दर सूदन

शिक्षा : जबलपुर विश्वविद्यालय से एम् एस-सी । रक्षा मंत्रालय संस्थान जबलपुर में २८ वर्षों तक विभिन्न पदों पर कार्य किया । वर्तमान में रिटायर्ड जीवन जी रहा हूँ ।