कविता

बदलाव

बदल रहा है मानव पल पल
बदल रहा संसार
बढ़ रहे हैं मकान नफरत के
कहीं भी पनप नहीं रहा प्यार

बदल गया है बचपन अब तो
बदल गए हैं संस्कार
बड़े बूढ़ों का आशीर्वाद नहीं है
बस फैल रहा व्यापार

बदल रहा पहनावा देखा
बदल गई चाल और ढाल
नहीं रही लटकती चोटी अब तो
देखते हैं बस घोंसले जैसे बाल

बैलगाड़ी की फोटो घर पर
अब सब के पास है कार
बस वही बन गया है गुरुर लोगों का
बाकी सब हुआ बेकार

असली पहनावा बस मेले में
फटी जींस का प्रचार हुआ
दिखावे की है सारी दुनिया
धोती कुर्ता सब बेकार हुआ

शिक्षा की दुकान कई
पैसो से तोला जा रहा ज्ञान
निकले सब ढोंगी पंडित
बन रहे बस कागजी विद्वान

घर का खाना छोड़कर
खा रहे बाहर का पकवान
पैसे को भगवान मान रहे
हुई ईर्ष्या और द्वेष की जबान

तन का मैल धो रहे रगड़कर
मन का मैल धोना जाने ना
तेरा मेरा मेरा तेरा यह सब कुछ
कोई किसी को अपना माने ना

बदल रहा सुर संगीत यहां
बदल गए रिश्ते नाते
बटन दबाकर जश्न मनाएं
अब कोई ना साथ बैठकर गाते

गंगा में डुबकी लगा रहे
ढोंगी पाखंडी पापी
एक दूसरे को डुबोने को
चल रही है आपाधापी

बदल गई रीति रिवाज भी
धर्म बन गए हैं दंगल
एक दूजे से रोज भीड़ रहे
तो फिर कैसे होगा मंगल

सड़क पर बैठा फुटपाथी गाए
मैं हूं कौन? मैं हूं कौन ?
पहुंचे कैसे आवाज वहां
संसद के दरवाजे तक हैं मौन

बदलाव की भेंट चढ़ी है
गांव की हर एक दीवार
जहां रहती थी प्यार मोहब्बत
अब मैं देख रहा तकरार

उतरा जब मैं बस से नीचे
मिली नहीं नीम की छाँव
खो गया है मेरा गांव कहीं
बस ये रह गया बदलाव

प्रवीण माटी

नाम -प्रवीण माटी गाँव- नौरंगाबाद डाकघर-बामला,भिवानी 127021 हरियाणा मकान नं-100 9873845733