लघुकथा- चेहरा
नगर सेठ सहाय साहब के आवास पर आयोजित होली-मिलन समारोह में शामिल होने के लिए विधायक शुभ्रा देवी खादी-रेशम की दूध सी उजली साड़ी में सज कर घर से निकलीं और अपनी बड़ी सी शानदार सफेद गाड़ी की ओर बढ़ीं, जिसका दरवाजा खोले ड्राइवर राम जी सावधान की मुद्रा में मुस्तैदी से खड़े थे।
शुभ्रा देवी और गाड़ी के बीच दो कदम का ही फासला रह गया था कि उस फासले के बीच टपक पड़ी अचानक माली काका की बिटिया केसर कंवर…” होली की राम-राम सा ! ढोक दे,” कहते हुए उसने उनके पैरों पर गुलाब की पंखुरियाँ मिला तनिक सा गुलाल धर दिया। उसकी इस हरकत से शुभ्रा देवी यूँ बिदक उठीं जैसे किसी साँप पर पाँव पड़ गया हो और उनके उस बिदकने से गुलाल के कुछ कतरे उनकी साड़ी पर और कुछ गाड़ी पर जा पड़े ,जिसे देख कर वह आग-बबूला हो कर चिल्लाईं,” ये सब क्या है गंवार लड़की?”
” हो…हो… ली… होली मेम सा!” पीपल के पत्ते सी कांप रहीथी वह।
” होली खेलेगी मुझसे बद्जात लड़की ? इत्ती औकात है तेरी? सब कुछ बिगाड़ कर रख दिया,” घोर घृणा की दृष्टि से उसे देखते हुए, साड़ी बदलने के लिये वह भीतर चली गईं।
” म्हारे से के गलती हो गई राम जी भाया?” अँसुआए स्वर में केसर कंवर ने पूछा तो वह मुस्कुराए, ” तुमसे यह गलती हुई बहिनी! कि तुमने गलत जगह उनसे होली खेली। यही सब तुम जनता और मीडिया के सामने करती न ,तो वह तुम्हें ना सिर्फ हंस कर गले लगातीं साथ में बख्शीश भी देतीं।हमारी मैडम के कई चेहरे हैं री केसर और यह उनका असली चेहरा है।”
— कमल कपूर