बाल कविता

टोपी तो समुद्र में गई

छोटी-सी बच्ची थी
उम्र की कच्ची थी
स्कूल जाते-जाते बोली
”ममी आपने जो ऊन-क्रोशिए से
रंगबिरंगी टोपी बनाई थी
वह बहुत ही अच्छी थी.”
”अच्छी थी” सुनकर ममी जी भड़कीं
ज़ोर से कड़कीं
”’अच्छी थी’ का क्या मतलब है?
बोलो कि अच्छी है.”
बच्ची बोली-
”कल कहती तो कहती ”अच्छी है”
अब तो टोपी नदी में गई
माफ़ कर दो
आपकी बेटी नादान बच्ची है.”
स्कूल से आते-आते ममी ने सवाल उछाला
”सुबह जाते-जाते क्या खूब बहाना निकाला
अब जल्दी बताओ टोपी कहां है?
वरना फिर न कहना ममी ने क्यों मारा?”
डांट सुनकर उसकी तो हो गई बोलती बंद
उसके छोटे भाई ने कहे चंद शब्द
”बेचारी दीदी नाला टाप रही थी
टोपी गिर गई अब झगड़ा बंद.”
”सुबह तो यह कह रही थी नदी में गई
तू कह रहा है नाले में गिर गई
सच-सच बताओ बात क्या है?
इसका असली राज़ क्या है?
बेटा बोला-
”नदी में तो कल गई थी
अब तो अगर कोई पकड़ नहीं पाया होगा
तो समुद्र में गई.”
”यह क्या बेतुकी बात कर रहे हो?
अपने को बहुत सयाना समझ रहे हो?
यह कैसे सम्भव हो सकता है
ज़रा मुझे भी समझाकर कहो.”
बेटा बोला-
”हमारी टीचर ने है पढ़ाया
कुछ प्रकृति ने कुछ मनुष्य ने ऐसा है नियम बनाया
नाले का पानी नदी में जाता है
नदियों का पानी समुद्र में समाता है
नदियों के पानी से ही समुद्र ने है विस्तार पाया”
उसकी भोली-सी बात सुनकर ममी का गुस्सा
उड़न-छू हो गया
उसने दोनों बच्चों को प्यार से पुचकारा
घर शांत हो गया
ममी बोली-
”टोपी चली गई, तो क्या हुआ?
ममी की ऊन-क्रोशिया तो फिर भी कहीं नहीं गया.”

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244