कविता

सोचा न था

सोचा ना था

समझा ना था
जाऊँ कहाँ मालूम ना था
कांटे तो थे
लाखों मगर
एक फूल की भी चाह थी
उस फूल को ढूंढा बहुत
उस फूल को खोजा बहुत
जिस राह पे था चल पड़ा
सोचा नहीं जाना नहीं
वो फूल भी मिला नहीं
वो गुल कभी खिला नहीं।।
पतझर भी आकर चले गए
बारिस भी आकर गुजर गयी
था मैं जहाँ
हूँ मैं वहां
देखा तो कोई मिला नही…
ऐसा भी दिन गुजरा कभी
मरते थे वो हम पर सभी
सपनो और कसमो का बाज़ार लगाया करते थे
इशारों ही इशारों में हर बात बताया करते थे
मेरे भी सपने टूट गए
मेरे भी अपने रूठ गए
था मैं जहाँ
हूँ मैं वहां
देखा तो अपने छूट गए
वो सारे सपने टूट गए
मेरा भी एक आशियाना था
चंद लम्हों का, एक छोटा सा ठिकाना था
गूरूर किया सब खो दिया
सारे अपनो ने तन्हा छोड़ दिया
जब आँख खुली तो पता चला
हूँ मैं वहां
था मैं जहाँ
देखा तो अपने छूट गए
वो सारे सपने टूट गए
वो सारे अपने रूठ गए।।।।

आर्यन उपाध्याय ऐरावत

मेरा नाम आर्यन उपाध्याय है. मैं अभी एम. एस. सी कर रहा हूं. लेखन का शौक मुझे बचपन से है. मैं गाने भी लिखता हूँ और कविता लेखन का भी मुझे शौक है. मैं वाराणसी का रहने वाला हूँ.