राजनीति

खुदा खैर करे !

जो सारे राजनीतिग्य कल तक एक दूसरे को कोसते थे पानी पी पी कर एक दूसरे को बेईमान भ्रष्ट लुच्चा कहते थे चुनाव का घोषणा होते ही अब गलबहिंया करने के लिये ब्याग्र है. वह भी भ्रष्टाचार भुखमरी बेरोजगारी को लेकर नही! तथाकथित साम्प्रदायिक शक्ति को सत्ता से बाहर रखने को लेकर! अजीब बिडम्बना है की इनमे से एक भी पार्टी ऐसी नही है जो कभी न कभी इस साम्प्रदायिक शक्ति के साथ कभी न कभी गठबंधन न किया हो. पिछले तीन साल से यह तथाकथित साम्प्रदायिक शक्ति केन्द्र मे सत्ता मे है और उसका समय समय पर बिभिन्न मुद्दो को लेकर बिरोधियो द्वारा नकारात्मक बिरोध भी हुआ है जिसका जनता पर कोई असर नही रहा है लेकिन कभी भी साम्प्रदायिकता को लेकर कभी मुखर बिरोध नही हुआ क्योकि जिस साम्प्रदायिकता का डर दिखा कर ए 65 साल से जनता को भ्रमित कर रहे है जनता को वह कही दिखाई ही नही दे रहा है. जनता इसे 2014 मे खारिज कर चुकी है. असहिष्णुता सम्मान वापसी दंगा होने की आशंका जैसे तमाम हथियार इनके निष्फल हो चुके है. सवाल उठता है की ए फिर उसी हथियार को क्यो आजमाना चाहते है? सीधा सा जवाब है की आज इनके पास कोई मुद्दा ही नही है शिवाय साम्प्रदायिकता का जिन्‍न बाहर निक्कालने के जिसे जनता 2014 मे ही नकार चुकी है. जनता को भुलक्कड समझने के भ्रम से बिरोधी ही ग्रस्त नही है भाजपा भी है, वह भी उसी तुष्टिकरण को आजमाने का प्रयास कर रही जिससे जनता कब की ऊब चुकी है. ठीक है कांग्रेस द्वारा निर्मित बोट बैंक का संसार अभी भी बजूद मे है लेकिन अब वह उतना प्रबल नही है और इसका एक सकारात्मक पहलू है की इन बोट बांको के प्रतिक्रिया स्वरूप एक नया बोट बैंक स्वतः स्फूर्त तैयार हो जा रहा है. यद्यपि मोदी अपने तरफ से इसके लिये कोई प्रयास नही किये है लेकिन बोट बॅंको से डर जरूर गये है. वे भी उस नुस्खे को आजमाने की कोशिश कर रहे है जिससे देश भले बरबाद हो गया लेकिन कांग्रेस कम से कम 65 साल सत्ता मे रही.

जरा गौर कीजिये, जो मुलायम सोनिया को प्र म बनने मे सबसे बड़ा रोड़ा थे उन्ही का अति सुशिक्षित पुत्र सोनिया का तलवा चाट रहा है. अब बुआ भतीजे मे भी बहुत ज्यादे दुराव नही है. क्योकि इस भूखे नंगे देश को साम्प्रदायिकता से बचाना जो है! पाकिस्तान मे हिन्दुओ की आजादी देख कर यहा के मुसलमान उस आजादी के लिये तरस रहे है. यह बात नही है की लोग इस बात को समझ नही रहे है, बहुत अच्छी तरह से समझ रहे है लेकिन बोट देते समय उनपर उनकी जाती मजहब और क्षेत्र की अहमन्यता इतना हाबी हो जाती है की वे अपने समझ पर कायम नही रह पाते! इस नासमझी मे पढ़े लिखे लोग सबसे आगे है. इस बोट बैंकीय संसार को तोड़ने का मोदी का हल्का सा प्रयास भी उनके लिये बहुत भारी पॅड् रहा है. लेकिन जनता जिस दिन साधु सॅंटो पर गोली चलवाने वाले मुलायम या गुजरात को दंगा मुक्त करने वाले मोदी मे से कौन साम्प्रदायिक है, खानदानी राज्य कायम करने वाले लालू मुलायम राहुल या खानदान रहते हुए भी खानदान को सत्ता से दूर रखने वाले मोदी मे कौन बेहतर है, हिन्दुओ के बल पर जैसा की बिरोधी आरोप लगते है हिन्दुओ के लिये कुछ न करने वाले मोदी या सत्ता के लिये तुष्टिकरण का घिनौना खेल खेलने वाले बिरोधी मे कौन सही है का फैसला करने मे सक्षम हो जायेगी उसी दिन भारतीय लोकतंत्र का परिदृश्य ही बदल जायेगा.

यद्यपि चुनाव राज्यो मे हो रहे है लेकिन भाजपा के लिये यह बहुत महत्व पूर्ण चुनाव है क्योकि इसके नतीजे से भाजपा को अपना दशा -दिशा फिर से तय करना पड़ेगा. उसे नेशन फर्स्ट या बोट फर्स्ट मे से एक को चुनना पड़ेगा.

राजेन्द्र प्रसाद पाण्डेय

रिटायर्ड उत्तर प्रदेश परिवहन निगम वाराणसी शिक्षा इंटरमीडिएट यू पी बोर्ड मोबाइल न. 9936759104