उपन्यास अंश

उसकी कहानी भाग- १

उससे मैंने अनुमति ले ली है । सर्वाधिकार मेरे पास सुरक्षित हैं । पहले तो वह मान ही नहीं रहा था मेने बिना अनुमति लिखना शुरू कर दिया । कंप्यूटर खराब हो गया  सब मेहनत बेकार हो गयी ।  दुबारा बिना अनुमति लिखना शुरू किया फाइल सेव करते समय फाइल कोरप्ट हो गयी । तौबा कर ली बिना उसकी अनुमति कुछ नहीं हो सकता । अब की बार बीमार हुआ बिस्तर पर पड़े पड़े उसे याद कर रहा था । झिझकता झिझकते उससे पूछा  कब लिख सकूंगा ? वह मुस्कराया बात बन गयी । उसने अनुमति दे दी तो भला कौन माई  का लाल रोक सकता है ?

लगता है मैं और वह एक दिन ही जन्मे । मंदिर गुरूद्वारे के कीर्तन में बहुत मन लगता था । कीर्तन सुन कर झूम पड़ता था । धीरे धीरे मन में आया इससे क्या होगा क्या वह मिल जाएगा ? कॉलेज गया उसे ढूंढने की कोशिश तेज कर दी । किताबों  में ढूंढा  साधू संतों से उसका पता पूछा । वह सब देख रहा था , मुझे इसका अहसास तक नहीं हुआ । संतों ने कहा ध्यान करो, किया पर वह छुपा ही रहा तमाशा देखता रहा ।

जिंदगी चलती रही शादी हो गयी । पत्नी ऐसी कि कहने लगी चलो मिल कर ढूंढेंगे ।

श्री रामचंद्र मिशन के अन्तर्गत सहज मार्ग ( राजयोग पद्धति ) से हम दोनों पति पत्नी जुड़ गए । नौकरी से रिटायर्ड हो गया । दोस्तों से बातचीत के दौरान कहा करता था ६२ वर्ष की  उम्र तक जीना ठीक है  जितनी ज्यादा उम्र उतने ज्यादा कष्ट ।  उसने शायद कोई ट्रांसमीटर मेरे अंदर लगा रखा था चुपचाप सब सुनता रहता था ।

उस रात मैं एक मित्र के घर रुक गया था ।  सुबह मेरा ६२ वां जन्म दिन था । पत्नी ने हिदायत दी थी सुबह सुबह घर आ जाना आपका जन्मदिन मनाना है ।

सुबह सात बजे कार लेकर घर के लिए निकल पड़ा ।  भूल गया कि ६२ साल के लिए क्या कहता आ रहा था । रात में हल्की बारिश हुई थी सड़क चिकनी थी । जैसे ही एक मोड़ पर कार बायीं और घुमाई कार पहले पीछे कि और मुड गयी  फिर उसने एक लोहे के खम्बे को टक्कर मारी खम्बा नीचे आ गिरा ।  मैं एक ४ फुट गड्ढे में जा गिरा । कार कि हालात ऐसी हो गयी जैसे फिल्मों में दैत्य कार को हाथ से कागज़ की तरह तोड़ मरोड़ देता है । मैं जैसे तैसे  दरवाजे को लात मार मार के बाहर निकला । बाहर एक पुलिस वाला मिल गया उसने कार कि हालात देख कर कहा आपको एम्बुलेंस की  जरूरत होगी । मेने कहा मैं सही सलामत हूँ  उसे यकीन नहीं आया  । उसने कहा शुरू शुरू में पता नहीं चलता बाद में  समस्या आती है ।  मैंने कार वहीँ छोड़ दी और टेक्सी करके घर पहुंचा ।  मेरे जैकेट  की जेब में कांच के टुकड़े भर  गए थे कान में बालों में कांच ही कांच भर गया था । मेने मन ही मन याद किया मैं क्या कहा करता था और वह सुन रहा था । उसने मुझे एक झटका दिया कि मेरे पास आने का तेरा वक़्त नहीं आया है । तू तब आएगा जब मैं चाहूंगा ।

रविन्दर सूदन

शिक्षा : जबलपुर विश्वविद्यालय से एम् एस-सी । रक्षा मंत्रालय संस्थान जबलपुर में २८ वर्षों तक विभिन्न पदों पर कार्य किया । वर्तमान में रिटायर्ड जीवन जी रहा हूँ ।