लघुकथा

न्याय

कुलबोरन! कौन सी मनहुस घड़ी थी जो तुझे बियाह के लाए इस घर में ! मेरे बंश के जान के पीछे पड़ी है । किस जनम का दुश्मनी निकालने के लिए इस जनम में आई । अपनी बहु को शब्दों के नश्तर चुभोती हुई भगमतियाँ अपने बेटे के पीछे पीछे भाग रही थी । बेटे के कमर में रस्सी बाँध पुलिस घसीटते हुए ले जा रही थी ।
मुशहर टोली की भीड़ जमा थी तरह-तरह के लोग तरह-तरह की बातें चल रही थीं । एक औरत आगे बढ़कर बहु को झंझकोरते हुए बोली- क्यों की तुम ऐसा ? देख अपनी सास की हालत, कई दिनों के बाद तो बेटा घर आया था और तूने पुलिस को ख़बर कर दी । पुलिस जाने कैसा उसके के साथ व्यवहार करेगी
“क्या इन्होंने उस बच्चे को जान से मारकर ठीक किया था, जो अपने बॉल को लेने हमारे छत पर चढ़ गया था ? वो भी अपने घर का एकलौता चिराग़ था”

*विभा रानी श्रीवास्तव

"शिव का शिवत्व विष को धारण करने में है" शिव हूँ या नहीं हूँ लेकिन माँ हूँ