कविता

उदास सूरज

भगवान के अनेक रूपों ने                                                   18.3.84
मुझे सदैव आकर्षित किया है
इन रूपों ने
कभी मुझे चौंकाया है
कभी चकाचौंध किया है
कभी चुम्बक की भांति आकर्षित किया है
तो कभी
अपने अजूबों से
चमत्कृत किया है.

इसी भांति
सूरज ने भी
अपने अनेक रंगों से
कभी मुझे ठगा-सा किया है
कभी आल्हाद से भर दिया है
तो कभी उन्माद का रंग गहरा किया है
और आशा का संदेश तो
हर रंग ने दिया है
पर,
आज का सूरज
उदास क्यों है?
फीका क्यों है?
निस्तेज क्यों है?
ऐसा अनुभव केवल मुझे ही नहीं हुआ है
चिड़ियों ने चहकना छोड़ दिया है
फूलों ने महकना छोड़ दिया है
वृक्षों ने बहकना छोड़ दिया है
यहां तक कि
ग्लाइडर ने भी सरकना छोड़ दिया है
कल होली फीकी थी
आज सूरज फीका है
शायद साथ निभाने का यह भी एक सलीका है.
डी.टी.सी. की बस में बैठे-बैठे
उदय होते हुएतेज चमकदार सूरज को
अचानक प्रकट होते हुए देखा है
तब लगा है
अचानक
एक प्रतिभा-पुंज ने
समस्त पृथ्वी को
अपने तेज से
आच्छादित किया है
भासित किया है
चमत्कृत किया है
देदीप्यमान किया है
सहसा मेरे हस्त-युगल
नमन के लिए समीप आ गए हैं
दूध के डिपो पर खड़े-खड़े
तांबे-जैसे लाल रंग के सूरज ने
अक्सर मुझे यह दिखाया है
भले ही अस्तांचल को जा रहा हो
पर सूरज तो सूरज है
सदैव
आभायुक्त है
तेजपुंज है
दीप्तियुक्त है
जाने से पहले सामने
शीशे वाली खिड़कियों वाले घरों में
एक बार इस तरह झलकता है
मानो
चारों तरफ स्वर्णिम छटा बिखरी हो
लगता ही नहीं कि
ये वे ही निःस्तेज शीशे की खिड़कियां हैं
जिन्हें अक्सर मैंने दिन में देखा है.
अपने घर की बालकनी से
धीरे-धीरे
थके कदमों से
भारी मन से
अस्तांचल को जाते हुए
सूरज को भी मैंने देखा है
लाल रंग के इस सूरज ने
सदैव शांति का
स्नेह का
सौभाग्य का
संदेश दिया है
याद दिलाई है
गोआ के उस समुद्र तट्की
जहां के डूबते हुए सुनहले सूरज ने
मुझे शांति की महत्ता समझाई है.

बचपन से किताबों में पढ़ा है
बड़ों के श्रीमुख से भी सुना है
उगते सूरज की स्वर्णिम किरणें
बढ़ाती हैं नेत्र-ज्योति
इसलिए हर सुबह चाय की प्याली के साथ
खड़ी मैं बालकनी में होती
बड़ी हसरतों के साथ
अनुनय-विनय से जोड़े हाथ
ये किरणें देंगी शुभ्र ज्योति
ऐसा है इनका प्रताप.

अचानक विज्ञान ने करवट बदली
अपनी पहली खोज में की तबदीली
अखबार में आई, पत्रिका में निकली
सुबह के सूरज की सलोनी किरणें
बेवफा निकलीं
तब से उगते सूरज को हाथ तो जोड़े हैं
मगर नज़र मिलाकर नहीं
दृष्टि को तनिक झुकाकर
गर्दन को कुछ अधिक नवाकर.
मगर आज का सूरज
भोला-सा रुपहला-सा सूरज
खोया-सा उदास-सा सूरज
देता है चांद का धोखा-सा यह सुबह का सूरज
लगता है दोनों मिलकर हो गए एक
देते हैं संदेश कितना ये नेक
काश! पंजाब व हरियाणा मिलकर एक हो जाएं
हिंदुस्तान की प्रतिमा दिलफरेब हो जाए
तब सूरज में वही चमक वापिस आएगी
धुंधला गई है जो मूरत वह दमक जाएगी
मैंने नेत्र मूंदकर उस ज्योति का ध्यान किया है
होगी जो दिव्य दीप्ति, उसका आह्वान किया है
घेरा होगा लाल उसका, स्वर्णिम होगा मध्यभाग
ऐसा सूरज सिखलाएगा, भारत को फिर वही अनुराग
लाल रंग होगा प्रतीक प्रेरणा का, शौर्य का
स्वर्णिम होगा प्रतीक प्रेरणा का, धैर्य का
ऐसा सूरज उदय होगा
निकलेगा जब पूर्व से
मानवता सज जाएगी
सजीवता के तूर्य से
निकलकर उदासी की गोद से
ऐ सूर्य जग को चमका दे
भारत को तनिक अपनी शक्ति का
तनिक महत्त्व समझा दे
छोड़ दे गरल जो आज अपनी गरलता
अग्नि जलाना छोड़ दे
पानी बुझाना छोड़ दे
तो विश्व नेत्र नहीं खोलेगा
फन शेषनाग का डोलेगा
सब नियम भंग हो जाएंगे
सिद्धांत सभी टकराएंगे
धरती पर धैर्य नहीं होगा
कोई निर्वैर नहीं होगा

लो सुनी प्रार्थना सूरज ने
धीरे-धीरे हो रहा स्वर्णिम
है तेज बढ़ रहा धीरे से
हो गई उदासी तनिक मद्धिम
आशा का अंकुर फूटा है
घेरा मालिन्य का टूटा है
अब भारत एक हो जाएगा
फिर अपनी टेक को पाएगा
है नमन तुझे हे तेजवान
शत कोटि नमन हे दीप्तिमान
ऐसे ही आभायुक्त रहो
प्रतिभा के पुंज तुम सदा रहो
भारत को दो सौभाग्य अमर
जाए फिर इसका रूप निखर
हम तेरे ही गुण गाएंगे
तुझसे ही जीवन पाएंगे
तुझसे ही जीवन पाएंगे
तुझसे ही जीवन पाएंगे.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244