लघुकथा

एक ज्योतिषी

पंडित भरोसे लाल अपने आपको बड़ा ही सटीक भविष्यवक्ता बताते थे । उनका दावा था कि उनकी बताई भविष्यवाणियाँ शत प्रतिशत सही होती हैं । उनके शागिर्दों चेलों और दलालों के प्रचार की बदौलत उनके यहाँ भविष्य जानने वालों की अच्छी खासी भीड़ रोज जुटती थी । रोज की तरह पंडित जी की आज भी कचहरी सजी हुयी थी । लोग अपने अपने हाथ दिखाकर भविष्य जान रहे थे । एक आदमी का हाथ देखते हुए  पंडित भरोसे लाल ने बताया ” तुम्हें धन संपत्ति की तो कभी कोई कमी नजर नहीं आ रही है । लेकिन कन्या की वजह से तुम्हें समाज में अपमानित होना पड़ सकता है । ” वह आदमी पंडित जी के चरणों में गिर पड़ा ” महाराज ! मुझे इस अपमान से बचा लीजिये । आप जो कहेंगे करूँगा । ”
अभी पंडितजी कुछ जवाब देते कि तभी उनकी श्रीमती जी हाथ में एक पर्चा थामे हुए कमरे में दाखिल हुयी । पर्चा पंडित जी को थमाते हुए उन्होंने बताया ” बिटिया कमरे में नहीं दिख रही है । उसके कमरे में मेज पर यह पर्चा रखा हुआ था । देखिये तो ! क्या लिखा है । ”
पंडितजी ने श्रीमतीजी के हाथों से पर्चा लिया और उसे पढ़ने लगे । लिखा था ” पिताजी ! शायद मैं अपना भविष्य नहीं जानती फिर भी मैंने फैसला कर लिया है । मैं राजन से विवाह करके उसके साथ ही खुश रहूंगी । चूँकि राजन हरिजन है आप मेरी शादी उससे नहीं होने देंगे ।    इस लिए मैं घर छोड़कर जा रही हूँ । ढूंढने की कोशिश मत कीजियेगा । ”
उनके हाथ से पर्चा फिसल कर नीचे गिर पड़ा जिसे उस आदमी ने उठा लिया और पढ़ने के बाद बोला ” ये क्या पंडित जी ! सबका हाथ देखते हुए क्या आपको अपना हाथ देखने की फुर्सत नहीं मिली ? “

*राजकुमार कांदु

मुंबई के नजदीक मेरी रिहाइश । लेखन मेरे अंतर्मन की फरमाइश ।