“मुक्तक”
मापनी – 122 122 122 122 शिवा शिव हरी हर हलाहल विषामृत कंठनील शंकर त्रिशूल चंदा धर चित्त नमः
Read Moreमैं सोकर ही उठा था कि दस-बारह लड़कों ने मेरा घर घेर लिया। मैंने सवालिया निगाहों से उनकी ओर
Read Moreअबकी बार वो आया मेरा बड़ा भाई बनकर । मुझे याद आया कि मैं अपने बड़े भाई साहब जो की
Read Moreपवन बसन्ती लुप्त हो गई, मौसम ने ली है अँगड़ाई। गेहूँ की बालियाँ सुखाने, पछुआ पश्चिम से है आई।। पर्वत
Read Moreफागुन का महीना, देवरों पर होली के साथ-साथ चुनावों का भी खुमार, और सामने प्यारी सी सलोनी सी भाभी- ऐसे
Read Moreमैं एक औरत हूँ, पर्सन हूँ, राज करती हूँ सारे घर पर, सारे मोहल्ले पर, यानी हर तरह से मैं
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