राजनीति

और अब गधा !

अंग्रेज इस देश को सांपो बिच्छुओं और जादूगरों का देश कहते थे, यहाँ के रीती रिवाजो परम्पराओ का मजाक उड़ाया करते थे, कुत्ते तक कह देते थे लेकिन गधा कहने की हिम्मत नहीं जुटा पाते थे क्योकि वे यहाँ के लोगो के बहादुरी और सरलता दोनों से डरते थे. १५ अगस्त १९४७ को अंग्रेज चले गए और कांग्रेस का प्रादुर्भाव हुआ. उसके बाद इस देश का इतिहास राजा पोरस, विक्रमादित्य, पृथ्वीराज, राणाप्रताप,शिवाजी, भगत सिंह, आजाद और बोस का इतिहास न होकर नेहरू गाँधी का इतिहास हो गया. गली कूँचे मोहल्ले राजमार्ग सब नेहरू गाँधी के नाम कर दिए गए. दुनिया के लोक से अलग लोक की एक नई परिभाषा गाढ़ी गई जिसमे गरीब होने के लिए जाती विशेष का होना आवश्यक है और सवर्णो को स्वाभाविक अमीर मान लिया गया. जिसके तहत भले खाने बगैर सवर्ण मरे लेकिन मदद दलितों की होने लगी, पैर सवर्ण का टुटा था बैसाखी दलितों को दी जाने लगी, काश्मीर मुजफ्फर नगर से भाग हिन्दू रहे है सुरक्षा मुसलमानो को दी जा रही है, कट्टरता मुस्लिम सँहाथन फैला रहे है प्रतिबंधित हिन्दू संगठन किये जा रहे है. अगर कही कोई मोदी कह दे रहा है की विजली अगर ईद बकरीद पर मिल रही है तो होली दीपावली पर भी मिलना चाहिए, साम्प्रदायिक हो गया. हमारे पिछले प्र म तो यहाँ तक बोल गए की देश के संसाधनों पर पहला अधिकार अल्पसंख्यको का है और वे धर्मनिरपेक्स है. किसी को अलग न रखते हुए ‘सबका साथ -सबका विकाश’ कहने वाला दलित बिरोधी है, हत्यारा है, मौत का सौदागर है और गधा है.
बिगत ७० साल से कांग्रेस और उसके जैसे विचारधारा के लोग इस देश को एक अनोखा देश बना दिए है जहा अब बहस मौत पर न होकर किस जाती की मौत हुई है, बहस इसपर होती है. दुनिया के सभी देशो में सत्ता के बिरोध के स्वर है लेकि भारत तेरे टुकड़े होंगे, अफजल हम शर्मिंदा है, कश्मीर मांगे आजादी के नारे सिर्फ भारत में ही लग सकते है. आश्चर्यजनक रूप से सारे बिरोधी, स्वनामधन्य साहित्यकार उसके साथ अभिब्यक्ति की आजादी का मनमाना परिभाषा गढ़ के खड़े भी है. आज कुछ शिक्षन संस्थानों में कुछ युवाओ में कन्हैया बनने की होड़ लगी है. आज जिस ढंग का राजनैतिक परिवेश है अगर आजादी के समय भी इसी ढंग का होता तो निश्चित तौर पर गोडसे किसी न किसी प्रदेश का मुख्यमंत्री होता ! अजीब ट्रेंड चल रहा है, न्यस्त बौद्धिकों को लग रहा है की अगर देश की हत्या करके ६० साल शासन किया जा सकता है तो लोकतंत्र को बिकृत करके क्यों नहीं ? यहाँ का कुछ बुद्धिजीवी बर्ग कांग्रेस की तरह देश से अपना कीमत वसूलना चाह रहा है. प्रधान मंत्री मोदी को तमाम बिडम्बनाओं से भरा यह देश बिरासत में मिला है जहां भुखमरी बेईमानी तो है ही, साथ ही साथ समाज भी बिकृत सोच का हो चूका है. कुछ लोगो पर उनका जातीय अहम्, लोभ पूरी तौर पर हॉबी हो गया है. निश्चित तौर पर मोदी गधा बनकर भी इन बिक्रितियो को दूर करने का प्रयास कर रहे है लेकिन सारा दारोमदार तो जनता के हाँथ में है.

राजेन्द्र प्रसाद पाण्डेय

रिटायर्ड उत्तर प्रदेश परिवहन निगम वाराणसी शिक्षा इंटरमीडिएट यू पी बोर्ड मोबाइल न. 9936759104