ब्लॉग/परिचर्चा

एक डिग्री का जंप

”कौन कहता है कि मौत आई तो मर जाऊंगा,
मैं तो दरिया हूँ समंदर में उतर जाऊंगा.”
यह कथन है हमारे एक पाठक और महान लेखक भाई रविंदर जी का, जो उन्होंने अपनी आत्मकथा- ”उसकी कहानी भाग – 4” में कहा है.
छः भागों में लिखी ”उसकी कहानी” में उन्होंने कुछ चमत्कारिक पलों का वर्णन किया है. पूरी कहानी आध्यात्मिकता का अहसास कराती हुई चलती है. उसकी से उनका तात्पर्य एक अलौकिक शक्ति से है, यह तो आप समझ ही गए होंगे. इस अलौकिक शक्ति की शरण में आनंद-ही-आनंद है. यह अलौकिक शक्ति हमारा हाथ पकड़कर हमारी रक्षा करती है. एक बार श्री कृष्ण जी समुद्र-किनारे बैठे थे. समुद्र में बहुत सारे दीपक डूब-तैर रहे थे. जो दीपक श्री कृष्ण जी के पास आ रहे थे, वे उनको किनारे पर सहेजकर रखते जा रहे थे. मां यशोदा ने देखा और कहा- ”कान्हा, तुम यह क्या कर रहे हो?”
”मैं दीपकों की रक्षा कर रहा हूं.” कान्हा का सरल उत्तर था.
”कितनी दूर-दूर तक दीपक-ही-दीपक हैं, किस-किस को बचाओगे?” मां की सहज जिज्ञासा थी.
”माते, जो दीपक मेरी शरण में आ रहे हैं, उनको ही तो मैं बचा सकता हूं न! जो अपने बलबूते पर मुझसे दूर-दूर रहते हैं, उनको कैसे बचा सकता हूं?”
यह तो लीलाधारी श्री कृष्ण जी की लीला मात्र थी, अन्यथा वे चाहें तो क्या नहीं कर सकते? हमारा विश्वास पक्का होना चाहिए. रविंदर भाई की ”उसकी कहानी भाग1-6” इसी विश्वास का जीता-जागता प्रमाण है.

 

पहले भाग में उन्होंने अपने 62वें जन्मदिन पर हुई जबरदस्त कार दुर्घटना में बाल-बाल बचने का रोमांचकारी वर्णन किया है. वे एक 4 फुट गड्ढे में जा गिरे. कार की हालत ऐसी हो गयी, जैसे फिल्मों में दैत्य कार को हाथ से कागज़ की तरह तोड़-मरोड़ देता है. वे जैसे-तैसे दरवाजे को लात मार-मार के बाहर निकले. बाहर एक पुलिस वाला मिल गया उसने कार की हालत देखकर कहा, ”आपको एम्बुलेंस की जरूरत होगी.” उन्होंने कहा, ”मैं सही सलामत हूँ, उसे यकीन नहीं आया.” उस पर विश्वास करने से, उसकी शरण लेने से बेड़ा पार हो जाता है, ठीक उसी तरह जिस तरह मछुआरे जाल फेंकते हैं, उसमें दूर की मछलियां फंस जाती हैं, लेकिन जो मछलियां मछुआरे के पास होती हैं, वे उसकी शरण में होने के कारण बच जाती हैं.
दूसरे भाग में उन्होंने ब्लड कैंसर ग्रस्त होने और जड़ी-बूटियों से पूर्णतया ठीक होने की लोमहर्षक कथा का वर्णन किया है. यहां उसकी शक्ति एक व्यक्ति के रूप में आई. जड़ी-बूटियों से ठीक होने की बात पर किसी को विश्वास नहीं आ रहा था, लेकिन उस व्यक्ति को परमशक्ति के भेजे हुए देवदूत पर विश्वास के कारण उनका व्यवहार ठीक उस मेंढक की तरह रहा, जो बहरा था. यह कथा हम आपको सुनाए देते हैं. कुछ मेंढक पेड़ के ऊपर चढ़ने की कोशिश कर रहे थे. कुछ और मेंढक उनको गिरने का डर दिखा रहे थे और मेंढक ऊपर चढ़ नहीं पा रहे थे. एक मेंढक बिलकुल ऊपर तक चढ़ गया. कारण? कारण यह कि वह बहरा था, उसने न किसी की बात सुनी, न डरकर फिसला और गिरा.
तीसरे भाग में ब्लड प्लेटलेट्स काउंट घटने का और चौथे भाग में बेटी के रूप में एक सही परामर्शदाता व संरक्षक का रोल अदा करने का और उसके बाद प्रार्थना के प्रभाव का चमत्कारिक वर्णन किया है. यहीं पर उन्होंने कहा है-
”कौन कहता है कि मौत आई तो मर जाऊंगा,
मैं तो दरिया हूँ समंदर में उतर जाऊंगा.”

 

कथा के पांचवें भाग में उसने उनकी रक्षा की उनके बड़े भाई साहब के रूप में आकर. 7 साल से गाबापेंटीन नाम की दवा मात्र एक दिन बंद करवाने से उनके ब्लड प्लेटलेट्स काउंट्स ठीक हो गए.

 

छठे और अंतिम भाग में वे ठीक हो गए थे और उस चमत्कारिक शक्ति को गुरु दक्षिणा देने चाहते थे, लेकिन कैसे यह उनको पता नहीं था. इसी बीच अपना ब्लॉग पर कामेंट लिखते-लिखते एक बहिन से मुलाकात हो गई थी. बहिन ने उनके मन में बहुत अच्छे लेखक होने का विश्वास जगाया. बस इसी विश्वास के बल पर उन्होंने कुछ नायाब रचनाएं लिखीं और उनकी बहुत सराहना हुई. अब उन्होंने अपने उन चमत्कारिक पलों की कहानी लिखनी शुरु की. यह कहानी जिसने भी पढ़ी, वह पढ़ता ही रह गया. ऐसी अद्भुत आत्मकथा शायद ही किसी ने कभी पढ़ी थी. अब वे अपनी उस आत्मकथा को एक पुस्तक के रूप में बहुत लोगों तक पहुंचाने का प्रयत्न कर रहे हैं. जब उसकी इच्छा होगी, यह काम भी हो जाएगा. फिलहाल आप उनकी यह आत्मकथा इस वेबसाइट पर पढ़ सकते हैं-
https://jayvijay.co/author/ravindersudan/
यही अलौकिक शक्ति हम सबको विश्वास की पूंजी देकर सबकी सहायक बने, यही सच्चे मन से हमारी प्रार्थना है. यह विश्वास पूरा-पूरा होना आवश्यक है. हम पानी गर्म करते हैं, तो 99 डिग्री तक पानी गर्म कहलाता है, लेकिन एक डिग्री का जंप लेते ही वह Boiling hot कहलाता है, फिर उसकी भाप से बड़ी-बड़ी रेलगाड़ी भी चल सकती है. रविंदर भाई की तरह हम भी विश्वास में ऐसी एक डिग्री का जंप लें तभी विश्वास अपना प्रभाव दिखा पाएगा.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244