उपन्यास अंश

आजादी भाग –३८

दरोगा दयाल ने पीछे मुड़कर देखा और वह दृश्य देखकर वह भी आश्चर्यचकित रह गया  । पल भर के लिए उसे भी कुछ समझ में नहीं आया था कि यह अचानक क्या हुआ है  ? राहुल की अचानक चीख से वह भी चौंक गया ।  दरअसल राहुल ने ढाबे में प्रवेश करते हुए विनोद को पहले ही देख लिया था और ” पापा !”  जोर से चीत्कार करते हुए राहुल आकर विनोद से लिपट गया  । यही आवाज सुनकर दयाल पीछे मुड़ा  और राहुल को विनोद से लिपटे देखकर कुछ ही पलों में उसे सारा माजरा समझ में आ गया  । बस कुछ ही पलों की चूक हुई थी दयाल से और इतना समय ही काफी था कमाल को अपना कमाल दिखाने के लिए ।
दयाल जैसे ही पीछे मुड़ा था कमाल  मौके का फायदा उठाते हुए  टेम्पो लेकर फरार हो गया  । रामसहाय की जेब वह पहले ही गरम कर चुका था और उसने दयाल के निर्देशों की खानापूर्ति कर दी थी   सो उसके किसी प्रतिरोध की कोई गुंजाइश ही नहीं थी ।
टेम्पो के इंजिन की आवाज सुनकर दयाल पुनः टेम्पो की तरफ मुड़ा लेकिन तब तक टेम्पो ढाबे की हद से निकल कर सड़क पर पहुँच चुका था  । बदहवास सा दयाल चिल्लाते हुए उसकी तरफ भागा और कुछ दूर जाकर रुक गया । उसे भागते देखकर रामसहाय उसके पास आ गया और उसे बताया ” साहब ! मैंने उसका पूरा डिटेल ले लिया है । फिर आप उसके पीछे भागे क्यों ? ”
अभी दयाल कुछ जवाब देता कि उसे भागते देख दरोगा शर्मा और उसके साथी भी भागते हुए दयाल के पास पहुंचे । दयाल बाबू की उम्र व वरिष्ठता का अंदाजा लगाकर दरोगा महेश शर्मा ने दयाल बाबू का अभिवादन किया और उनसे इस तरह भागने का कारण पूछा ।
धौंकनी की भांति चल रही तेज सांसों पर काबू पाते हुए दरोगा दयाल ने शर्मा जी को बताया कि अभी अभी गए हुए टेम्पो को पकड़ना जरुरी है । और दौड़कर अपनी जीप में बैठ कर उसे स्टार्ट कर दिया । मौके की नजाकत को देखते हुए दयाल और रामसहाय के साथ ही शर्मा जी और उनके साथी भी उछलकर जीप में बैठ गए ।
जीप एक झटके से मुड़ी और सड़क पर टेम्पो जिस तरफ गयी थी उसी दिशा में फर्राटे से आगे बढ़ने लगी ।
विनोद को यह सब घटना क्रम कुछ समझ में नहीं आया था और इन सबसे अनजान वह अभी तक राहुल को अपने सीने से लिपटाये उसे बेतहाशा चुमे जा रहा था । उसकी आँखें भी बरस रही थीं और राहुल ! अपने पिता के सीने से लिपटा राहुल भी खूब रोकर अपना जी हल्का कर लेना चाहता था  । रोते रोते उसकी घिग्घी बंध गयी थी । रुलाई रोकने की कोशिश में उसकी हिचकियाँ बढ़ती जा रही थीं । दोनों पिता पुत्र का मिलन और रुदन देखकर वहाँ मौजूद ढाबे के सभी कर्मियों और ग्राहकों की आँखें भी नम हो गयी थी ।
कुछ देर उसी अवस्था में रहने के बाद मन के आवेगों को थामते हुए विनोद ने राहुल को अपने से अलग किया । उसका जी चाह रहा था कि वह राहुल को खूब डांटे ‘ दो थप्पड़ रसीद कर दे लेकिन उसके आंसुओं ने विनोद के मन में जल रहे क्रोध की ज्वाला को भिगो कर कभी का बुझा दिया था । और अब वह मन ही मन ईश्वर का अनेकानेक धन्यवाद अदा किये जा रहा था । उसे डांटने फटकारने की उसकी बिलकुल भी हिम्मत नहीं हो रही थी । राहुल उससे अलग होकर तड़प उठा था ” नहीं नहीं पापा ! अब मुझे अपने से अलग मत करो ! अब मैं किसी बात की शिकायत नहीं करूँगा । अब मुझे जिंदगी की हकीकत पता चल गयी है । सारा कसुर मेरा ही है । आप लोग मुझे कितना प्यार करते हैं यह मुझे आपसे दूर रहकर ही महसूस हुआ । मुझे माफ़ कर दो …..!” कहते हुए राहुल उसके कदमों में झुक गया और विनोद ने लपककर उसके दोनों कंधे पकड़कर उसे अपने सीने से लिपटा लिया किसी मासूम अबोध बच्चे की तरह । लेकिन मन ही मन वह सोच रहा था ‘ चार दिनों में ही अचानक राहुल कितना बड़ा हो गया है । सच ही कहा है किसीने वक्त सबसे बड़ा गुरु है अच्छे अच्छों को सीखा देता है । ‘
अचानक मनोज और बंटी जो अभी तक इस अचानक घटे घटनाक्रम से अनजान थे यह जानकर कि पुलिस के साथ आनेवाला व्यक्ति कोई और नहीं बल्कि वह राहुल के पापा हैै उनकी ख़ुशी का भी ठिकाना नहीं रहा  । उसकी ख़ुशी को द्विगुणित करने के लिए दोनों ने ताली बजाकर अपनी ख़ुशी का इजहार किया था । वहाँ मौजूद लोगों ने भी बच्चों का अनुसरण किया था और तालियों की तेज गडगडाहट गूंज उठी ।
नजदीक ही बज रही तालियों की तेज आवाज ने विनोद और राहुल दोनों को हकीकत की धरातल से रूबरू कराया । राहुल का हाथ पकडे विनोद वहीँ पास ही रखे एक बेंच पर बैठ गया । लेकिन राहुल  बैठने की बजाय मनोज और बंटी की तरफ बढ़ गया । उनके करीब पहुँच कर बोला ” मनोज ! बंटी ! ये मेरे पापा हैं ।” और अगले ही पल दोनों ने विनोद को हाथ जोड़कर नमस्ते किया ।
राहुल ने दोनों का परिचय विनोद से कराया ” पापा ! ये मनोज है और ये नन्हा सा बंटी ! ये बंटी तो अपने शहर के ही डॉक्टर राजीव का लड़का है । ”
विनोद ने लपक कर बंटी को अपनी गोद में उठा लिया और मनोज को अपने सीने से लिपटा कर उस पर भी अपने प्रेमिल स्नेह की वर्षा कर दी । विनोद के स्नेह से अभिभूत दोनों बच्चों की आँखें एक बार फिर भर आई थीं । विनोद की गोद से उतरकर बंटी और मनोज दोनों ही राहुल की तरफ बढे और अभी कोई कुछ समझ पाता कि अचानक बंटी राहुल के कदमों में झुक गया और उसके कदमों को पकड़ कर रोते हुए बोला ” राहुल भैया ! अब मुझे यकिन हो गया है कि मैं भी अपने पापा से मिल पाउँगा । और यह सब कुछ सम्भव हुआ है सिर्फ आप ही की वजह से  । मैंने तो इन गुंडों की कैद से निकलने की उम्मीद ही छोड़ दी थी । लेकिन आपकी समझदारी उनके इंतजामों पर भारी पड़ी और देखो ! अब हम आजाद हैं । ”
मनोज ख़ामोशी से राहुल की तरफ एकटक देखे जा रहा था । उससे कुछ भी कहते नहीं बन रहा था लेकिन खामोश रहकर मानो वह भी बंटी की बातों का समर्थन कर रहा था ।
राहुल ने बंटी को उठाकर उसे दुलार करते हुए बोला ” नहीं बंटी ! मैंने कुछ नहीं किया । जो भी किया वो हम सबने किया । बिना तुम लोगों के सहयोग के मेरी योजना सफल नहीं हो पाती । ”
बच्चों की बातें विनोद सुन तो रहा था लेकिन कुछ समझ नहीं पा रहा था । ये आपस में किस योजना की बात कर रहे थे ?
आखिर इस रहस्य पर से पर्दा उठाने के लिए उसने राहुल से पूछा ” बेटा ! ये  तुम लोग किस योजना की बात कर रहे हो ? और क्या किया है तुमने ? ”
अभी राहुल कुछ जवाब देता कि उससे पहले ही मनोज ने विनोद को असलम भाई के चंगुल से निकल कर कालू भाई के चंगुल में फंसने और फिर वहां से राहुल की होशियारी से यहाँ तक का सफ़र तय करने का सारा वृत्तांत बता दिया । बिच बिच में बंटी ने भी कहानी के बिखरे सिरों को जोड़ने का काम बखूबी किया था । पूरी कहानी सुनकर विनोद के चेहरे पर जहाँ राहुल के लिए प्रशंसा के भाव  दिख रहे थे वहीं आत्मिक संतोष भी स्पष्ट दिखाई पड़ रहा था ।

 

क्रमशः

*राजकुमार कांदु

मुंबई के नजदीक मेरी रिहाइश । लेखन मेरे अंतर्मन की फरमाइश ।