उपन्यास अंश

आजादी भाग –४०

बच्चों की बात सुनकर विनोद को राहुल की समझदारी का अहसास हुआ और साथ ही यह भी अहसास हुआ कि सभी बच्चे अपराध के अँधेरे में गुम होने से बाल बाल बचे थे । मन ही मन भगवान को धन्यवाद देते हुए अचानक जैसे विनोद को कुछ याद आया । जेब से फोन निकाल कर विनोद ने कल्पना का नंबर मिलाया । फोन कल्पना ने ही उठाया था । व्यग्रता और उत्सुकता का अजीब सा मेल लिए हुए उसकी आवाज आई ” , क्या हुआ ? राहुल कहाँ है ? ”
” ईश्वर की बड़ी मेहरबानी है कल्पना ! उसने रामनगर पहुँचने से पहले ही हमें वहां पहुंचा दिया जहाँ हमारा बेटा पहले से ही मौजुद था । बस अब तुम ख़ुशी मनाओ और हमारा इंतजार करो । बाबूजी और माताजी को भी यह खुशखबरी दे देना । हमें आने में कुछ देर भले हो जाये लेकिन हम सब एक बार फिर साथ होंगे । बहुत सी बातें हैं जो हम जब मिलेंगे तब बात करेंगे । ” विनोद ने कल्पना के टोकाटाकी की परवाह किये बिना ही अपनी बात पूरी की थी ।
राहुल के मिल जाने की खबर ने कल्पना को एक तरह से उत्तेजित ही कर दिया था और विनोद की पूरी बातों को  ध्यान से सुनने का उसके पास सब्र नहीं था । उसने शायद विनोद की पूरी बात भी नहीं सुनी थी । उसके कानों में विनोद की कही बातें ही गूंज रही थी ‘ ……..जहाँ हमारा  बेटा पहले से ही मौजुद था । ‘
उसे अभी भी यकिन नहीं हो रहा था लिहाजा वह इन गूंजते हुए शब्दों को कई बार सुनकर अपने दिल को राहुल के मिल जाने की ख़ुशी का अहसास करा रही थी । बड़ी देर तक अपने कानों से फोन लगाये कुछ और सुनने का प्रयत्न करती रही जबकि विनोद ने तो फोन कभी का काट दिया था । बावली सी वह खड़ी रही फोन अपने कानों से लगाये । उसे इसी अवस्था में बड़ी देर तक खड़ी देख विनोद की माताजी ने जोर से आवाज लगायी ” अरे बहू ! किससे बातें कर रही हो इतनी देर से ? वो भी बिना कुछ बोले ! ”
सास की आवाज कानों में पड़ते ही कल्पना की सुधि ने फिर से दस्तक दी और उसे अपनी अवस्था का भान हुआ । जल्दी से फोन अपने कानों से हटाते हुए अपने  सास की ओर बढ़ते हुए कल्पना ने ख़ुशी से चहकते हुए जवाब दिया ” माँ जी ! अभी अभी उनका फोन आया था । भगवान ने हमारी सुन ली माँ जी ! राहुल से उनकी मुलाकात हो गयी है । राहुल उनके साथ ही है । ” फिर अचानक जैसे उसे कुछ याद आया हो ” अरे ! मैं तो ख़ुशी के मारे अपने लाल से बात करना ही भूल गयी । माँ जी ! रुकिए ! अभी आपकी उससे बात कराती हूँ । ”
अगले ही पल उसने विनोद को फोन लगा दिया । फोन विनोद ने ही उठाया था ” हाँ बोलो कल्पना ! क्या बात है ? ”
” अरे आप भी कमाल करते हैं । मेरे तो कान तरस गए हैं अपने लाल की आवाज सुनने के लिए और आप हैं कि पूछ रहे हैं क्या बात है ?  ” कल्पना ने प्रेम से विनोद को उलाहना दिया ।
विनोद के अधरों पर मुस्कान फ़ैल गयी । बोला ” गलती हो गयी भागवान ! माफ़ कर दो ! लो अपने जिगर के टूकडे से बात कर लो । ” कहते हुए उसने फोन राहुल को पकड़ा दिया और बोला ” लो बेटा ! अपनी माँ से बात कर लो । ”
राहुल ने फोन लेकर अपने कानों से लगाया ” माँ ! कैसी हो माँ ? ”  कहते हुए राहुल की आवाज भर्रा गयी थी ।
उधर से तड़पते हुए कल्पना की लरजती हुयी आवाज राहुल के कानों में  गूंजने लगी ” बेटा ! तेरी आवाज सुनने को तरस गयी थी बेटा ! बस अब तू बोलते जा । बता ! तू ..तू ठीक तो है न मेरे लाल ? ”
” माँ ! अब तो मैं ठीक हूँ माँ !  लेकिन थोड़ी देर पहले तक नहीं ठीक था । मैंने जान लिया है माँ ! मैं बहुत बुरा हूँ । मैंने तुम्हें हर वक्त दुःख ही दिया है । मुझे माफ़ कर दो माँ ! ” कहते हुए राहुल की हिचकियाँ शुरू हो गयी थी ।  तड़प उठी थी कल्पना अपने लाडले की हिचकियाँ सुनकर ” नहीं बेटा ! ना रो ! क्या तू नहीं जानता ? हम तुझे रोता हुआ नहीं देख सकते । अब और मत रुला बेटा ! अब जल्दी से घर आ जा ! तुझे सीने से लगाने के लिए मैं तरस गयी हूँ बेटा ! ” कहते हुए कल्पना अपनी भावनाओं पर नियंत्रण न रख सकी और फूट फूट  कर रो पड़ी । मोबाइल उसके हाथों से फिसल कर नजदीक ही  पलंग पर गिर पड़ा । अब उसमें से राहुल की आवाज बहुत ही धीमे स्वर में निकल रही थी ” चुप हो जाओ माँ ! मत रो माँ ! …….”

अपनी माँ का रुदन सुनकर राहुल तड़प उठा  । वह

समझ गया था कि अब उसकी माँ उससे बात नहीं कर रही है और सिर्फ रोये जा रही है । उसकी तड़प बढ़ गयी थी   वह इस पूरे घटनाक्रम के लिए खुद को ही दोषी मान रहा था । उसकी वजह से ही उसके माँ बाप को इतनी तकलीफ उठानी पड़ी थी । सारा कसूर उसका ही था  । उसका अंतर्मन उसे इसके लिए धिक्कार रहा था नतीजतन ऐसा लग रहा था मानो जैसे वह खुद ही खुद से नजरें चुरा रहा हो ।

फोन अपने पापा को लौटाते हुए उसकी नजरें झुकी हुयी थीं । उसकी अवस्था को देख कर विनोद को उसके मनोभावों का भान हो गया था । उसने लपक कर उसे अपने पास खिंच लिया और उसे अपने सीने से चिपटाए दिलासा देने की कोशिश करने लगा । रुलाई रोकने के चक्कर में राहुल की सिसकियाँ और तेज हो गयी थीं । मनोज और बंटी भी सिसकियाँ भर कर रो रहे थे । ढाबे में मौजूद लोग भी अब हकीकत से कुछ कुछ वाकिफ हो रहे थे और उनका रुदन देखकर भावुक हो गए थे ।
तभी ढाबे के सामने मैदान में घुसता हुआ टेम्पो देखकर विनोद व राहुल का ध्यान उस तरफ गया । टेम्पो के पीछे पीछे ही पुलिस की जीप भी दाखिल हुई जिसे दरोगा दयाल ड्राइव कर रहा था । रामसहाय ने टेम्पो मैदान के एक कोने में खड़ा किया और दयाल की तरफ बढ़ा । दयाल भी अब तक गाड़ी पहले से ही खड़ी शर्माजी की जीप के पीछे खड़ी कर उसमें से उतर कर ढाबे में राहुल की तरफ बढ़ रहा था ।
दयाल को अपनी तरफ बढ़ते देख विनोद ने आगे बढ़ दयाल को दोनों हाथ जोड़ नमस्ते किया । उसके अभिवादन का मुस्कराहट से जवाब देते हुए दयाल ने कहा ” आप शायद राहुल के पापा हैं ! ”
विनोद ने जवाब दिया ” जी साहब ! हम ही वो अभागे बाप हैं जिससे रूठकर उसके जिगर का टुकड़ा उससे दूर चला गया था । हमारा एक एक पल काटना कितना मुश्किल था यह हम शब्दों में नहीं बयान कर सकते । आप की बहुत बहुत मेहरबानी है साहब ! आपने हमको अपने बेटे से मिला दिया । ”
विनोद के जुड़े हुए दोनों हाथों को पकड़ते हुए दयाल ने बड़े ही आत्मीयता से उससे कहा ” हमारी कोई मेहरबानी नहीं है ……क्या नाम है आपका ? ”  उसका वाक्य अधूरा रह गया  । तुरंत ही विनोद ने जवाब दिया था ” जी 💐! विनोद ! विनोद नाम है मेरा . ” ।
” हाँ ! तो विनोद जी मैं कह रहा था हमारी कोई मेहरबानी नहीं है । वो आपने यह तो सुना ही होगा कि जो अपनी मदद आप न करना चाहता हो उसकी मदद इन्सान तो क्या भगवान भी नहीं कर सकते । और यही हुआ है । आपके इस होनहार बच्चे ने अपनी मदद खुद ही करने का ठान लिया था तो फिर भगवान भी भला उसकी मदद क्यों न करते ? और यह भगवान की ही मर्जी थी कि जैसे ही टेम्पो रुका था और बच्चे टेम्पो से निकल रहे थे हम भी यहाँ पहुँच गए थे । हमें देखकर बच्चों को हिम्मत आ गयी थी । और आगे अब आप देख ही रहे हैं । लेकिन एक बात है जो मैं आपसे गुजारिश करना चाहता हूँ ..”  कहते हुए दयाल थोड़ी देर के लिए रुका ।
उसे कुछ कहते कहते अचानक चुप होते देख विनोद बोल पड़ा ” कहिये न साहब ! आप क्या कहना चाहते  हैं ? चुप क्यों हो गए ? ”

 

क्रमशः

*राजकुमार कांदु

मुंबई के नजदीक मेरी रिहाइश । लेखन मेरे अंतर्मन की फरमाइश ।