सामाजिक

कर्मों का फल

मैं एक फोटोग्राफर हूँ। बहुत सी धार्मिक पत्रकाओं के लिए काम करता हूँ। धार्मिक स्थानों और बड़े बड़े साधू संतों और धर्म उपदेशकों की फोटो लेने के साथ-साथ उनके उपदेशों को भी लिखकर फोटो के साथ किसी न किसी पत्रिका को भेजता हूँ। धर्म मेरा प्रिय विषय हैं। यूँ मैं कोई धर्मी नहीं हूँ लेकिन भगवान् के बारे में जानने के लिए जिज्ञासा के कारण महात्मा बुध की तरह भटक रहा हूँ। महात्मा बुध ने तो जंगलों में घोर तपस्या करके भी देख लिया था लेकिन मैं ऐसी तपस्या नहीं करता , मेरी तपस्या तो तीर्थों की भटकना ही है। सभी धर्मों के प्रचारकों और इन धर्मों के श्रद्धालुओं को देख सुनकर लगता है, जैसे सब अपने-अपने राग अलाप रहे हैं। शान्ति किसी को नहीं है, हर कोई अपने धर्म को ही सही मानता है। झगडे होते हैं, दूसरे को काफर बोलते हैं। नए नए गुरु स्वामी उत्पन हो रहे हैं और मैं जानना चाहता हूँ कि भगवान् कहाँ हैं !

वैसे तो मैं बहुत घूम चुका हूँ लेकिन हरिद्वार मैंने तब देखा था, जब बहुत छोटा सा था। अब मैंने फिर से तैयारी कर ली। ट्रेन का टिकट लिया, अपने कैमरे और नोट बुक्स से बैग भर लिया। जब मैं हरिद्वार पहुंचा तो गंगा के किनारे रौनक ही रौनक थी। लोग डुबकियां लगा रहे थे और हरिओम हरिओम की ध्वनि चारों ओर गूंझ रही थी। जगह-जगह साधू संतों के आगे श्रद्धालु माथा टेक कर आशीर्वाद ले रहे थे। जटाधारी साधू बभूति धारण किये सुख आसन में बैठे चिलमों के सरूर से भगवान् की ओर बिरति लगाए बैठे थे। जगह जगह कथा प्रवचन हो रहा था और लोग श्रद्धा से सुन रहे थे। मेरा कैमरा तीव्र गति से अपना काम कर रहा था। बंदरों से बचता हुआ मैं आगे बढ़ रहा था। कुछ महात्माओं से कुछ प्रवचन भी हुए लेकिन पत्रिका के लिए कुछ ख़ास नसीब नहीं हुआ। खाते पीते, घूमते घूमते शाम हो गई। थककर अपने होटल के कमरे में आ कर सो गया।

कुछ दिन के बाद, एक शाम को गंगा की सैर करते-करते बहुत दूर निकल गया और एक जगह एक महात्मा को देखा, जिस के आगे कुछ श्रद्धालु बैठे महात्मा जी के साथ वार्तालाप कर रहे थे। महात्मा जी के साफ़ सुथरे चिट्टे कपडे और बड़ी हुई दाहड़ी और उन के तेजस्व्य को देख कर कुछ अजीब सा आकर्षण महसूस हुआ और मैं उनके आगे बैठ गया। कुछ देर बाद महात्मा मेरी ओर मुख़ातब हो कर बोले, ” भगत जी ! पहले फोटो ले लो, फिर बातचीत करेंगे “, हैरान हुआ मैं फोटो लेने लगा। फोटो लेने के बाद मैं उनके आगे बैठ गया। महात्मा, जिनको लोग स्वामी जी बोल रहे थे मैंने सीधा सवाल किया, ” स्वामी जी ! कर्मों के फल को आप कैसे डिफाइन करेंगे “, स्वामी जी की बोल चाल से मैंने समझ लिया था कि वह पढ़े लिखे स्वामी हैं।
स्वामी जी मुस्करा कर बोले, ” भगत जी इस के अर्थ बहुत सीधे हैं, पिछले जनम में जो हमने किया था, उसी के हिसाब से हमने यह यूनि पाई है ”
मैं बोला, “स्वामी जी क्या हम को यकीन है कि पिछले जनम में हम इंसान ही थे जब कि हमें यह बताया जाता है कि 84 लाख यूनि के बाद हमें मानुष जनम मिलता है ?”
स्वामी जी कुछ संजीदा हो गए और बोले, भगत जी, अच्छे बुरे काम हम हर यूनि में करते हैं, मस्लिन, बहुत से जानवर एक दूसरे जानवर को मारकर खा जाते हैं, इसकी सजा तो उन्हें मिलेगी ही। मैं ने कहा स्वामी जी, ” जब भगवान् ने उन जानवरों की खुराक ही मांस तय कर दी तो वोह मांस तो खाएंगे ही, हाथी इतना बड़ा होकर भी मांस को मुंह नहीं लगाता, इसलिए वोह तो हमेशा दूसरे जनम में मानुष जनम ही पायेगा ” स्वामी जी बोले, बेटा ! यह सब समझने के लिए तर्क का रास्ता छोड़ना होगा, यह बातें समझने के लिए धार्मिक होना पड़ता है, वरना कुछ समझ नहीं आएगा ”
मैंने फिर सवाल कर दिया, “स्वामी जी, एक बात मुझे बहुत खटकती है, कि अक्सर लोग कहते हैं कि जनम मरण भगवान् के हाथ में है, फिर कुछ धर्मों के लोगों में ज़्यादा बच्चे होते हैं और कुछ लोगों में कम और साथ ही हम फैमिली प्लैनिंग के लिए बहुत कुछ करते हैं और हम अपनी मर्ज़ी के मुताबिक बच्चे पैदा करते हैं, तो इस में भगवान् की मर्ज़ी तो रही नहीं ”
स्वामी जी हंस पड़े और बोले, ” बेटा ! मैंने पहले ही कह दिया कि यह आध्यात्मिक बातें समझने के लिए धार्मिक होना पड़ेगा ”
कुछ देर हमारी बातें होती रहीं और बहुत से श्रद्धालु भी हमारी बातों का आनंद ले रहे थे लेकिन मेरे मन को सुन्तुष्टता नहीं हुई और मैंने स्वामी जी से सीधा सवाल ही कर दिया,”स्वामी जी ! आप संसारक जीवन छोड़ कर यहां गंगा किनारे कैसे पधारे ?”
स्वामी जी खामोश हो गए, कुछ देर बाद बोले, ” बेटा ! तुम ने देखा ही है कि यहां कितने सन्यासी, कितने साधू और कितने डेरे हैं, यह सब लोग अपना-अपना इतिहास पीछे छोड़कर मोक्ष प्राप्ति के लिए यहां आकर अपने अपने ढंग से प्रभु के गुण गाते हैं, इससे पहले कि तुम मेरे बारे में पूछो, मैं खुद ही बता देता हूँ ”
मैंने कुछ और फोटो लिए और स्वामी जी बोले, ” कभी मेरा भी घर था, मेरी माताजी का दिहांत हो चुक्का था, मेरी सर्विस अछि थी, दो बच्चे थे और साथ में बूढे पिता जी रहते थे। मेरी पत्नी मेरे पिताजी को बहुत तंग करती थी, पिताजी को दुखी देख कर मेरा मन उदास रहता था। कभी कभी पिताजी घर छोड़ने की बात कह देते तो मन और भी दुखी होता, एक दिन तो पत्नी मुझे मजबूर करने लगी कि मैं अपने पिताजी को किसी आश्रम में छोड़ आऊं। बात इतनी बढ़ी कि एक दिन मैं पिताजी को एक बृद्ध आश्रम में छोड़ आया। कभी कभी मैं पिताजी को मिल आता था और कुछ पैसे भी दे देता था, कई महीने गुज़र गए, एक दिन मेरी तबीअत कुछ ठीक नहीं थी और मैं काम से जल्दी घर आ गया। पत्नी कहीं गई हुई थी, घर में आते ही मुझे कुछ कुछ शराब की दुर्गन्ध आई, तभी मोबाइल बज उठा, आवाज़ चारपाई के नीचे से आ रही थी, नीचे पड़ा एक मोबाइल फोन बज रहा था और कुछ देर बाद बन्द हो गया, मैं मोबाइल को उठा कर देखने लगा, देखते देखते मेरी आँखों के आगे अँधेरा शाणे लगा, मेरी पत्नी की सेल्फीज़ किसी पराये मर्द के साथ बहुत ही इतराजयोग हालत में थीं। ऐसे में कोई मर्द किया कर सकता है, कोई भी समझ सकता है, कोई एक घंटे बाद मुझे कुछ होश आई और कुछ पैसे लेकर हरिदूआर की ट्रेन में बैठ गया, यहां आकर बहुत महापुरषों से मिलन हुआ और आखर में मैंने समझ लिया कि इस जगत में हर कोई अपने अपने कर्मों का फल भोगने आया है ” स्वामी जी कुछ चुप हो गए।
मैंने कहा, “स्वामी जी ! आपकी पत्नी तो गुमराह हुई थी लेकिन बच्चों को आपने क्यों सजा दी ! ”
स्वामी जी बोले,” बेटा ! इस संसार में हर कोई अपने अपने कर्मों का फल भोगने आया है, मेरी पत्नी को बच्चों की परवरिश खुद ही करनी पड़ेगी और सारी ज़िन्दगी तकलीफों से गुज़ारनी पड़ेगी, उसके लिये यह अच्छा ही होगा कि वोह इस ज़िन्दगी में ही अपने पापों का फल भुगत ले, प्राश्चित कर ले ताकि अगले जनम में दुखों से छुटकारा मिल जाए ”
स्वामी जी चुप हो गए और मुझे भी और सवाल करने की हिमत नहीं हुई, स्वामी जी को हाथ जोड़ कर नमस्कार की और अपना बैग ले कर अपने होटल में आ गया। सुबह को ट्रेन में बैठकर घर आ गया। मेरी पत्नी बोली, कहिये कोई स्कूप मिला ?
मैं ने बोला, “अब की बार तो मुझे ज्ञान हुआ है कि हम सभी अपने अपने कर्मों का फल भोग रहे हैं। फिर मैंने हंस कर बोला, “अरी बीवी ! यह जो चोर खूनी घूसखोर और ब्लैकमार्किटिये हैं, इनको बुरा भला नहीं कहना चाहिए क्योंकि सभी अपने-अपने कर्मों के फल के हिसाब से कर रहे हैं ”
बीवी ऊंची ऊंची हंसने लगी और बोली, ” आपके इन चोरों, ख़ूनीओं, घूसखोरों और ब्लैकमार्किटिओं को मोदी जी दरुस्त कर रहे हैं और यह नोट बंदी उसी का हिस्सा है ताकि यह लोग इसी जनम में अपने पापों का फल भुगत लें और अगले जनम में इनके लिए कोई समस्या ना रहे ”
अब हम दोनों हंसने लगे, मैं बोला, ” अरी पियारी बीवी, तुमने तो हरिदूआर जाए बगैर ही कर्मों के फल के बारे में जान लिया, तुम तो आज से मेरी बीवी ही नहीं हो बल्कि गुरु भी हो और हम ऊंची ऊंची हंसने लगे।