लघुकथा

जरुरत

भगवान राधाकृष्ण का मंदिर आज विशेष सजावट से चमक रहा था । बिजली की लड़ियों और फूलों से सुसज्जित मंदिर की शोभा देखते ही बनती थी ।
बेरोजगारी और गरीबी से त्रस्त भीखू की पत्नी रधिया जो कि मंदिर के करीब ही एक झुग्गी में रहती थी मंदिर के सामने कुछ पाने की आस में भिखारियों के झुण्ड में बैठ गयी । भीखू भीख मांगने के सख्त खिलाफ था लेकिन ममता की मारी रधिया से दूध के लिए बिलखते अपने बच्चों का रोना देखा न गया था । अपनी गोद में छोटे बच्चे को गोद में लिए हुए वह कटोरे में जमा हुए चंद सिक्कों को देखती , मायूस हो कुछ और पाने की आस में बैठी रही । तभी कोई मशहूर हस्ती मंदिर में दर्शन को आई । उसके आते ही भिखारियों में उसके सामने जाने की होड़ सी लग गयी । उसने किसी भिखारी की तरफ ध्यान दिए बिना पुरोहितों द्वारा किये गए विशेष पूजन में भाग लिया और मंदिर को एक लाख रुपये का दान देकर चला गया । उसकी एक झलक देखने को उमड़ी भीड़ के रेले में कुछ पाने की आस लिए घुसी रधिया के हाथ से कटोरा छुट गया । चंद सिक्कों की मालकिन रधिया रुआंसी सी हो भगवान से शिकायत करने लगी ” हे भगवन ! कहते हैं तू सारी सृष्टि का मालिक है । मेरी गोद में भूखा मासूम बच्चा है जो दूध के लिए तरस रहा है  और तू है कि अपना खजाना भरवाए जा रहा है । तुझे किस बात की कमी है जो पेटी पैसों से भरवाए जा रहा है ? क्या तुझे मुझसे भी ज्यादा पैसों की जरुरत है ? “

*राजकुमार कांदु

मुंबई के नजदीक मेरी रिहाइश । लेखन मेरे अंतर्मन की फरमाइश ।