धर्म-संस्कृति-अध्यात्म

ईश्वर का अस्तित्व भाग -१

ईश्वर, भगवान्  कितना महान शब्द है । जिसने भी जैसे बुद्ध कबीर नानक महावीर जीसस इत्यादि ने ईश्वर का जो वर्णन किया है उसे निराकार, भूत, वर्तमान या भविष्य काल से परे एक शक्ति बताया है । इन्होंने कहा है की ईश्वर अनादि काल से है , उसका आरम्भ और अंत नहीं है । नानक बुद्ध, कबीर ने भी माना है कि पृथ्वी जितना कागज़  हो समुद्र जितनी स्याही हो , पृथ्वी के पेड़ों जितनी कलम हों , तो भी उसका वर्णन नहीं हो पायेगा ।  ईश्वर के बारे में साधारण लोग  यह तर्क देते हैं जैसे “किसने देखा” है “विज्ञान ने इतनी तरक्की कर ली अगर होता तो पता ना चल जाता”  “क्या प्रमाण है की वह है ? ? “कहाँ है ” ?   “उसने ऐसी दुनिया क्यों रची जिसमें इतने दुःख हैं”  “अगर वह कहीं है तो कभी तो सामने आये  वगैरह वगैरह ।

किसने देखा है ?

ईश्वर इन्द्रियों से परे की चीज है याने वह कोई भौतिक वस्तु नहीं है जिसे आँखों से देखा जाए । वह अनुभव की चीज है  । हमारी आँख जो देखती है क्या वह सही देखती है ? मृग मरीचिका का अर्थ तो सब जानते होंगे याने मृग को ऐसा दिखाई देता है की सामने पानी है, वहां जाने पर वहां पानी तो नहीं होता पानी और आगे दिखाई देता है और वही चक्र चलता रहता है अंत में  मृग प्यासा ही मर जाता है। गर्मी के दिनों में सड़क कई बार ऐसे दिखाई देती है जैसे आगे पानी हो परंतु वह दृष्टि का भ्रम होता है । बैक्टिरिया और कई अन्य जीव हमें आँख से दिखाई नहीं देते परंतु माइक्रोस्कोप से उन्हें देखा जा सकता है । कांच का एक बड़ा बर्तन लें । इसमें एक सीधी लकड़ी या कांच वगैरह की छड़ डालें । कैसी दिखाई देती है ? यह छड़ हमें टेढ़ी दिखाई पड़ेगी । हम छड़ को टेढ़ी क्यों नहीं मानते । जब ट्रैन किसी स्टेशन पर खड़ी होती है, दूसरे प्लेटफार्म पर कोई ट्रैन जब चल पड़ती है तो हमें ऐसा दिखाई पड़ता है मानो जिस ट्रैन में हम बैठे हैं वो चल रही है । हम अपनी आँख पर बहुत भरोसा करते हैं फिर दिखाई क्यों नहीं देता वाला तर्क लचर साबित हो जाता है।

“क्या प्रमाण है की वह है ?  विज्ञान क्यों आज तक सिद्ध नहीं कर पाया ?

सृष्टि में करोड़ों ऐसी चीजे हैं जिसे विज्ञान आज तक सिद्ध नहीं कर पाया । जीवन कहाँ से शुरू होता है कहाँ अंत, यह बात विज्ञान आज तक सिद्ध नहीं कर पाया । हमें सपने आते हैं क्या विज्ञान सपने सिद्ध कर सकता है? आप को भी सपना आता है मुझे भी आता है इसलिए हम सपने का अस्तित्व स्वीकार करते हैं यदि मुझे सपना नहीं आता और आपको आता है तो मैं कभी विश्वास नहीं करूंगा कि सपना जैसी कोई चीज होती है । विज्ञान सपने कि वास्तविकता जानते हुए भी उसे सिद्ध नहीं कर सकता ।

हम नए नए नाम तक सोच नहीं पाते कोई भी देश हो वही  घिसे पिटे नाम सदियों से चले आते हैं । उसकी रचना में एक कण भी दूसरे से नहीं मिलता,  कितने प्रकार के जीव जंतु जल थल  वायु में विद्यमान हैं कितनों का तो आज तक पता ही नहीं है । कितने प्रकार के फल, फूल, सब्जियां औषधी वाले पौधों की रचना किसने की ?

हर जीव कि रचना, अपने आप में एक अद्भुत चीज है ।  मनुष्य में हड्डी टूट जाने पर फिर जुड़ जाना, खून बहने पर अपने आप थोड़ी देर बाद बंद हो जाना, जुगनू का टिमटिमाना , पेड़ पौधों की जातियों को युगों तक दूर दूर  तक फैलाने के लिए बीजों में पंख लगना, पक्षियों द्वारा बीज खाकर बीट के साथ बीजों का चट्टानों तक में उग जाना , मधुमखियों के झुण्ड में एक राजा एक रानी , बाकी श्रमिक और सैनिकों का होना , श्रमिकों का काम शहद इकठ्ठा करना, सैनिकों का काम छत्ते कि रक्षा  के लिए डंक मारना इत्यादि क्या यही प्रमाण नहीं है ?  यदि उसे भगवान् मानने में अहंकार सामने आता हो तो उसे प्रकृति भी मान सकते हो ।

(दूसरे भाग में समाप्त)

रविन्दर सूदन

शिक्षा : जबलपुर विश्वविद्यालय से एम् एस-सी । रक्षा मंत्रालय संस्थान जबलपुर में २८ वर्षों तक विभिन्न पदों पर कार्य किया । वर्तमान में रिटायर्ड जीवन जी रहा हूँ ।